स्वार- टांडा विधानसभा उपचुनाव : सरकार बनाम अखिलेश की जोर-आजमाइश

Update: 2020-09-06 08:55 GMT


पिछले दो दिनों से अपनी यात्रा के दौरान मैं नवाबों की नगरी रामपुर में भ्रमण कर रहा हूँ। कोरोना - पर्यावरण और शहीद सम्मान के अलावा यहां की स्वार- टांडा विधानसभा के उप चुनाव पर भी थोड़ी बहुत चर्चा हो जाती है। यहां के सपा सांसद आजम खां के पुत्र के कूट रचित शैक्षणिक प्रणाम पत्र की वजह से यहां का चुनाव रद्द हो गया है। इसी वजह से यहां उप चुनाव होने जा रहे है। जिस समय इस विधान सभा सीट पर चुनाव हुए थे। ऊज़ समय यहां आजम खां और उनकी तूती बोलती थी। राज्य में सरकार किसी की हो, लेकिन रामपुर में वही होता था। जो आजम खां कहते थे। समाजवादी पार्टी सरकार के दौरान तो यहां के मसले में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, शिवपाल सिंह सहित मुलायम परिवार का कोई नेता हस्तक्षेप नहीं करता था । अगर थोड़ा बहुत कोई हस्तक्षेप कर सकता था, तो वे खुद मुलायम सिंह थे। यहां की जनता चाहे वह हिन्दू हो, या मुस्लिम सभी को मत्था आजम खां की चौखट पर टेकना पड़ता था। यहां के टिकट बंटवारे की भी यही स्थिति थी कि विधानसभा का टिकट उसी को मिलता रहा है, जिस नाम पर आजम खां की स्वीकृति होती रही है। यहां का संगठन भी उन्हीं की रहमत पर बनता आया है। आजम खां की समाजवादी पार्टी में हैसियत का इसी बात से पता चलता है कि ऐसे में जब पूरे प्रदेश में संगठन लगभग बन चुका है। रामपुर में वही पुराना संगठन काम कर रहा है ।

समाजवादी पार्टी, उसके नेताओं के बीच आज भी भले आजम खां का वर्चस्व बना हुआ हो। लेकिन इतने ताकतवर, कानूनी हिसाब से काम करने वाले, रामपुर की राजनीति को अपनी इच्छाओं के हिसाब से खेलने वाले आजम खां इस समय अपने पूरे परिवार के साथ जेल में बंद है । उसके पीछे उसका कारण भी मौजूद है। लेकिन उनके समर्थक आज भी उनसे सहानुभूति रखते हैं । और कहते हैं कि उन्होंने इतना बड़ा अपराध नही किया है। जितनी बड़ी उनको सजा मिली है। विशेषकर उनकी पत्नी से कुछ ज्यादा सहानुभूति है। यहां की जनता यह मानती है कि उनकी पत्नी का कोई दोष नही है। उनकी पत्नी तो उस प्रधानपति की तरह है, जिसमे सारा काम उस महिला का पति ही करता है, केवल पत्नी का नाम होता है। जो पति बहुत ईमानदार होते है, वे खुद साइन न करके अपनी पत्नी से करवा लेते हैं। हर मसले पर कानून की बात करने वाला, कानून के मुताबिक अपना हर कार्य करने वाला उनके नेता आजम खां कानून के चक्कर मे कैसे फंस गए ?

