“कट्टरता चुप्पी में जन्म लेती है, हिम्मत में मिटती है” — हैदर नक़वी का समाज को आत्ममंथन कराने वाला संदेश

Update: 2025-11-11 16:35 GMT

हिंदुस्तान टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार हैदर नक़वी ने एक्स (ट्विटर) पर एक भावनात्मक और विचारोत्तेजक पोस्ट साझा की, जिसमें उन्होंने समाज, धर्म और युवाओं की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए। उन्होंने लिखा कि जब पढ़े-लिखे मुस्लिम नौजवान — डॉक्टर, इंजीनियर या शिक्षित वर्ग — आतंकी रास्तों की ओर बढ़ने लगें, तो समाज को महज़ यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ लेना चाहिए कि “यह इस्लाम नहीं है”, बल्कि यह सोचना चाहिए कि हम घर, मस्जिद और क्लासरूम में कौन सी ज़रूरी बातचीत करना भूल गए हैं।



नक़वी ने लिखा कि धर्म को सियासत का औज़ार नहीं बनना चाहिए, लेकिन यह भी सच है कि कट्टरपंथी ताक़तें युवाओं के दर्द, अकेलेपन और पहचान के संकट का फायदा उठाकर उन्हें अपनी विचारधारा का शिकार बना लेती हैं।

उन्होंने ज़ोर दिया कि इस ज़हर का इलाज सिर्फ़ सरकार के पास नहीं है, बल्कि यह समाज के हर ज़िम्मेदार व्यक्ति — बुज़ुर्गों, शिक्षकों, धर्मगुरुओं, लेखकों और कलाकारों — की भी साझा ज़िम्मेदारी है।

“युवा अपनी ताक़त भागीदारी में खोजें, बेचारगी में नहीं”

हैदर नक़वी ने मुस्लिम युवाओं से अपील की कि वे खुद को पीड़ित के रूप में नहीं, बल्कि निर्माता और भागीदार के रूप में देखें। उन्होंने कहा कि नौजवानों को समाज सेवा, बिज़नेस, विज्ञान, शिक्षा और कला जैसे क्षेत्रों में आगे बढ़कर अपनी पहचान बनानी चाहिए।

> “हमें नफ़रत और ग़ुस्से से अलग, एक मक़सद वाली नई कहानियाँ और नए हीरो तैयार करने होंगे। जब समझदार लोग चुप हो जाते हैं, तो उस ख़ाली जगह को कट्टरपंथी भर देते हैं,”

नक़वी ने लिखा।

संस्कृति और कला से परिवर्तन का रास्ता

उन्होंने अपने विचार में कला और संस्कृति की ताक़त को रेखांकित करते हुए कहा कि तमिलनाडु की दलित फ़िल्मों ने लंबे समय तक दबे समाज को अपनी आवाज़ और गौरव दिया।

उन्होंने अमेरिकी लेखक जेम्स बाल्डविन का ज़िक्र करते हुए कहा कि उन्होंने अफ्रीकी-अमेरिकियों को सिखाया कि कैसे अपने दुख को कला, आलोचना और नैतिक हिम्मत में बदलकर सम्मान हासिल किया जा सकता है।

> “मुस्लिम समाज को भी ऐसी ही सांस्कृतिक क्रांति की ज़रूरत है — ऐसे कहानीकार और रचनाकार जो धर्म को डर और ग़ुस्से से निकालकर सोच, संवेदना और आत्मविश्वास से जोड़ सकें।”

“कोई भी जन्म से कट्टर नहीं होता”

हैदर नक़वी ने कहा कि कट्टरता तब जन्म लेती है जब समाज में सवाल पूछना बंद हो जाता है, और सोचने की जगह सिर्फ़ एक विचारधारा थोप दी जाती है।

उन्होंने कहा कि एक मज़बूत धर्म को जाँच और सवालों से डर नहीं लगता।

> “ख़ुद की कमियाँ देखना गद्दारी नहीं, बल्कि हिम्मत है। यह उस भरोसे को फिर से बनाने की कोशिश है, जहाँ डर और नफ़रत ने ज़हर बोया है।”

उनका कहना था कि यह लड़ाई धर्मों के बीच नहीं, बल्कि उन लोगों के बीच है जो ज़िंदगी को क़ीमती मानते हैं और जो उसे बर्बाद करना चाहते हैं।

“युवाओं को दिशा देनी होगी, सिर्फ़ डर नहीं”

नक़वी ने समाज से आह्वान किया कि युवाओं को सिर्फ़ नसीहत नहीं, बल्कि उम्मीद और उद्देश्य दिया जाना चाहिए।

> “हमारी असली लड़ाई कट्टरता पर लगाम लगाने की नहीं, बल्कि युवाओं की सोच को उड़ान देने की है — उन्हें ऐसा कुछ देने की है जिसकी वे आस रखें, न कि सिर्फ़ ऐसा जिससे वे डरकर रक्षा करें।”

हैदर नक़वी की यह पोस्ट केवल एक सोशल मीडिया टिप्पणी नहीं, बल्कि एक सामाजिक दस्तावेज़ जैसी चेतावनी है।

उन्होंने पूरे देश को यह सोचने पर मजबूर किया कि कट्टरपंथ के खिलाफ़ असली हथियार कानून नहीं, बल्कि संवाद, शिक्षा, कला और समझदारी है।

उनका संदेश यही है —

> “कट्टरता चुप्पी में जन्म लेती है, हिम्मत में मिटती है।”

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