तुलसी विवाह 2025 : भगवान विष्णु और माता तुलसी के दिव्य मिलन का पावन पर्व, 2 नवंबर को मनाया जाएगा।

Update: 2025-10-29 13:52 GMT


साभार - विजय तिवारी

हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का पर्व एक अत्यंत शुभ और पवित्र अवसर माना गया है। यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है, जब देवी तुलसी (श्री वृंदा) और भगवान विष्णु (शालिग्राम) का दिव्य विवाह संपन्न हुआ था। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक जीवन में भी मंगलमय आरंभ का प्रतीक माना जाता है।

तुलसी विवाह की पौराणिक कथा

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, देवी तुलसी, असुरराज जालंधर की पत्नी थीं। तुलसी के पतिव्रत और तपस्या के बल से जालंधर अजेय हो गया था। देवताओं के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने जालंधर का वध किया। जब तुलसी को इसका सत्य ज्ञात हुआ, तो उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर के रूप (शालिग्राम) में परिवर्तित हो जाएंगे। तुलसी के श्राप के प्रभाव से वे शालिग्राम बन गए, और देवी तुलसी भी एक पवित्र पौधे के रूप में पृथ्वी पर प्रतिष्ठित हुईं। बाद में भगवान विष्णु ने तुलसी से विवाह करने का वचन दिया — इसी के उपलक्ष्य में तुलसी विवाह का पर्व मनाया जाता है।

इस वर्ष का शुभ मुहूर्त

इस वर्ष तुलसी विवाह रविवार, 2 नवंबर 2025 को मनाया जाएगा।

मुख्य शुभ मुहूर्त (दोपहर) : 01:27 बजे से 02:50 बजे तक

सायंकालीन मुहूर्त : 07:13 बजे से 08:50 बजे तक

इन मुहूर्तों में तुलसी-शालिग्राम विवाह, पूजा या किसी भी धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन अत्यंत फलदायी और मंगलकारी रहेगा।

पूजा विधि और परंपराएं

तुलसी विवाह के दिन घरों और मंदिरों को पुष्पमालाओं, दीपों और रंगोली से सजाया जाता है। तुलसी के पौधे को दुल्हन की तरह सजाकर उस पर चुनरी ओढ़ाई जाती है, वहीं शालिग्राम को दूल्हे के रूप में सुसज्जित किया जाता है।

विवाह से पूर्व मंगल गीत और वेद मंत्रों के साथ पूजा आरंभ होती है।

तुलसी और शालिग्राम का सिंदूर, हल्दी, फूल, चंदन, मिठाई और दीपक से पूजन किया जाता है।

इसके बाद तुलसी-शालिग्राम का विवाह संस्कार कर आरती की जाती है।

भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और विवाह के पश्चात प्रसाद वितरण और दान-पुण्य करते हैं।

धार्मिक और सामाजिक महत्व

शास्त्रों में तुलसी विवाह को सौभाग्य, समृद्धि और सुख-शांति का प्रतीक बताया गया है। इस दिन किया गया विवाह, दान, या कोई भी शुभ कार्य अक्षय पुण्य प्रदान करता है।

तुलसी विवाह के साथ ही देवउठनी एकादशी के अगले दिन से देव जागरण होता है, जिसके बाद विवाह, गृहप्रवेश और अन्य मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।

आध्यात्मिक संदेश

तुलसी विवाह हमें यह संदेश देता है कि सच्ची भक्ति और पवित्रता से ईश्वर तक पहुँचना संभव है। तुलसी का पौधा न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है — यह वायु को शुद्ध करता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।

इस कार्तिक द्वादशी को तुलसी विवाह मनाकर भक्त अपने जीवन में सुख, सौभाग्य और आध्यात्मिक उन्नति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

यह पर्व भगवान विष्णु और माता तुलसी के अनंत प्रेम, समर्पण और पवित्रता का प्रतीक है, जो भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

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