उनके जेल जाने के बाद समाजवादी पार्टी के हिन्दू नेता सपा जिला अध्यक्ष पद पर अपना दावा ठोकने लगे हैं, उसकी चर्चा करने लगे हैं। इस संबंध में अखिलेश यादव से मिल कर अपनी बात कहने की प्लानिंग भी बनाने लगे हैं। यहां की जनता का ऐसा मानना है कि अगर अखिलेश यादव द्वारा सॉफ्ट हिंदुत्व की बात नही की गई, तो इलेक्शन में जीत मुश्किल हो जाएगी ।

समाजवादी पार्टी में रामपुर के सबसे बड़े रणनीतिकार जेल में हों, और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनकी विरासत पर कब्जा करने को आमादा हो, तो समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को इस पर सोचना पड़ेगा । दरअसल आगामी विधानसभा के उप चुनाव में रामपुर की स्वार - टांडा विधानसभा उप चुनाव अलग है। वैसे आमतौर पर उत्तर प्रदेश में जितने भी उप चुनाव होते हैं, वे सरकार बनाम कैंडिडेट होते हैं। लेकिन रामपुर के स्वार- टाण्डा विधानसभा का उप चुनाव सरकार प्लस प्रशासन बनाम अखिलेश है। इसलिए यहां का उप चुनाव हम जैसे विश्लेषकों के लिए काफी रोचक है।

मूल विश्लेषण पर आने के पहले यहां की जातीय संघटना पर बात कर लेते हैं । इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र में मुसलमान सबसे अधिक हैं। उनके कुल मतदाताओं की संख्या करीब तीन लाख प्लस है। 50 हजार सैनी, 3 हजार यादव, 25 हजार जाटव, डेढ़ लाख तुर्क, 25 हजार चौहान हैं। बाकी जातियों की संख्या हजार से कम है। इस विधानसभा में छोटे बड़े मिला कर कुल गावों की संख्या 500 के करीब है। यहां बूथों की संख्या 286 रही है। लेकिन ऐसे सैकड़ों बूथ हैं, जहां एक हजार से ज्यादा मतदाता हैं। यानी यहां कुल बूथ और उप बूथ मिला कर करीब 350 बूथ होंगे।

अब हम इस विधानसभा का विश्लेषण कर लेते हैं । ऊपर से देखने पर या दूर से देखने वालों के लिए मुसलमानों की संख्या के आधार पर लोग इसे सपा की सीट मान लेते हैं । लेकिन सभी मुसलमान सपा को वोट नही करते हैं । यहां की जनता ने बातचीत के दौरान यह बताया कि यहां जो तीन लाख मुसलमान हैं, उसमे सबसे अधिक अंसारी हैं। जो करीब दो लाख के अधिक हैं। जिसने पिछले विधानसभा चुनाव में सपा के पक्ष में मतदान किया था। लेकिन इसी विधानसभा में करीब डेढ़ लाख मतदाता तुरक हैं, जो समाजवादी पार्टी से नाराज रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए यही खुशफहमी की बात है। तुरक उस दल को मतदान करते हैं, जिस दल के पक्ष में अंसारी नही रहते हैं। अंसारी को सपा, बसपा और कांग्रेस का समर्थक माना जाता है। अगर अंकगणितीय आधार पर देखते हैं, तो समाजवादी पार्टी के पास इस समय केवल 50 हजार मुसलमान अधिक हैं। लेकिन पिछले चुनाव में आजम खां की रणनीति की वजह से अब्दुल्ला आजम खां को 1 लाख 06 हजार वोट मिले थे। भाजपा दूसरे स्थान पर 53 हजार वोट भाजपा कैंडिडेट को संतोष करना पड़ा। तीसरे स्थान पर बसपा कैंडिडेट रहे। उन्हें कुल 42 हजार प्लस वोट मिले । इसके अलावा जितने भी कैंडिडेट मिले, उन सभी को 12 हजार से कम वोट मिले। यहां के लोगों ने बताया कि अभी तक जितने भी चुनाव हुए उन सभी चुनावों में यहां के मुसलमान विरोध भी नही करते थे, और वोट भी नही डालने देते थे। वे गलियों में खड़े हो जाते थे। और आने जाने वाले हिंदुओं पर फब्तियां भी कसते थे। जिसकी वजह से हिंदुओं की महिलाएं और बुजुर्ग मतदान करने ही नही जाते थे। और केवल कुछ हिन्दू ही वोट डाल पाते थे। इस कारण हर दल से मुसलमान कैंडिडेट खड़े होने के बाद भी मुसलमान ही चुनाव जीतता रहा है। लेकिन तुर्कों की विरोधी प्रकृति के कारण सेकुलर दलों का सारा खेल गड़बड़ा गया।

