... इस बार वे राजा राममोहन राय के लिए आये!

Update: 2025-11-22 06:59 GMT


(आलेख : बादल सरोज)

जैसा भी समय हो, कैसा भी माहौल हो, कुनबा पूरी तल्लीनता के साथ अपना आख्यान बढ़ाने के काम में एकदम बगुला भाव से लगा रहता है। दिल्ली में बम धमाके हो रहे हैं, बिहार में चुनाव के बाद की खटपट चल रही है, दुनिया भर में देश की साख पर बट्टा लग रहा है, मगर भाई लोग देश के इतिहास में प्रकाश लाने वाले रोशनदानों, समाज को बेहतर और जीने योग्य बनाने वाले दरवाजों को मूंदने बंद करने के ‘पुण्य कार्य’ में लगे रहते हैं। मप्र के शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार द्वारा आधुनिक भारत के प्रमुख व्यक्तियों में से एक राजा राममोहन राय के बारे में की गयी टिप्पणी इसी बगुला भगती की निरंतरता में है। भाजपा के इस नेता ने उन्हें ‘अंग्रेजो का दलाल’ बताते हुए कहा कि ‘पश्चिम बंगाल में अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से लोगों की आस्था बदलने का औपनिवेशिक अभियान चलाया गया, जिसमे अंग्रेजों ने देश के कई लोगों को समाज सुधारक बनाकर पेश किया, जिनमें राजा राममोहन राय भी शामिल थे। वे कोई सुधारक नहीं थे, "अंग्रेजों के दलाल" के रूप में काम करने वाले थे’। उन्होंने यह भी कहा कि ‘राजा राम मोहन राय ने देश को जातियों में बांटने का कार्य किया।‘

इन्दर सिंह कुनबे में नई आमद नहीं है, पुराने संघी हैं, मध्यप्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री हैं, इसलिए उन्हें हाशिये का बन्दा फ्रिंज एलिमेंट’ बताकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता। उनके इस बेहूदा और आपराधिक बयान पर जब देश भर में तीखी प्रतिक्रिया हुई, तो इस मंत्री ने, कुनबे का आजमाया हुआ हुनर दिखाते हुए अपने कहे पर अफ़सोस जता दिया और ‘व्यक्तिगत रूप से राज राममोहन राय का सम्मान करने’ का दावा भी ठोंक दिया।

बयान वापसी का ड्रामा आँखों में धूल झोंकना है। कंकर फेंककर उठने वाली लहरों का अनुमान लगाना और धीरे-धीरे लोगों को उसका अभ्यस्त बना देना आरएसएस और भाजपा की आजमाई हुई विधा है। पहले बोल कर वातावरण बनाना, फिर वापसी का नाटक करना और उसे धीरे-धीरे अपनी आई टी सैल के जरिये उसे फैलाते रहना इनकी नियमित कार्यप्रणाली का हिस्सा है।

राममोहन राय पर यह हमला कुनबे की विचारधारा की संगति में हैँ। मंत्री अपने मन से नहीं बोल रहे थे – वे संघ के अभ्यास वर्गों में पढ़ाये गए कुपाठ को दोहरा रहे थे। गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने जिन्हें “भारतीय इतिहास के आकाश में चमकता सितारा”’ बताया था, अंधेरों के पुजारियों का ऐसे सितारे से डरना और चिढ़ना कोई अचरज की बात नहीं है। कुनबा कितना भी कुपढ़ और जाहिल क्यों न हो, वह अपने नापाक मंसूबों के रास्ते में अवरोध बनकर खड़े व्यक्तित्वों को जानता है, इसीलिए उन्हें निशाने पर लेता रहता है।

इस बार वे राममोहन राय के लिए आये हैं। पांच साल पहले उन्होंने विवेकाननद के रामकृष्ण आश्रम और उसकी परम्परा पर हमला बोला था, छः साल पहले उन्होंने खुद अमित शाह की अगुआई में निकली यात्रा के दौरान ईश्वरचन्द्र विद्यासागर कॉलेज पर धावा बोलकर उनकी मूर्ति तोड़ी थी, डॉ. अम्बेडकर की मूर्तियाँ गिराने का लगातार जारी अभियान अब उन्हें इतिहास से पूरी तरह मिटाने की यलगार में बदलता जा रहा है। भीमा कोरेगांव जिस असहनीय सामाजिक प्रणाली – पेशवाशाही – को पराजित करने का स्मारक है, उसे मिटा नहीं पा रहे, तो उस तक प्रवेश को प्रतिबंधित कर उसका इतिहास बदल रहे है ।

