24 साल पहले मायावती के साथ हुए गेस्ट हाउस कांड की कहानी

Update: 2019-11-08 08:56 GMT

बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती  ने समाजवादी पार्टी (SP) संरक्षक मुलायम सिंह यादव के खिलाफ गेस्ट हाउस कांड मुकदमे को वापस ले लिया है. बताया जा रहा है कि मायावती ने गेस्ट हाउस कांड में दर्ज मुकदमे को वापस लेने के लिए फरवरी में ही शपथपत्र दिया था. लेकिन उस वक्त ये खबर लीक नहीं की गई थी.

लोकसभा चुनाव से पहले जब समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन हुआ, उस वक्त अखिलेश यादव ने मायावती से मुकदमा वापस लेने की अपील की थी. मायावती ने सपा-बसपा की पहली जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा था कि वो 1995 के गेस्ट हाउस कांड को भूल चुकी हैं.

2019 के पहले इस कांड की वजह से बीएसपी-एसपी के बीच 20 वर्षों से भी ज्यादा वक्त तक दुश्मनी रही. सवाल है कि आखिर गेस्ट हाउस कांड है क्या और 1995 में ऐसा क्या हुआ था कि मुलायम सरकार को समर्थन दे रही बीसएपी रातोंरात उसकी सबसे बड़ी दुश्मन बन बैठी.

मुलायम सिंह की सरकार में गेस्ट हाउस कांड

1995 में यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की गठबंधन की सरकार चल रही थी. 1 जून 1995 को यूपी के तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव समाजवादी पार्टी के नेताओं से मिल रहे थे. कांग्रेस के नेता पीएल पुनिया उस वक्त नौकरशाह के तौर पर मुख्यमंत्री के दफ्तर में तैनात थे. पीएल पुनिया समाजवादी पार्टी की बैठक में बिना बुलाए चले आए थे.

उन्होंने मुलायम सिंह यादव की तरफ एक पर्ची बढ़ा दी. समाजवादी पार्टी के नेताओं के मुताबिक पर्ची पढ़ते ही मुलायम सिंह यादव का रुख बदल गया. उन्होंने फौरन ऐलान कर दिया कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता चुनावों के लिए तैयार रहें. पार्टी की बैठक वहीं खत्म हो गई.

समाजवादी पार्टी के नेताओं ने बाद में बताया कि पीएल पुनिया की पर्ची में लिखा था कि बहुजन समाज पार्टी गठबंधन सरकार से अलग हो सकती है. दोनों पार्टियों के बीच पिछले कुछ समय से तनाव चल रहा था. लेकिन गठबंधन सरकार से अलग होने का अब तक कांशीराम ने कोई संकेत नहीं दिया था. इसलिए मुलायम सिंह यादव हैरान थे. यूपी में सपा-बसपा की गठबंधन सरकार के महज डेढ़ साल हुए थे.

2 जून 1995 को हुआ था लखनऊ का गेस्ट हाउस कांड

बीएसपी के गठबंधन सरकार से अलग होने की खबरों के बीच कुछ समाजवादी पार्टी के नेताओं की राय थी कि सरकार बचाने के लिए बीएसपी के विधायकों को तोड़ने की कोशिश करनी चाहिए. इस राय पर समाजवादी पार्टी के सीनियर लीडरशिप ने भी कोई असहमति नहीं दिखाई थी. 2 जून 1995 को मायावती लखनऊ के गेस्ट हाउस में पार्टी के विधायकों से मीटिंग कर रही थी. वो पार्टी के अगले कदम के बारे में विधायकों से राय मशविरा कर रही थीं.

उसी वक्त समाजवादी पार्टी के कुछ विधायक और जिला स्तर के कार्यकर्ता गेस्ट हाउस में पहुंच गए. उनलोगों ने गेस्ट हाउस में तोड़-फोड़ करनी शुरू कर दी. बहुजन समाज पार्टी के कई विधायक पीटे गए. समाजवादी पार्टी के नेताओं ने बीएसपी विधायकों को बंधक बना लिया. इस पूरे हंगामे से घबराकर मायावती ने खुद को गेस्ट हाउस के एक कमरे में बंद कर लिया.

मायावती को बीजेपी नेता ने निकाला था गेस्ट हाउस से बाहर

उसी दौरान तत्कालीन बीजेपी विधायक ब्रह्मदत्त द्विवेदी ने गेस्ट हाउस पहुंचकर मायावती को समाजवादी पार्टी के गुस्साए कार्यकर्ताओं से बचाया था. कहा जाता है कि अगर ब्रह्मदत्त द्विवेदी वक्त पर नहीं पहुंचते तो समाजवादी पार्टी के गुस्साए कार्यकर्ता मायावती के साथ भी मारपीट कर सकते थे. उस वक्त ओपी सिंह लखनऊ के एसएसपी थे. उनपर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं को जानबूझकर नहीं रोकने के आरोप लगे.

समाजवादी पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने बंदूक और लाठी डंडों से लैस होकर गेस्ट हाउस पर धावा बोला था. उन्होंने गेस्ट हाउस की बिजली और टेलीफोन लाइन काट दी थी. उस वक्त अखबारों में लिखा गया कि समाजवादी पार्टी के करीब 300 कार्यकर्ताओं की अगुआई पार्टी के दर्जनभर क्रिमिनल बैकग्राउंड वाले विधायक कर रहे थे. यूपी की राजधानी में सपा के कार्यकर्ताओं ने जमकर उधम मचाया था. मायावती उनके चंगुल से किसी तरह से बच पाईं थीं.

अजय बोस ने अपनी किताब बहनजी में लिखा है कि मायावती गेस्ट हाउस के कमरा नंबर 1 में बंद थी. बीएसपी के बाकी विधायकों को दूसरे कमरे में बंद किया गया था. मायावती के कमरे के बाहर समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता सेक्सिएस्ट कमेंट कर रहे थे, उनकी जाति को लेकर गालियां दी जा रही थीं. सपा के कार्यकर्ताओं ने बीएसपी के 5 विधायकों को किडनैप करके सरकार के समर्थन पत्र पर जबरदस्ती हस्ताक्षर करवा लिए थे.

गेस्ट हाउस कांड के बाद बर्खास्त हुई मुलायम सरकार

3 जून 1995 को यूपी कांग्रेस के दवाब में आकर तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने मुलायम सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया. मुलायम सिंह को अपना बहुमत साबित करने का मौका भी नहीं दिया गया. उसी शाम मायावती ने बीजेपी और जनता दल के बाहरी समर्थन से यूपी के नए सीएम के तौर पर शपथ ली.

इसके बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के रिश्ते काफी खराब हो गए. समाजवादी पार्टी और बीएसपी दोनों ही पार्टियां सामाजिक न्याय की पक्षधर थीं. दोनों का गठबंधन स्वाभाविक था लेकिन गेस्ट हाउस कांड के बाद बहुजन समाज पार्टी ने कभी भी समाजवादी पार्टी के साथ न जाने का संकल्प लिया. यहां तक कि सपा के साथ न जाकर उसने विपरित विचारधारा वाली पार्टी बीजेपी के समर्थन से दो बार सरकार बनाई.

गेस्ट हाउस कांड के बाद पहली बार 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले दोनों पार्टियां एकसाथ आईं. बहुजन समाज को इस गठबंधन का फायदा भी मिला. 2014 के चुनाव में एक भी सीट हासिल नहीं करने वाली बीएसपी ने 2019 में 10 सीटों पर जीत हासिल की.

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