लेकिन आजम खां और उनके परिवार की गिरफ्तारी के साथ पुलिस और प्रशासन ने जो कार्यशैली अपनाई। उससे इस क्षेत्र में रहने वाले हिंदुओं का आत्मविश्वास लौटा, और मुसलमानों में एक भय का वातावरण बना। इस क्षेत्र के मुसलमान या सपा मतदाताओं को भय यहां के डीएम से है, पुलिस से नही है। इस विधानसभा के तमाम लोगों ने यह बताया कि इस डीएम के रहते यहां चुनाव में धांधली हो ही नही सकती। यह उत्तर प्रदेश का पहला जिला है, जहां के मुसलमान और सपा कार्यकर्ता प्रशासन से खौफ खाते हैं ।

अगर यहां के क्षेत्रीय लोगों की बातों पर विश्वास करें, तो सपा यहाँ से आजम खां की बहू सिदरा अदीब को अपना प्रत्याशी बना सकती है। इस समय वे क्षेत्र में काफी सक्रिय भी नजर आ रही हैं। उनके खिलाफ यहां के नवाब रहे कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में नावेद मियां के चुनाव मैदान में उतरने की चर्चा है। बसपा भी यहां से किसी कद्दावर नेता को चुनाव में उतार सकती है। उसके लिए यहां पर दो नामों की चर्चा है। मुस्लिम होने की वजह से उन्हें मुसलमानों के मतों को बांटने के लिए उतारा जाएगा। भाजपा इस उपचुनाव में अपने पुराने प्रत्याशी लक्ष्मी सैनी या आजम खां और उनके परिवार को जेल भिजवाने वाले आकाश सक्सेना उर्फ हनी को टिकट दे सकती है। उनके पिता शिव बहादुर सक्सेना 4 विधायक रह चुके हैं। एक बार उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री और एक बार पैक्स पैड के अध्यक्ष रह चुके हैं। वे आजम खां के जन्मजात विरोधी कहे जाते हैं। अगर यह कहें कि जो लोग रामपुर में आजम खां को पसंद करते हैं, वे शिव बहादुर सक्सेना को पसंद करते हैं। इस उप चुनाव में उनके संबंधों और रणनीति का लाभ भी भाजपा लेगी । अगर यहां की जनता की माने, तो वह साफ कहती है कि यहां का चुनाव सरकार प्रशासन, भाजपा और अखिलेश यादव के बीच मे होना है।

अखिलेश यादव और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं के सामने सबसे बड़ा संकट यह है कि उनमें से अधिकांश के ऊपर कोई न कोई केस है। या वे कोई न कोई बिजनेस करते हैं, इस कारण प्रशासन उन पर नकेल कस सकता है। उन्हें रेड कार्ड देकर प्रतिबंधित कर सकती है। फिर दूसरी तरफ गली कूंचों में खड़े रहने वाले मुस्लिमों को गिरफ्तार कर जेलों में ठूंस देगी। इस चुनाव में अखिलेश के वही लोग चुनाव प्रचार या वोट डलवा पाएंगे, जो बेदाग होंगे। ऐसे लोगों को खोजना ही अखिलेश के लिए टेढ़ी खीर होगा। वैसे विधानसभा उप चुनाव जीतने के लिए अखिलेश यादव ने जो रणनीति बनाई है, वह स्वार - टाण्डा विधानसभा चुनाव पर लागू नही होगी। इस विधानसभा उप चुनाव के लिए अखिलेश यादव को अलग से रणनीति बनानी होगी। नही तो यह सीट समाजवादी पार्टी के हाथ से निकल सकती है।

 प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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