स्वतन्त्रता संग्राम के प्रतीकों के बारे में झूठ और अफवाहें फैलाकर उनके राजनीतिक-सामाजिक प्रभाव को कम करना इस गिरोह का 24×7 का काम है ही। जिन्हें हड़प सकते हैं, उन दयानन्द सरस्वती और गोरखनाथ जैसों का धृतराष्ट्र आलिंगन कर पहले ही हजम कर चुके है। कुल जमा ये कि सनातन की गहरी बंद गुफा में देश को एक बार फिर धकेल देने की राह में इतिहास की जो भी सामाजिक, धार्मिक, वैचारिक, दार्शनिक, राजनीतिक परम्परा असुविधाजनक लगेगी, उसे ठिकाने लगाया जाएगा।

राजा राममोहन राय भारत के नवजागरण – रेनेसाँ - आन्दोलन के पितामह माने जाते हैं। उनका योगदान उनके निजी योगदान के साथ-साथ उनके द्वारा शुरू की गयी बौद्धिक परम्परा के साथ-साथ भारतीय समाज को अन्धकार से निकालने वाले अनगिनत आन्दोलनों और उसे जारी रखने वाले महान व्यक्तित्वों के रूप में भी दिखा। इनमें प्रत्यक्ष प्रभाव वाले देवेन्द्र नाथ टैगोर, केशव चन्द्र सेन, पंडित शिवनाथ शास्त्री से लेकर रवींद्रनाथ टैगोर तथा प्रत्यावर्तित प्रभाव से प्रेरित ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, विवेकानंद, जोतिबा फुले, महादेव गोविन्द रानाडे से सर सैय्यद अहमद खान तक शामिल हैं। इनके द्वारा स्थापित किये गए संस्थान भारत के आधुनिकीकरण के औजार और प्रकाश स्तंभ बने।

19वी शताब्दी में शुरू हुआ यह भारतीय नवजागरण आंदोलन था, जिसने सदियों से चली आ रही रूढ़िवादी परंपराओं को चुनौती दी थी। आधुनिक भारत के निर्माण के रास्ते में बाधा बनी सामाजिक-धार्मिक दिमागी बेड़ियों पर निर्णायक प्रहार किये। इस सबके मिले-जुले असर के चलते भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के लिए बौद्धिक और सामाजिक आधार तैयार हुआ। ठीक यही वजह है कि आरएसएस को इन सबसे डर लगता है। उसमें भी खासकर राजा राममोहन राय उन्हें बहुत डराते हैं।

राजा राम मोहन राय अपने समय के उन गिने-चुने लोगों में से एक थे, जिन्होंने आधुनिक युग के महत्व को पूरी तरह से समझा। वे जानते थे कि मानव सभ्यता का आदर्श व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और परस्पर निर्भरता के भाईचारे में निहित है। उनका मानना था कि मानव समाज के विकास में जो भी नकारात्मक और हानिकारक है, उसे खत्म किया जाना चाहिए। जो भी मानवीय और सकारात्मक है, उसे आगे लाना चाहिए । वे भारतीय समाज का कलंक रही जघन्य सती प्रथा के उन्मूलन के कठिन संघर्ष को जीत तक पहुंचाने और उसे प्रतिबंधित करवाने वाला कानून बनवाने वाले के रूप में विख्यात है : यह बहुत बड़ा काम था, किन्तु राजा राममोहन राय सिर्फ यहीं तक महदूद नहीं है। उन्होंने सती प्रथा जैसी कुप्रथाएँ जिस कचरे से उपजती और पोषण पाती है, उसकी भी सफाई की। मूर्तिपूजा, कर्मकांडों, पुरोहितवाद और स्त्री की गौण सामाजिक स्थिति पर प्रहार किये। बहुदेववाद का विरोध किया तथा एकेश्वरवाद की वकालत की।

