इफको की अदूरदर्शिता से प्रदूषित होता व गिरता जल स्तर

Update: 2020-09-12 14:13 GMT


अपनी कोरोना - पर्यावरण जागरण अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा के तहत मैं इस समय बरेली जिले में हूँ । मेरी यात्रा जब आंवला से बरेली की ओर बढ़ी, तो मार्ग में मुझे एशिया की सबसे बड़ी फैक्ट्री इफको दिखाई पड़ी। 2016 की अपनी साइकिल यात्रा के दौरान भी यहां से गुजरने और इसके आसपास के गावों में घूमने का अवसर प्राप्त हुआ था। इस बार भी हुआ। अपनी साइकिल यात्रा के दौरान मैं अपने साथ पानी पीने की एक बोतल रखता हूँ। इफको के करीब जैसे ही एक हैंड पाइप पर पानी भरने गया। तो एक नौजवान ने कहा कि किसलिये पानी ले रहे हैं ? तो मैंने उनसे विनम्रता पूर्वक कहा कि पीने के लिए। तो उन्होंने कहा कि इसका पानी पीने लायक नही है । आप सरकारी हैंड पाइप से पानी लीजिये। यह पानी प्रदूषित हो चुका है। मेरे मन की जिज्ञासा बढ़ गई। वे एक पेड़ के किनारे बैठे हुए थे, मैंने भी वहीं अपनी साइकिल खड़ी की, और उनसे भूगर्भ जल के सबंध में चर्चा करने लगा। चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि इफको फैक्ट्री में यूरिया बनती है। जिसमें हर रोज लाखो गैलन पानी लगता है। इसलिए इफको द्वारा लगातार जल दोहन होने के कारण यहां स्थित कुएं, हैंड पाइप और ट्यूबेल हर साल पानी छोड़ देते हैं। उन्होंने बताया कि इस ग्रामीण और जंगलों के बीच भी जमीन के नीचे 250 से 300 फ़ीट गहराई पर पानी उपलब्ध है। 250 फ़ीट पर भी जो पानी उपलब्ध है, वह भी पीने लायक नही रह गया है। इससे यहां की जागरूक जनता और समाजसेवी काफी चिंतित हैं। कि अगर इसी स्पीड से जल स्तर गिरता रहा, तो आने वाले समय मे पीने के पानी के लिए बोतल के पानी पर निर्भर रहना पड़ेगा। मेरे एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि लगातार पानी दोहन की वजह से गिरता भूगर्भ जल स्तर इफको के भविष्य के लिए भी ठीक नही है। इफको की ओर से ऐसा कोई प्रयास नही किया गया है, जिससे बरसात में जल रिचार्ज हो सके। कुछ समाजसेवियों द्वारा इसकी शिकायत करने पर वे रिचार्ज की बात तो करते हैं, लेकिन जांच अधिकारियों के चले जाने के बाद फिर कोई कदम नही उठाते हैं। इस कारण हर वर्ष जल स्तर में गिरावट दर्ज हो रही है। इसका खामियाजा यहां के स्थानीय किसानों और मजदूरों को उठाना पड़ रहा है। अपनी कमाई का एक बड़ा भाग नलकूप गड़वाने में खर्च करना पड़ता है। बहुत से गरीब तो कर्ज लेकर हैंड पाइप, या ट्यूवेल का रिबोर करवाते हैं । इस क्षेत्र के अधिकांश किसानों के कर्जदार होने का यह भी एक कारण है। एक बार का कर्ज चुका नही पाते, कि दूसरी बार फिर हैंड पाइप और ट्यूबेल का रिबोर करवाना पड़ता है।

जब मैंने पूछा कि अतिरिक्त और लगातार दोहन की वजह से भूगर्भ जल स्तर में गिरावट होती है। फिर भूगर्भ जल कैसे प्रदूषित हो गया ? मेरे इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि इसका भी कारण यह इफको ही है। यूरिया बनाने में जो पानी का उपयोग होता है। वह अवशिष्ट के रूप में इफको के आसपास ही जमा रहता है। उस प्रदूषित जल को बहाने के लिए इफको ने अपने आसपास बड़े बड़े गड्ढे खुदवा रखे हैं। जो काफी गहरे हैं। उसमें ही प्रदूषित जल भरा जाता है, जो रिस रिस कर जमीन के नीचे चला जाता है। इस प्रदूषित जल को कहीं बहाने का प्रबंध नही है। इस कारण जमीन के अंदर जाना मजबूरी है। इस कारण यहां का भूगर्भ जल प्रदूषित हो गया है। और अब तो आलम यह हो गया है कि 250 फ़ीट गहराई तक इसका प्रभाव हो गया। यहां के अधिकारियों का क्या? वे तो मिनरल वाटर पीते हैं। अपने पीने के लिए उन्होंने पानी शुद्ध बनाने की बड़ी बड़ी मशीनें लगा रखी है। मरती तो यहां की गरीब जनता और किसान हैं । मैंने उनसे पूछा, लोग इतनी परेशानी सह रहे हैं, फिर इसके खिलाफ अपनी आवाज क्यों नहीं उठाते? तब उन्होंने कहा कि इसके आसपास के गावों के गरीबों को मजदूर के रूप में रोजगार मिला हुआ है। वे लोग हम लोगों से कहते हैं कि हमारे पेट पर क्यों लात मारने पर तुले हो। यानी जब उनके खिलाफ आवाज उठती है, तो इफको में काम कर रहे स्थानीय मजदूरों को हमारे पास भेज देते हैं। और फि हम भी लोग शांत बैठ जाते हैं ।

