आस्था की आड़ में "अवैध मुनाफा" – कांवड़ियों की थाली में बीमारियों की खुराक परोस रहे हैं रेल अफसर!
रिपोर्ट: ओ पी श्रीवास्तव संग मोहम्मद अफजल...
चंदौली / पीडीडीयू नगर: श्रावण मास में शिवभक्त कांवड़िए पूरे विश्वास के साथ नदियों का जल लेकर बाबा को अर्पित करने निकलते हैं, लेकिन चंदौली के पंडित दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन पर इन श्रद्धालुओं की आस्था को न केवल ठगा जा रहा है, बल्कि उसे सीधा बीमारियों की ओर धकेला जा रहा है – और यह सब कुछ रेलवे के जिम्मेदार अफसरों की नाक के नीचे हो रहा है।
जहां एक ओर रेल प्रशासन कांवड़ियों की सुविधा को लेकर प्रेस नोट और दावों की फेहरिस्त जारी कर रहा है, वहीं जमीनी हकीकत उससे उलट और चिंताजनक है। रेलवे यार्ड से चलती ट्रेनों में दर्जनों अवैध वेंडर बेधड़क चढ़ते हैं, और घटिया, अनहाइजेनिक व अक्सर सड़ी-गली खाद्य सामग्री यात्रियों को बेचते हैं।
ये वेंडर केवल बिना अनुमति नहीं हैं, बल्कि नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए स्वास्थ्य मानकों और सुरक्षा प्रोटोकॉल दोनों को बलि चढ़ा रहे हैं। दुखद पहलू ये है कि यह सब कुछ उन सुरक्षा एजेंसियों (RPF-GRP) और कमर्शियल विभाग के सामने हो रहा है जिनका काम ही निगरानी और नियंत्रण करना है।
रेलवे अफसरों की "साठगांठ" या "सिस्टम फेल"?
जंक्शन पर रोजाना 150 से 200 ट्रेनों का संचालन होता है और यात्रियों की संख्या 15 से 20 हजार तक पहुंचती है। सावन में यह आंकड़ा और बढ़ जाता है। यही मौका बनता है उन अफसरों के लिए जो सिस्टम को कैश कराने में माहिर हो गए हैं!कमर्शियल विभाग की जिम्मेदारी होती है कि खानपान की गुणवत्ता, स्टॉल संचालन और वेंडिंग व्यवस्था को नियमित करे। लेकिन मालूम ये होता है कि अधिकारी खुद इस 'अव्यवस्था' के 'सुपरवाइजर' बन बैठे हैं। लाइसेंसी स्टॉल संचालकों के नाम पर चार गुना अधिक वेंडर ट्रेनों में भेजे जा रहे हैं, जो यात्रियों की जेब काटने के साथ-साथ रेल की साख भी कुतर रहे हैं।
जब जिम्मेदार ही बन जाएं मुनाफाखोरों के भागीदार
कहने को स्टेशन पर RPF और GRP की तैनाती है, लेकिन ये वर्दियां किसकी सुरक्षा कर रही हैं? यात्रियों की या फिर अवैध कारोबारियों की? ये वेंडर स्टेशन पर नहीं चढ़ते — बल्कि यार्ड से सीधे चलती ट्रेनों में सवार होकर कुछ ही स्टेशनों के भीतर उतर जाते हैं। यानी सब कुछ एक ‘मैनेज व्यवस्था’ के तहत हो रहा है।अगर ये अफसर वाकई जिम्मेदार होते, तो ये हालात कभी न बनते। लेकिन यहां तो बढ़ती अवैध वेंडिंग से केवल पेट नहीं भर रहा, जेबें भी भर रही हैं – वो भी दोनों हाथों से। अब सवाल यह है कि क्या रेल प्रशासन अपनी आंखें खोल पाएगा?खानपान की गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों की खुलेआम धज्जियां उड़ाने वालों पर कोई कार्रवाई होगी?कमर्शियल विभाग और सुरक्षा एजेंसियों की जवाबदेही तय की जाएगी या फिर यह भी सिर्फ एक खानापूर्ति बनकर रह जाएगा?
जब सरकारें कांवड़ियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए करोड़ों खर्च कर रही हों, तो रेलवे जैसे विभाग में इतनी ढीली निगरानी घोर लापरवाही ही नहीं, बल्कि आपराधिक उदासीनता है।रेलवे प्रशासन के लिए यह वक्त है – या तो कार्रवाई करे या भरोसा खोने के लिए तैयार रहे।