सहकारी ग्राम विकास बैंक चुनाव में सत्ता का दबाव व सपाइयों का संघर्ष

Update: 2020-09-03 15:09 GMT


उत्तर प्रदेश में सहकारिता संबंधी जितने भी चुनाव होते हैं, उसमें सत्ता की दखलंदाजी होती रही है। अभी तक एक लंबे अरसे के संघर्षपूर्ण स्थिति के बावजूद समाजवादी पार्टी समर्थित उम्मीदवारों की जीत होती है । जब जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार रही है, तब तब सत्ता के प्रभाव का इस्तेमाल भी हुआ। उसकी वजह से सपा समर्थित उम्मीदवारो को जीतने में मदद मिली । एक लंबे अरसे तक सहकारिता क्षेत्र की राजनीति करने के कारण समाजवादी नेताओ का एक तरह से अधिपत्य हो गया था। 2017 में सत्ता बदली, उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आई, उत्तर प्रदेश के भाजपा विधायकों ने आलाकमान के निर्देश का सम्मान करते हुए, योगी आदित्यनाथ को अपना नेता चुना । वे मुख्यमंत्री बने। एक संत पुरुष होने की वजह से उनसे एक साफ और स्वच्छ सरकार की अपेक्षा रही। लेकिन संत के साथ साथ वे राजनीति के मझे हुए खिलाड़ी भी हैं, इस कारण उन्होंने उन सभी स्थानों को पहले चिन्हित किया, जहां जहां समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का बर्चस्व रहा। बहुजन समाज पार्टी ने अपना हित भाजपा के साथ समझा, इस कारण उनसे टकराने के बजाय, उनकी हां में हां मिला कर यस मैन पार्टी बन गई। इस कारण प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निशाने पर सिर्फ एक ही पार्टी रह गई । वह पार्टी है समाजवादी पार्टी। समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए चुनौती है। कई बार उत्तर प्रदेश की सत्ता में रहने के कारण उसका प्रभाव भी है। इस कारण हर क्षेत्र में उसके समर्थक हैं । इसी कारण उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने सबसे पहले पुलिस विभाग के ऐसे अधिकारियों और जवानों को चिन्हित किया, जिनकी किसी न किसी वजह से समाजवादी पार्टी से सहानुभूति रही । उनको ऐसे पदों या जगहों पर तैनाती दी गई, जिससे सरकार का काम प्रभावित न हो। क्योंकि पुलिस विभाग ऐसा महकमा है, जो सरकार के काम सबसे अधिक आता है। प्रदेश की कानून व्यवस्था से लेकर विपक्ष के आंदोलनों को नियंत्रित करने में सरकार उनका उपयोग करती है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास ऐसे पुलिस वालों की एक लंबी सूची है, जो बिना किसी राजनीतिक दबाव के अपने अधिकारियों का आदेश मिलते ही किसी भी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहते हैं। आज कल यह देखने मे आ रहा है, कि समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता किसी विशेष मसले को लेकर आक्रामक आंदोलन कर रहे है। जिसका उतनी ही सख्ती से सरकार के निर्देश पर पुलिस दमन कर रही है। सोशल मीडिया पर नजर डालने पर ऐसा प्रतीत होता है कि पुलिस की बेरहमी से पिटाई की वजह से सड़कें तक खून से लाल हो चुकी हैं। इस संबंध में जब कुछ संबंधित अधिकारियों से चर्चा हुई, तो उन्होंने कहा कि यह कोरोना का संक्रमण काल है। जिसमे मुंह पर मास्क और दो गज की दूरी का पालन जरूरी है। जो वे नही कर रहे हैं । दूसरे वे अनाधिकृत क्षेत्रों में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं, जिसकी वजह से पहले उनसे चर्चा की जा रही है। इसके बावजूद जब वे मान नही रहे हैं, तो कानून का पालन कराने के लाठी चार्ज करना उनकी मजबूरी है। लेकिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव उनसे इत्तेफाक नहीं रखते हैं । वे इसे अपने कार्यकर्ताओं के ऊपर खूनी हमला बता रहे हैं । इस समय पूरे प्रदेश में समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं । कहीं कहीं पुलिस के साथ उनकी टकराहट हो जा रही है। और पुलिस उनके आंदोलन को दबाने के लिए लाठी का सहारा ले रही है ।

इसके पीछे लखनऊ के पुलिस अधिकारी धारा 144 का भी हवाला देते हैं। 21 अगस्त से 15 सितंबर तक वहां धारा 144 की अधिकृत घोषणा की जा चुकी है। उसका उलंघन करने वालों पर ही पुलिस कार्रवाई कर रही है।