लेकिन कभी कभी जब उनके द्वारा बनाये गए पूल भर जाते हैं, तो वह पानी खेतों में बह कर चला जाता है, जिसकी वजह से वह जहरीला जल फसलों को खत्म कर देता है। पानी इतना विषाक्त होता है कि फसलों के संपर्क में आते ही फसल सूख जाती है। उसके हरे भरे तने पीले पड़ जाते गेन, उसमें अगर फलियां आ जाती हैं, तो वे भी मर जाती है। इस तरह इफको के आसपास जो खेत हैं, वह किसान हमेशा ही परेशान होता है। इफको में कड़ी सिक्योरिटी का प्रबंध है। बिना अनुमति के कोई भी अंदर जा नही सकता है। फिर किसान के पास कितना गुर्दा ही होता है। इफको के गेट पर खड़ा सिक्योरिटी गार्ड ही उनके लिए काफी होता है। पहले तो महीनों कोई न कोई बहाना बना कर वह दौड़ाता रहता है। फिर एक दिन डांट कर भगा देता है। या फिर किसी छोटे अधिकारी से मिलवा देता है। वह अधिकारी उसे समझा देता है कि आगे से ऐसा नही होगा। और अपनी सारी फसल चौपट हो जाने के बाद भी वह मुंह लटकाए अपने घर लौट आता है। फिर अगले साल बर्बाद होने के लिए खेत तैयार करता है। फसल बोता है और फिर फसल बर्बाद न हो, इसकी कोई गारंटी नही होती है। लेकिन अगर उसके खेत मे ज्यादा जहरीला पानी लग गया, तो कई वर्षों तक तो कोई फसल होती नही । क्योंकि उस मिट्टी की सारी उर्वरकता मर जाती है। वह मिट्टी नही, मिट्टी के रूप में राख होती है। मेरा भाग्य फुट गया, यह सोच कर किसान चुप बैठ जाता है। इफको जैसी बड़ी फैक्ट्री मालिकों अधिकारियों के खिलाफ वह लड़ने की कल्पना नही कर सकता। कभी अगर उसकी व्यथा को किसी ने उठाने की कोशिश की भी तो उसका कोई परिणाम नही निकला । अपनी हरी भरी करने की शक्ति वाली जमीन के बंजर भूमि में तब्दील होने के बाद उसे छोड़ देने के सिवा उसके पास कोई चारा नही होता।

इसके बाद मेरी यात्रा आगे बढ़ी। दूसरे दिन फिर मेरी कुछ लोगों से इस संबंध में बात हुई। तब उन्होंने बताया कि जिस ब्लाक में यह इफको आती है, उसके पूर्व प्रमुख ने किसानों और स्थानीय लोगों के अनुरोध पर इसकी शिकायत उच्च अधिकारियों से की थी, उसकी जंच हुई। इसके बाद इफको अधिकारियों ने कुछ कदम उठाए, जिसका फायदा यहां के स्थानीय किसानों को हुआ। लेकिन जल्द ही अविश्वास प्रस्ताव लाकर उन्हें हटा दिया गया। जिसकी वजह से अब किसानों की इस व्यथा को कोई समझने वाला नही है। ना ही किसी के पास इतना समय और सेवा की भावना ही है, जो बिना किसी स्वार्थ के इफको से भिड़ेगा।

लेकिन इस लेख के माध्यम से मैं भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और प्रदेश और देश के पर्यावरण विभाग के अधिकारियों से अनुरोध करना चाहता हूं कि विश्वपिता के रूप में सभी का पालन करने वाले किसानों का दर्द समझे, और प्रदूषित हो रहे भूगर्भ जल और गिरते हुए भूगर्भ जल स्तर की दिशा में काम करें। जिससे जल को प्रदूषित होने और लगातार गिरते जल स्तर जैसी सभी समस्याओं से किसानों को छुटकारा मिल सके।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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