भीष्म!!

Update: 2020-09-09 08:31 GMT


इस महान पौराणिक चरित्र को ठीक से समझें तो लगता है कि इनसे बड़ा पितृभक्त और अपने पूर्वजों का आदर करने वाला व्यक्ति इस सृष्टि में दूसरा कोई हुआ ही नहीं। भीष्म वह व्यक्ति थे जिन्होंने अपने पिता की एक सामान्य इच्छा के लिए अपना जीवन ही नहीं, अपनी मृत्यु तक को दांव पर लगा दिया। उन्होंने वचन दिया कि हस्तिनापुर को कभी संकट में नहीं छोडूंगा, तो जब तक हस्तिनापुर युधिष्टिर के सुरक्षित हाथों में पहुँच नहीं गयी तब तक वे मरे भी नहीं। एक व्यक्ति किसी को और क्या दे सकता है?

भीष्म को दुर्योधन के दुष्कर्म पसन्द नहीं थे, वे उसकी अनीति से त्रस्त थे। पर उनकी प्रतिज्ञा उन्हें दुर्योधन से विमुख नहीं होने देती थी। और इसी प्रतिज्ञा ने उस धर्मयुद्ध में भीष्म जैसे महात्मा को अधर्म के पक्ष में खड़ा कर दिया।

मनुष्य को कोई प्रतिज्ञा नहीं करनी चाहिए। प्रतिज्ञा समय के सहज प्रवाह का विरोध करती है। प्रतिज्ञा वस्तुतः मनुष्य के इस अहंकार से उपजती है कि मैं कुछ भी कर सकता हूँ। मनुष्य जब प्रतिज्ञा कर के अपने निर्णय पर अड़ जाता है, तो वह समय के नियमों को भंग करता है और उसके इस प्रयास का फल अधिकतर बुरा ही होता है। शायद यही बात बताने के लिए भीष्म के बहाने भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में शस्त्र न उठाने की अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी थी।

महाभारत के युद्ध के मूल में दो प्रतिज्ञाएं ही थीं। एक देवव्रत भीष्म की, और दूसरी गांधार युवराज शकुनी की। इन दोनों में यदि किसी एक की प्रतिज्ञा भी टूट गयी होती तो युद्ध नहीं होता। यदि भीष्म ने विवाह कर लिया होता तो कौरव पांडव के युद्ध का अवसर ही नहीं आता, बल्कि कौरव पांडव होते ही नहीं। या यदि शकुनि ने ही अपनी बहन के अपमान का प्रतिशोध लेने की प्रतिज्ञा तोड़ दी होती, तब भी दोनों परिवारों के सम्बंध इतने नहीं बिगड़ते और युद्ध की स्थिति नहीं आती।

भीष्म यह सब समझते थे, पर कभी अपने बंधनों को काट नहीं सके। वे जब भी इससे मुक्त होना चाहते, तो उनके सामने उनके पिता की छवि आ जाती और वे रुक जाते। अपने पिता को दिए वचन को निभाने के लिए कोई महात्मा सब समझते हुए भी स्वयं को अधर्म की भट्ठी में झोंक दे, यह भी धर्म का अद्भुत ही उदाहरण है। यह ठीक वैसा ही है जैसे कृष्ण के प्रेम में मीरा का विष पीना। भीष्म ने यह विष पितृभक्ति में पीया था।

भीष्म पितृभक्तो के सिरमौर हैं। आधुनिक भारत को अपने इस पुरखे से सीखना चाहिए कि पिता का आदर कैसे करते हैं।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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