आप व आप के सभी परिवार को शरद पूर्णिमा एवं महर्षि बाल्मीकि जयंती की हार्दिक शुभ कामनाएं!
आज संवत २०७७ आश्विन शुक्ल पूर्णिमा शनिवार 31 अक्तूवर 2020 को ब्रत वा स्नान दान की पूर्णिमा है ||
पं. अनन्त पाठक :-
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष शारदीय नवरात्र के बाद आने वाले पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसे रास पूर्णिमा, जागृति पूर्णिमा या कुमार पूर्णिमा तथा कोजागरा के नाम से भी जाना जाता है I पूनम की रात्रि आदि इनमे चंद्रमा के नीचे बैठ कर जप व् त्राटक करने को महत्व दिया गया है। शरद पूर्णिमा को धवल चांदनी में जप-तप करने से कई रोगों से छुटकारा मिलता है।
पौराणिक मान्यताओ के अनुसार -
धवल चांदनी में मां लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण के लिए आती हैं। शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की मध्य रात्रि के बाद मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर बैठकर धरती के मनोहर दृश्य का आनंद लेती हैं।साथ ही माता यह भी देखती हैं कि कौन भक्त रात में जागकर उनकी भक्ति कर रहा है। इसलिए शरद पूर्णिमा की रात को कोजागरा भी कहा जाता है। कोजागरा का शाब्दिक अर्थ है कौन जाग रहा है। मान्यता है कि जो इस रात में जागकर मां लक्ष्मी की उपासना करते हैं मां लक्ष्मी की उन पर कृपा होती है। शरद पूर्णिमा को दिन में पीपल के सात परिक्रमा करनी चाहिए इससे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है।
शरद पूर्णिमा के विषय में ज्योतिषीय मत है कि जो इस रात जगकर लक्ष्मी की उपासना करता है उनकी कुण्डली में धन योग नहीं भी होने पर माता उन्हें धन-धान्य से संपन्न कर देती हैं। प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है। कार्तिक मास का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारंभ होता है। पूरे माह पूजा-पाठ और स्नान-परिक्रमा का दौर चलता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार -
इस दिन भगवान श्री कृष्ण 'कार्तिक स्नान' करते समय स्वयं (कृष्ण) को पति रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को चीर हरण के अवसर पर दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रास रचाया था।इसलिए इसे 'रास पूर्णिमा' भी कहा जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है।
इन दिनों में ग्रह नक्षत्र के हिसाब से वातावरण में एक अध्यात्मिक तरंगे मौजूद होती हैं। जिस से सात्विक व सकारात्मक विचार व मस्तिष्क प्रफुलित होता है इसलिए इसका फायदा उठाना चाहिए।
- शरद पूर्णिमा की रात्रि चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है और उसकी उज्जवल किरणें पेय एवं खाद्य पदार्थों में पड़ती हैं तो उसे खाने वाला व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है। उसका शरीर पुष्ट होता है। चंद्रमा ही सब वनस्पतों को रस देकर पुष्ट करता है।
भगवान ने भी कहा है,'पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।'
अर्थात् - अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात् वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं।' (गीताः १५-१३)
धर्मशास्त्र में वर्णित कथाओं के अनुसार देवी-देवताओं के अत्यंत प्रिय पुष्प ब्रह्मकमल भी इसी दिन खिलता है।शरद पूर्णिमा को चंद्रमा पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता है इस रात चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है और मां लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से भी यह रात्रि स्वास्थ्य व सकारात्मकता प्रदान करनेवाली मानी जाती है। मन इन्द्रियों का निग्रह कर अपनी शुद्ध अवस्था में आ जाता है। मन निर्मल एवं शांत हो जाता है, तब आत्मसूर्य का प्रकाश मनरूपी चन्द्रमा पर प्रकाशित होने लगता है।
आपने शरद पूर्णिमा की रात अक्सर खीर बनाने के महत्व को सुना होगा।
आज हम आपको इस रात के सेहत से जुड़े महत्व को स्पष्ट करने जा रहे हैं,आप जानते होंगे की शरद ऋतु के प्रारम्भ में दिन थोड़े गर्म और रातें शीतल हो जाया करती हैं I आयुर्वेद अनुसार यह पित्त दोष के प्रकोप का काल माना जाता है और मधुर तिक्त कषाय रस पित्त दोष का शमन करते हैं।
आयुर्वेद में शरद पूर्णिमा इस पूर्णिमा पर दूध और चावल मिश्रित खीर पर चन्द्रमा की किरणों को गिरने के लिए रख देते हैं। चन्द्रमा तत्व एवं दूध पदार्थ समान ऊर्जा धर्म होने के कारण दूध अपने में चन्द्रमा की किरणों को अवशोषित कर लेता है।मान्यता के अनुसार उसमें अमृत वर्षा हो जाती है और खीर को खाकर अमृतपानका संस्कार पूर्ण करते हैं।
शरद पूर्णिमा के अवशर निरोगी खीर बनाने की विधि:-
शरद पूर्णिमा को देसी गाय के दूध में दशमूलक्वाथ- सौंठ,काली मिर्च,वासा,अर्जुन की छाल चूर्ण,तालिश पत्र चूर्ण, वंशलोचन, बड़ी इलायची,पिप्पली इन सबको आवश्यक मात्रा में मिश्री मिलाकर पकायें और खीर बना लें I खीर में ऊपर से शहद और तुलसी पत्र मिला दें ,अब इस खीर को ताम्बे के साफ़ बर्तन में रातभर पूर्णिमा की चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे ऊपर से जालीनुमा ढक्कन से ढक कर छोड़ दें और अपने घर की छत पर बैठ कर चंद्रमा को अर्घ देकर,अब इस खीर को रात्रि जागरण कर रहे दमे के रोगी को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त सूर्य की किरण से पहले (4-5:30 बजे प्रातः) सेवन कराएं I
इससे रोगी को सांस और कफ दोष के कारण होने वाली तकलीफों में काफी लाभ मिलता है I रात्रि जागरण के महत्व के कारण ही इसे जागृति पूर्णिमा भी कहा जाता है ,इसका एक कारण रात्रि में स्वाभाविक कफ के प्रकोप को जागरण से कम करना हैI इस खीर को मधुमेह से पीड़ित रोगी भी ले सकते हैं, बस इसमें मिश्री की जगह प्राकृतिक स्वीटनर स्टीविया की पत्तियों को मिला दें I
उक्त खीर को स्वस्थ व्यक्ति भी सेवन कर सकते हैं ,बल्कि इस पूरे महीने मात्रा अनुसार सेवन करने साइनोसाईटीस जैसे उर्ध्वजत्रुगत (ई.एन.टी.) से सम्बंधित समस्याओं में भी लाभ मिलता है Iकई आयुर्वेदिक चिकित्सक शरद पूर्णिमा की रात दमे के रोगियों को रात्रि जागरण के साथ कर्णवेधन भी करते हैं ,जो वैज्ञानिक रूप सांस के अवरोध को दूर करता है I तो बस शरद पूर्णिमा को पूनम की चांदनी का सेहत के परिप्रेक्ष्य में पूरा लाभ उठाएं बस ध्यान रहे दिन में सोने को अपथ्य माना गया है।
-------=============------ 🙏 पं. अनन्त पाठक