धार्मिक क्षेत्र में उनके द्वारा जिन सुधारों का सूत्रपात किया गया, उनने भी समाज की चेतना को आगे ले जाने में बड़ी भूमिका निबाही। इसके लिए उन्होंने ब्रह्म सभा – जो बाद में ब्रह्म समाज के रूप में जाना गया – की स्थापना की। यह पुरोहिताई, कर्मकांडों और बलि प्रथा के विरुद्ध और प्रार्थना, ध्यान और धर्मग्रंथों के पठन पर केंद्रित था। यह सभी धर्मों की एकता में विश्वास करता था। यह आधुनिक भारत का पहला बौद्धिक सुधार आंदोलन था। इसने बंगाल को ही जजीरों से मुक्त नहीं किया, भारत में बुद्धिवाद, तार्किकता और ज्ञानोदय का भी आरम्भ किया, जिसने, जैसा कि लिखा जा चुका है, स्वतन्त्रता संग्राम का आधार और माहौल बनाने में योगदान दिया।

भाजपा के नेता जिन राजा राममोहन राय को देश में जातिप्रथा को फैलाने वाला बता रहे थे, वे इसके ठीक उलट जाति व्यवस्था और उस पर टिकी छुआछूत और अंधविश्वास के विरुद्ध अभियान छेड़ने वाले नायकों में से एक हैं। उन्होंने डॉ. अम्बेडकर से भी बहुत पहले कुरीतियों और अंधविश्वासों, जाति चेतना और कर्मकांडों की वजह महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक गुलामी और शिक्षा से उन्हें अलग रखे जाने में ढूंढ ली थी और बाल विवाह, महिलाओं की निरक्षरता, पर्दा प्रथा और विधवाओं की दयनीय स्थिति पर प्रहार किया। महिला मुक्ति, महिला शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह का काम अपने एजेंडे पर लिया। महिलाओं के लिए उत्तराधिकार और संपत्ति के अधिकार की मांग की।

यह सब काम उन्होंने सिर्फ विचार के स्तर तक ही सीमित नहीं रखा, व्यवहार में भी उतारा : सिर्फ बताया नहीं, करके भी दिखाया । उन्होंने मूर्तिपूजा, जाति श्रेणीक्रम की कठोरता, पोंगापंथी अनुष्ठानों और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए कलकत्ता में आत्मीय सभा की स्थापना की। उन्होंने ईसाई धर्म के कर्मकांड की भी आलोचना की और ईसा मसीह को ईश्वर का अवतार मानने से इनकार कर दिया। न्यू टेस्टामेंट के नैतिक और दार्शनिक संदेश, जिसकी उन्होंने प्रशंसा की, मगर उसकी चमत्कारिक कहानियों से अलग भी किया।

डॉ. राधाकृष्णन के किसी और सन्दर्भ में कहे गए वाक्य में कहें तो, राजा राममोहन राय ने ‘सनातनी कूपमंडूकताओं का सिर्फ विरोध नहीं किया, उसकी जड़ों में ही पलीता लगा दिया।‘ इन दिनों सनातन की बहाली के लिए सारे घोड़े खोले बैठे गिरोह को 192 वर्ष पहले दैहिक रूप से दुनिया छोड़ गए इस समाज सुधारक की आभा से ठीक इन्ही वजहों से भय लगता है और सन्निपात में आकर वे उनके बारे में कुछ भी आंय-बांय-सांय बोलने लगते हैं।

राजा राममोहन राय आधुनिक और वैज्ञानिक शिक्षा, प्रेस की स्वतंत्रता, नागरिक आजादी के क्षेत्र में ही नहीं, आर्थिक नीतियों के मामलो में भी अपने समय के हिसाब से काफी आगे थे। उन्होंने बंगाली ज़मींदारों की दमनकारी प्रथाओं की निंदा की और न्यूनतम लगान तय करने की माँग की थी। कर-मुक्त ज़मीनों पर करों को समाप्त करने की भी माँग की। विदेशों में भारतीय वस्तुओं के जाने के समय लगाए जाने वाले निर्यात शुल्क में कमी करने तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारिक अधिकारों को समाप्त करने की भी मांग उठाई थी। इसी के साथ उन्होंने प्रशासनिक सेवाओं में भारतीयों को लेने और कार्यपालिका को न्यायपालिका से अलग करने की माँग की थी। उनके जाने के कोई दो सौ बरस बाद आज देश को ठीक उसी तरह के हालात को वापस लाने में लगे संघ-भाजपा को पता है कि राजा राममोहन राय जैसे क्रांतिकारी सुधारक उनके किये में बाधा बन सकते हैं, इसलिए निशाना उन पर है।

