विगत एक सप्ताह से सदन के अंदर और बाहर कृषि विधेयक - 2020 को लेकर तांडव मचा हुआ है । भारतीय जनता पार्टी का दोनों सदनों में से लोकसभा में बहुमत है, जहां विधेयक आसानी से पास हो गया । लेकिन संख्या बल को देखते हुए ऐसा प्रतीत हो रहा था कि राज्यसभा में विधेयक फंसेगा। लेकिन विपक्ष द्वारा ऐसा हंगामा किया गया कि 8 सांसदों को इस सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया।इसके बाद बिल पर बहस के बजाय आठ सांसदों की हरकत पर बहस और चर्चा शुरू हुई। जैसा कि सरकारें पहले भी करती आई हैं, सरकार ने मैनेज किया और कृषि विधेयक पास हो गया। सदन में पास होने के बाद उसके खिलाफ कई राज्यों में आज भी हंगामा चल रहा है। आज भी कई चैनलों पर डिबेट चल रही है। और ऐसा लग रहा है कि अभी न तो मीडिया शांत होने वाली है और न ही किसान चुप बैठने वाले हैं। आश्चर्य की बात यह है कि किसानों का यह आंदोलन स्वतःस्फूर्त है। किसान और सरकार दोनों अड़े हुए हैं । सरकार इसे किसानों के लिए हितकर बता रही है । साथ मे विपक्ष पर आरोप भी लगा रही है कि वह इसे हवा दे रहा है। किसानों को बरगला रहा है। लेकिन किसानों पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ रहा है। आंदोलन तीव्र होता जा रहा है। हालांकि केंद्र और प्रदेश भाजपा सरकारों द्वारा किसान नेताओं को समझाने और मनाने का सिलसिला चल रहा है।
पूरे देश मे कृषि विधेयक - 2020 के खिलाफ किसान क्यों आंदोलित है, इसे समझने के लिए विधेयक को समझने की जरूरत है। कृषि विधेयक - 2020 के तहत तीन बिल पास हुए हैं। तीनों बिलों पर मोदी सरकार किसानों के लिए इस बिल में क्या क्या संभावनायें है, यह बता रही है । लेकिन इसके बावजूद भ्रम बना हुआ है। ऐसा लग रहा है कि पूरी लड़ाई संभावना और भ्रम की है। आइये ! उस पर विचार करते हैं। इस समय किसान विधेयक के जिस भाग को लेकर आंदोलित है। वह कृषि विधेयक का पहला भाग है। इसके अनुसार किसान अब अपनी उपज सरकारी मंडियों में ही नही, कहीं भी बेच सकेगा। यानी वहां बेच सकेगा, जहाँ उसे दो पैसे अधिक मिलेंगे। बिल में यह व्यवस्था है कि इस विधेयक के लागू होने के बाद आढ़तियों की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि आढ़तियों की जगह अडानी और अम्बानी ले लेंगे । और छोटे किसानों की उन तक पहुंच नही होगी । इसलिए छोटे किसान अपनी उपज बड़े किसानों को भेजने के लिए बाध्य होंगे। लेकिन जब मैं विगत वर्षों में किसानों के उपज बेचने की प्रक्रिया पर नजर डालते हैं, तो पाते हैं कि सरकारी मंडियों में अपनी उपज बेचने वालों का प्रतिशत 10 से भी कम है। यानी कृषि विधेयक 2020 के पास होने के पहले सभी किसान अपनी फसल कृषि मंडी में ही बेचते रहे हैं, ऐसा नहीं है। जितने भी छोटे जोत के किसान हैं, उनके पास कोई जमा पूंजी नही होती है। इसलिए बीज, खाद और सिचाई तक कि व्यवस्था वे किसी न किसी से उधार लेकर ही करते हैं। और जैसे ही ऐसे किसानों की फसल तैयार होती है, उनका तगादा शुरू हो जाता है। और छोटे किसान के पास न तो इतनी उपज होती है और न ही सरकारी मंडियों तक ले जाने के उसके पास संसाधन होते हैं। इस कारण इस देश के हर छोटे किसान अपनी उपज मंडियों के बाहर ही बेचते हैं। ऐसे बनिया या बड़े किसान को बेचते हैं, जो उन्हें हाथो हाथ भुगतान कर देता है। हाँ, इतना जरूर है कि छोटे किसानों को अपना अनाज बाजार भाव से कुछ सस्ता बेचना पड़ता है।
