सोचिये, मुकराइये और ताव से कहिये......हां.... हम....बनारसी हैं : प्रेम शंकर मिश्र

Update: 2017-08-08 12:51 GMT
अपने बनारसी लोग होते बहुत सयाने हैं, और जो मौके का फायदा ना उठा पाये वो बनारसी हो ही नही सकता।

आइये कुछ काल्पनिक घटनाओं में बनारसी लक्षण का विश्लेषण करते हैं।

एक बनारसी जब दूसरे बनारसी को बुलाता है तो आने वाला बनारसी.... गुरु पहिले पान-पत्ता जमवावा फ़िर कौनो बात होई। (लगा दिया पान का चुना)

एक बनारसी जब दूसरे बनारसी को बुलाता है और बुलाने वाला देर से आता है.... गुरु तोहार इंतेज़ार करत-करत 5 कप चाय सलटा देहली, पहिले चाय के पेमेंटवा कर द तब चलल जाय (दे दिया 5 कप चाय का फटका)

एक बनारसी जब दूसरे बनारसी को बुलाता है, तो आने वाला बनारसी जानबूझ के मीटिंग पॉइंट कोई कचौड़ी-जलेबी की दुकान पे रखता है, और आते ही..... गुरु पहिले दु-दु ठे कचौड़ी अउर सौ-सौ ग्राम जलेबी हो जाये तब मंडउल बने (आते मान भिड़ा देहलस)

एक बनारसी जब दूसरे बनारसी को शाम के समय बुलाता है आने वाला बनारसी जानबूझ के मीटिंग पॉइंट ठंडई की दुकान रखता है और आने के बाद दो-चार इधर-उधर की बात करने के बाद....गुरु बड़ी दिन भयल ठंडई छाने, चला लप्प से दु ठे बड़का पुरवा आर्डर करा (भिड़ा देहलस कम से कम 100 रुपइया)

सोचिये, मुकराइये और ताव से कहिये......हां.... हम....बनारसी हैं।

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