अति पिछड़ों पर निगाह सपा की चुनावी रणनीति का हिस्सा अनायास नहीं है...

Update: 2018-02-09 10:04 GMT
लखनऊ। आगामी लोकसभा चुनाव के लिए जुटी समाजवादी पार्टी ने जहां गठबंधन की संभावनाएं खुली रखी हैं, वहीं अपनी ताकत बढ़ाने के लिए उसकी निगाहें अति पिछड़ों पर हैैं। बीते लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा की ओर रुझान रखने वाली इन जातियों में आरक्षण को लेकर अभी भी कसक बरकरार है और सपा ने इसे ही भुनाने की चाहत में उन पर डोरे डालने शुरू किए हैं। इसी कड़ी में जहां पार्टी ने पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के अध्यक्ष पद पर दयाराम प्रजापति को नियुक्त कर जहां इस समाज में पैठ बनाने की कोशिश की है, वहीं पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति के रिक्त स्थान की भरपाई भी की है।
समाजवादी पार्टी चुनाव से पहले ही पिछड़ा वर्ग में शामिल सत्रह जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग उठाती रही है। विधानसभा चुनाव से पहले सपा सरकार ने इस बारे में निर्णय भी किया था लेकिन हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी थी। यह दांव भी चुनावी ही था, लेकिन सपा को इसका लाभ नहीं हासिल हुआ था। करारी हार के सदमे से उबरने के बाद सपा ने फिर अपने इस एजेंडे को आगे बढ़ाया है।
कुछ दिन पहले जहां पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने वाराणसी में चौहान स्वाभिमान रैली को संबोधित किया, वहीं शामली में एक कश्यप परिवार की बारहवीं की छात्रा की हत्या के मामले में पार्टी ने जांच दल भी भेजा और सरकार पर भी हमलावर हुई। बजट सत्र में भी यह प्रकरण मजबूती से उठाया जाएगा। पिछले महीने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर भी सपा ने पार्टी मुख्यालय में कार्यक्रम आयोजित कर इस समाज को संदेश देने की कोशिश की।
अति पिछड़ों पर निगाह सपा की चुनावी रणनीति का हिस्सा अनायास नहीं है। पार्टी के थिंक टैंक को अहसास है कि उसके परंपरागत वोट बैंक समीकरण मुस्लिम यादव (एमवाई) के सहारे लोकसभा चुनाव में भाजपा का मुकाबला संभव नहीं होगा। इसीलिए उसे अन्य मतों की दरकार है। अति पिछड़ों का इस पार्टी के प्रति सॉफ्ट कार्नर इसलिए भी है क्योंकि 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की उनकी मांग भाजपा शासनकाल में अधर में ही है। इसीलिए दयाराम प्रजापति जैसे चेहरों को उभारा जा रहा है।
दयाराम से पहले इस प्रकोष्ठ के अध्यक्ष रह चुके मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल कहते हैं कि सत्रह पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की पार्टी की पुरानी मांग है। इस बीच इन जातियों के कई बड़े नेता सपा में शामिल हुए हैं। पार्टी मुख्यालय में इन जातियों के कई कार्यक्रम आयोजित किए जा चुके हैं। भाजपा सरकार में इनकी उपेक्षा की जा रही है, जिस पर पार्टी गंभीर है। 

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