रात का आकाश चांदी सी चमक से भर जाता है। ठंडी हवा में एक अलग ही मिठास घुली होती है। हर आँगन में दीपक जलते हैं, सजी हुई थालियाँ रखी होती हैं, और सैकड़ों नयनों की प्रतीक्षा बस एक ही दिशा में होती है — उस चाँद के लिए, जो करवाचौथ का साक्षी बनकर आता है।
यह कोई साधारण चाँद नहीं होता। यह वह सौभाग्य का प्रतीक चाँद है, जिसकी झिलमिल रोशनी में एक पत्नी अपने पति की दीर्घायु की प्रार्थना करती है। वह घंटों भूखी-प्यासी रहकर, पूरे प्रेम और विश्वास के साथ जब चंद्रमा को देखती है, तो उसकी आँखों में केवल थकान नहीं होती — वहाँ होता है अटूट समर्पण, आस्था और प्रेम का प्रकाश।
कहते हैं, जब वीरवती ने सच्चे मन से करवाचौथ का व्रत किया था, तब चंद्रमा उसकी आस्था का साक्षी बना। उसके पतिव्रत की शक्ति से मृत्यु भी उसके पति को छू न सकी। तब से चंद्रमा बन गया अखंड सौभाग्य का प्रतीक — जो हर स्त्री की श्रद्धा का केंद्र है।
चंद्रमा की शीतल रोशनी जैसे जीवन में शांति भर देती है, वैसे ही करवाचौथ का यह व्रत पति-पत्नी के रिश्ते में विश्वास, त्याग और प्रेम की ठंडक घोल देता है। जब पत्नी छलनी से झांकते हुए चाँद को देखती है, और फिर उसी चाँद की रोशनी में अपने पति का चेहरा देखती है, तो वह क्षण प्रेम और आस्था का सबसे पवित्र रूप बन जाता है।
करवाचौथ का यह चाँद सिखाता है कि सच्चा सौभाग्य बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि उस प्रेम और विश्वास में है जो दो आत्माओं को जोड़ता है। चंद्रमा तो बस उस पवित्र बंधन का प्रतीक है — शांत, धैर्यवान और शाश्वत।
इसलिए कहा जाता है
“करवाचौथ का चाँद केवल आकाश में नहीं उगता,
वह हर सच्चे प्रेम के हृदय में चमकता है।”