साथ ही सरकारी मंडियों में कुछ मोटे अनाज के खरीदने और बेचने की व्यवस्था भी नहीं होती है। इस कारण व्यापारी ऐसे अनाजों को औने पौने दामों में खरीद लेता है। किसान को क्या चाहिए ? उसकी उपज का पूरा मूल्य। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को इतना करना चाहिए कि किसान छोटा हो या बड़ा, किसान मंडी में बेचे या मंडी से बाहर। किसान अपने राज्य में बेचे या दूसरे राज्य में । उसे सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मूल्य से कम दाम नही मिलना चाहिये। सरकार को इस बात की गारंटी देना चाहिए और इस बिंदु को विधेयक में शामिल करना चाहिये। फिर कहीं कोई दिक्कत ही नहीं आएगी। और यह बात देश के किसान को भी समझ में आएगी ।
अब बात कृषि विधेयक के दूसरे भाग पर चर्चा कर लेते हैं । इस विधेयक का दूसरा बिल ज्यादा शोषण करने वाला है। भारत के छोटे किसानों को गुलामी की स्थिति में डालने वाला है। उसे बंधुआ मजदूर में तब्दील करने वाला है। वह कांट्रेक्ट फार्मिंग। इसके तहत किसानों से लीज के तहत कारपोरेट जमीन लेगा और उसका एक निश्चित मूल्य उसे चुका देगा। इससे हमारी पूरी ग्रामीण व्यवस्था चरमरा जाएगी। अभी तक जो व्यक्ति अपनी जमीन पर खेती नही करता है, वह अपने जमीन को बटाई पर दे देता है। देश के विभिन्न भागों में इसकी अलग अलग शर्ते पाई जाती हैं। कहीं कहीं जिसकी जमीन होती है, उसे अपने बटाईदार को कुछ भी नही देना होता है। कहीं कही हर खर्च में आधा देना पड़ता है । कहीं कहीं एक चौथाई मिलता है। इस व्यवस्था से भूमिहीन व्यक्ति और उसका परिवार भी पल जाता है। इस विधेयक के आने के बाद ऐसी जमीन कारपोरेट घरानों के पास लीज पर चली जायेगी और जो भूमिहीन किसान है। वह मजदूर बन कर रह जाएगा। वह कारपोरेट घरानों पर पूरी तरह आश्रित हो जाएगा। इतना ही नही, इस विधेयक के बाद जो भी किसान लीज पर अपनी जमीन किसी को देगा, वही सारे नियम और कानून उस पर भी लागू होंगे, जो कारपोरेट घरानों द्वारा लीज पर लेने पर लागू होंगे। इस तरह बटाई की आ रही वर्षों पुरानी परंपरा समाप्त हो जाएगी ।
इन दोनों बिलों से ज्यादा खतरनाक तीसरा बिल है। जिसमें अनाज को आवश्यक उत्पाद से बाहर कर दिया गया है। इसका सीधा लाभ अनाज के बड़े व्यापारियों को होगा। वे अनाज का जब तक चाहेंगे, संग्रह कर सकते हैं। जब मनमाफिक दाम मिलेगा, तब उसे बेच सकते हैं। इससे कालाबाजारी की प्रवृत्ति बढ़ेगी। महंगाई ऐसे व्यापारियों के हाथ में चली जायेगी। वे जब चाहेंगे, जिस अनाज की मार्किट में शॉर्टेज कर देंगे। इससे आम शहरी, गरीब, मध्यम व्यक्ति दाल रोटी के इंतजाम में ही दम तोड़ देगा।
कृषि विधेयक - 2020 से सिर्फ इस देश के किसान को ही नही, इस देश के हर गरीब, मध्यम वर्ग पर प्रभाव पड़ेगा। और फिर भारत हजारों साल पुरानी व्यवस्था में जकड़ जाएगा । यहां सिर अमीर, गरीब और दास ही रह जाएंगे। कोई नही । जिस व्यवस्था को आजाद भारत मे तोड़ने में पचास साल लगे, भारत फिर जहाँ से चला था, वहीं पहुंच जाएगा।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट