समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा नौकरी और रोजगार के मसले पर घेराबंदी को नाकाम करते हुए बाबा यानी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नौकरियों में पांच साल के संविदा भर्ती करने के निर्देश पर यू टर्न ले लिया । उत्तर प्रदेश सरकार के उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य द्वारा जारी बयान में इसका दोषारोपण भी समाजवादी पार्टी और अन्य विपक्षी पार्टियों पर डाल दिया। उन्होंने अपने अधिकृत बयान में यह कहा कि सरकार पांच साल संविदा आधार पर भर्ती करने नही जा रही हैं। बाबा यानी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह बयान पिछड़े वर्ग के अपने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद से दिलवाया। उसके दो कारण है- पहला कि समाजवादी पार्टी पिछड़ों की पार्टी मानी जाती है। पांच साल की संविदा पर नौकरियों का सबसे अधिक विरोध पिछड़ों द्वारा ही किया जा रहा था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहीं नही रुके। उन्होंने अपने 11 आला अधिकारियों की मीटिंग बुलाई और उन्हें निर्देश दिए कि एक सप्ताह के अंदर सभी सरकारी, अर्ध सरकारी विभागों में कितनी जगह खाली है, इसकी सूची मेरे समक्ष प्रस्तुत की जाए और 6 उनकी वैकेंसी निकाल कर उन पर 6 महीने में भर्ती कर लिया जाए। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दूसरे दिन फिर इसी विषय पर अपने 11 आला अधिकारियों की बैठक की। और सपा, बसपा के कार्यकाल में कितनी भर्तियां की गई, उसका तुलनात्मक आंकड़ा पेश किया। अपने तीन साल के कार्यकाल में योगी सरकार ने करीब तीन लाख लोगों को नौकरी दे चुकी है। जबकि समाजवादी पार्टी, जिसके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रहे, उन्होंने पांच सालों में केवल 2 लाख, 5 हजार लोगों को नौकरी दी थी। और बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने मुख्यमंत्री काल में केवल 96 हजार लोगों को नौकरी दी थी । समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती की ओर से अभी इस पर कोई बयान नही आया है। इस समय लोकसभा और राज्यसभा चल रही है, इस कारण समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव दिल्ली में हैं। लखनऊ लौटने के बाद हो सकता है कि कोई बयान दें । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहीं नही रुके । उन्होंने 69 हजार शिक्षकों की आधी भर्ती करने के निर्देश दे दिए। इससे जो बाल कल तक अखिलेश यादव के खाते में दिख रही थी, अब वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पाले में है, और वे खूब खुल कर खेल रहे हैं। इसके पीछे एक कारण है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दोनों इस बात को जानते हैं कि रोजगार और नौकरी उत्तर प्रदेश के संदर्भ में बड़ा गंभीर मसला है। अगर यह तुरुप का पत्ता अखिलेश यादव के हाथ में आ गया, तो 2022 के विधानसभा चुनाव में सत्ता बचाना मुश्किल हो जाएगा। इस कारण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इससे सबंधी सभी मसलों की नाकाबंदी ही नही की, बल्कि लीड भी ले लिया। कुछ भी हो, नौकरी और रोजगार 3022 के चुनाव में बड़ा मुद्दा बनने वाला है।
अब बात मामा यानी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कर लेते हैं। जिस पर उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां की प्रमुख विपक्षी पार्टी सपा और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को लीड नही लेने दे रहे हैं। ठीक उसी प्रकार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मामा शिवराज सिंह चौहान, वहां की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को तरजीह नही लेने दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव का वोटबैंक पिछड़े और मुस्लिम हैं। जिनका सीधा संबंध नौकरी और रोजगार से है। उसी प्रकार मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का संबंध आदिवासी वोटों से है। इसी कारण मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आदिवासी समाज को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने मध्यप्रदेश के आदिवासी समाज की बेहतरी के लिए दो कदम उठाए हैं। पहला कदम उनके खिलाफ बहुत दिनों से कोर्ट में चल रहे मुकदमे हैं । जो आपसी मारपीट गाली गलौज से संबंधित है। वे सभी मुकदमें शिवराज सरकार वापस लेने जा रही है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने दूसरा जो बड़ा कदम उठाया है। वह है 22 लाख से अधिक आदिवासी समाज को जमीन के पट्टे देने का। उन्होंने मध्यप्रदेश के 22 लाख आदिवासियों को जमीन के पट्टे दिए हैं। उनके इस कदम से पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की वजह से पंचायत चुनाव में जो नुकसान होने थे, उससे काफी हद तक राहत मिलेगी ।
अगर हम भारतीय राजनीति में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाले इन दोनों प्रदेशो की बात करें, तो इन दोनों प्रदेशो को लेकर भारतीय जनता पार्टी काफी सजग है। अगर हम उत्तर प्रदेश की बात करें, तो यहां पर समाजवादी पार्टी भले 50 के अंदर सिमट गई हो, एक सशक्त पार्टी है। उसका व्यापक जनाधार है। और उसके पास मजबूत संगठन है। सबसे बड़ी बात उसके पास यादवों और मुस्लिमों का ठोस वोट बैंक है। जो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में ही पड़ता आया है। सबसे बड़ी बात यह है कि समाजवादी पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव जैसा सपा के पास रणनीतिकार है। जिसकी वजह से भारतीय जनता पार्टी, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समाजवादी पार्टी को हल्के में नही लेते है। उसका एक कारण और है। अखिलेश यादव भारतीय राजनीति का साफ सुथरा चेहरा है और उसकी सोच विकासवादी है। यही हाल मध्य प्रदेश में कमलनाथ की है। मध्यप्रदेश के आदिवासी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के दर्शन मात्र से ही खुश हो जाते हैं। और कमलनाथ के कहने मात्र से एक पक्ष को वोट कर देते हैं। ऐसा नही है कि कमलनाथ ने भी मध्यप्रदेश के आदिवासियों के लिए बहुत कुछ किया है। इसी कारण पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के प्रति वहां के आदिवासी दीवाने है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मामा शिवराज सिंह चौहान यह अच्छी तरह जानते हैं कि अगर पंचायतों में सम्मानजनक स्थिति प्राप्त करना है, आदिवासियों को अपने पक्ष में करना होगा। अब दोनों प्रदेशो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में इन दोनों मुख्यमंत्रियों का कितना असर पड़ा है, उसका खुलासा तो विधानसभा 2022 व पंचायत चुनाव के बाद ही हो पायेगा। लेकिन अंत में एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि चाहै उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हों, या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री मामा शिवराज सिंह चौहान हों, सत्ता में रहते हुए, दोनों विपक्ष की तरह तैयारियां कर रहे हैं। इसलिए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए आगामी चुनाव आसान नहीं है।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट