विदेशी सॉफ्टवेयर पर बढ़ती निर्भरता, राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मनिर्भरता पर सवाल

Update: 2025-08-27 12:11 GMT

नई दिल्ली।

डिजिटल युग में भारत की विदेशी सॉफ्टवेयर पर निर्भरता लगातार चिंता का विषय बनती जा रही है। सरकारी दफ्तरों से लेकर निजी कंपनियों तक, ज्यादातर कार्य विदेशी कंपनियों के सॉफ्टवेयर पर ही आधारित हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक स्वावलंबन और तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिए चुनौतीपूर्ण है।

सूत्रों के मुताबिक हर साल भारत से अरबों रुपये लाइसेंस और सब्सक्रिप्शन फीस के रूप में विदेशी कंपनियों के पास जा रहे हैं। साथ ही संवेदनशील डेटा और अहम जानकारी विदेशी सर्वरों पर सुरक्षित रहने के कारण साइबर सुरक्षा को भी खतरा बना रहता है।

आईटी विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक कंपनियों के पास आधुनिक तकनीक और रिसर्च का बड़ा नेटवर्क होने के चलते उनके सॉफ्टवेयर उपयोग में आसान और भरोसेमंद होते हैं। यही वजह है कि भारतीय कंपनियां व संस्थान स्थानीय विकल्पों की बजाय विदेशी प्लेटफॉर्म को प्राथमिकता देते हैं।

हालांकि सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है। Digital India और Make in India अभियान के तहत स्वदेशी सॉफ्टवेयर को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। हाल ही में विकसित BharOS और देशी क्लाउड सेवाओं को विदेशी विकल्पों का विकल्प माना जा रहा है।

जानकारों का मानना है कि ओपन-सोर्स प्लेटफॉर्म, स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन और रिसर्च एंड डेवलपमेंट में निवेश बढ़ाकर ही विदेशी निर्भरता कम की जा सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत को तकनीकी महाशक्ति बनना है तो आत्मनिर्भर सॉफ्टवेयर इकोसिस्टम तैयार करना होगा।

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