उनका डर अस्वाभाविक नहीं है। यह राजा राममोहन राय थे, जिन्होंने पहली बार अंग्रेजी भाषा में "हिंदुइज्म” शब्द का प्रयोग किया था। 1816 में लिखी अपनी एक किताब में यह शब्द उन्होंने मुख्य रूप से तब के हिंदू समाज में प्रचलित अंधविश्वासों, मूर्तिपूजा, बहुविवाह, बाल विवाह और सती प्रथा जैसी कुरीतियों के संदर्भ में प्रयोग किया था, जिनका वे घोर विरोध करते थे। इस तरह उन्होंने "हिंदुइज्म" शब्द का उपयोग हिंदू धर्म की उन पारंपरिक मान्यताओं और प्रथाओं का वर्णन करने के लिए किया था, जिन्हें वे तर्कहीन मानते थे और जिन्हें वे सुधारना चाहते थे। ऐसे हिन्दुइज्म और उसके नाम पर सनातन की बहाली के लिए प्रतिबद्ध संघ-भाजपा के लिए राममोहन राय की शिक्षाएं उनके मंसूबों पर पानी फेरने वाली लगती हैं और ठीक ही लगती हैं।

इस तरह यह एक व्यक्ति या विचार पर हमला नहीं है। नवजागरण के जरिये बुद्धि, विवेक, तर्क और विज्ञान पर आधारित सोच-समझ लाने के उस क्रांतिकारी योगदान पर हमला है, जिसने इस देश को स्वतन्त्रता, संविधान, समता, समानता की धारणा और लोकतंत्र दिया। उस मनुवाद की संगति में हैँ, जो स्त्रियों के सती किये जाने को महान परम्परा के रूप में पूजता है : सती प्रथा का गौरव गान करता है। 1987 में राजस्थान के देवराला में युवती रूपकुंवर को सती किये जाने के समय और उसके बाद बने मंदिरों और मेलों में अगुआई करके यह उसे अमल में भी लाता रहा है : बाकी तो जो है, सो है ही।

यह उस राजनीतिक महापरियोजना को लागू करने की दिशा में माहौल बनाने का एक चरण है, जिसका अंतिम लक्ष्य भारत में सनातन धर्म पर आधारित हिन्दू-राष्ट्र की स्थापना करना है। जिसके लिए शेष सभी धर्म, स्वयं हिन्दू धर्म के मत, पंथ, सम्प्रदाय, दर्शन, विचार और परम्पराओं का खात्मा इसका मिशन है। तार्किकता को मूर्खता, वादविवाद और संवाद को कायरता और वैज्ञानिक सोच को अभारतीय करार देना इस धतकरम की पूर्व-शर्त है।

यदि बयान वापसी दिखावा नहीं था और भाजपा सच में मंत्री के बयान को गलत मानती थी, तो उसे तुरंत इस मंत्री को कैबिनेट से बर्खास्त करना चाहिये था। मगर ऐसा नहीं हुआ। जितनी त्वरित कार्यवाही देश लूटने वाले अडानी के 63 हजार करोड़ का घोटाला उजागर करने पर अपने ही पूर्व केंद्रीय मंत्री आर के सिंह के विरुद्ध की है, वैसी फुर्ती भाजपा ने देश को सभ्य बनाने वाले असाधारण सुधारकों में से एक, भारत के नवजागरण आन्दोलन के पुरोधा राजा राममोहन राय के इतने असभ्य अपमान पर नहीं दिखाई। ऐसा करके भाजपा ने बता दिया है कि वह अपना असली पुरखा किसे मानती है।

(लेखक 'लोकजतन' के संपादक और अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव हैं। संपर्क : 94250-06716)

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