समाजवादी पार्टी के युवा संगठनों द्वारा जारी आंदोलन के बीच मे ही सहकारी ग्राम विकास बैंक के शाखा प्रतिनिधि पद के लिए चुनाव की प्रक्रिया भी चल रही थी। सहकारी बैंकों के चुनाव में जो लोग खड़े होते हैं, वे भी राजनीतिक दलों के अधिकृत उम्मीदवार होते हैं । जिसकी सत्ता होती है, वह ऐसे चुनावों में सत्ता का दुरुपयोग भी करता है। यही सहकारी ग्राम विकास बैंक के शाखा प्रतिनिधि के चुनाव में भी हुआ । प्रशासन और सत्ता समर्थक नेताओं के गठजोड़ की वजह से कई सहकारी बैंकों में समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार चुनाव के लिए नामांकन ही नही करा सके। जिसकी वजह से ऐसी जगहों पर भाजपा समर्थित प्रत्याशी निर्विरोध निर्वाचित हो गए। और जो लोग अत्यंत संघर्ष के बाद नामांकन कराने में सफल हो गए। उनके समर्थकों को वोट डालने में व्यवधान उत्पन्न किया । जिसकी वजह से अधिकांश वोट ही नही डाल पाए। और चुनाव हार गए।

अब बात कन्नौज जिले की कर लेते हैं। जहाँ समाजवादी पार्टी केवल तिर्वा विधानसभा स्थित सहकारी ग्राम विकास बैंक के प्रतिनिधि पद के लिए नामांकन कर सकी। समाजवादी पार्टी ने साफ सुथरी छवि वाले 20 वर्षों से पार्टी की सेवा करने वाले विजय द्विवेदी को अपना प्रत्याशी बनाया। कड़ी मशक्कत के उनका नामांकन हो सका । मतदान के दिन बकौल युवा समाजवादी कार्यकर्ता यशवीर सिंह भदौरिया सहकारी बैंक के चुनाव में प्रशासन और भारतीय जनता पार्टी की मिली भगत की वजह से सपा के मतदाताओं को वोट नही डालने दिया गया। जिसकी वजह से केवल 7.55 मतदान हो सका । जबकि विजयी भाजपा समर्थित उम्मीदवार को कुल 474 वोट मिले। जो कुल वोट का 5.59 प्रतिशत है। यशवीर भदौरिया ने बताया कि कुल मतदाताओं की संख्या 8475 है, 474 के अलावा बाकी सभी मतदाता समाजवादी पार्टी के थे, लेकिन प्रशासन ने वोट नही डालने दिया। इसकी शिकायत करने की कोशिश हम लोगों ने डीएम से भी की। एक बार उनसे बात हो पाई। लेकिन बाद में उनका मोबाइल बंद हो गया। यहां की ज्यादतियों के संबंध में कोई बात नही हो पाई। उन्होंने यह भी बताया कि सभी समाजवादी पार्टी के नेता धरने पर भी बैठ गए । लेकिन फिर भी प्रशासन ने हमारे मतदाताओं को वोट नही डालने दिया । मतदान के दौरान अराजक तत्वों से पांच बार पथराव कराया गया, जिससे पुलिस हम लोगों को गिरफ्तार कर यहां से हटा सके। कई बार हम लोगों ने सीधे विरोध किया, तो हम लोगों को पुलिस ने जबरदस्ती हटा दिया। कई बार आमने सामने मारपीट की नौबत आई। लेकिन हम लोग कोई ऐसी परिस्थिति उत्पन्न नही होने देना चाह रहे थे, जिससे मतदान की प्रक्रिया बाधित हो । क्योंकि हम सिर्फ इतना चाहते थे कि सभी मतदाताओं को वोट डालने दिया जाए और हम सहित सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को मतदान स्थल से दूर कर दिया जाए, जिससे कोई मतदान को प्रभावित न कर सके। इसी बीच अराजक तत्वों द्वारा किये गए पथराव से ठठिया एसओ राजकुमार घायल हुए। इसकी सूचना जब डीएम एसपी को मिली, तो वे भारी पुलिस बल के साथ पहुंचे, और हम लोगों की ओर पुलिस लाठी चार्ज की नियति से दौड़ी तो सभी सपा कार्यकर्ता वहां से हट गए। उन्होंने कहा कि हम लोग सिर्फ इतना चाह रहे थे कि हमारे मतदाताओं को गेट से अंदर जाकर मतदान करने दिया जाए। लेकिन हमारे मतदाताओं को अंदर जाने ही नही दिया जा रहा था। हम लोगों ने डीएम और एसडीएम से बार बार इसकी शिकायत की । लेकिन की कार्रवाई नही की गई । हमारे एक बड़े नेता पूर्व सांसद व विधायक रामबख्श वर्मा ने भी समझाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें भी अनसुना कर दिया गया। अब हमारे पास एक ही चारा बचा है कि हम न्यायालय की शरण जाएं और न्याय की गुहार करें। हमारे पार्टी के वरिष्ठ नेता इस संबंध में विधिवेत्ताओं से विचार विमर्श कर रहे हैं।

इस संबंध में मेरा इतना ही कहना है कि चुनाव कोई हो, विधिसम्मत सम्पन्न होना चाहिए। मतदाताओं का यह संवैधानिक अधिकार है कि नियमों, उपनियमों का पालन करते हुए अपने मताधिकार का प्रयोग करे। अगर कहीं किस प्रकार की शिकायत प्राप्त हो रही है, तो प्रशासन उसका त्वरित निराकरण करे।

एक बात तो मुझे भी हास्यास्पद लगती है कि 7.55 प्रतिशत कुल मतदान हुआ, और 5.59 प्रतिशत मतदान पाने वाले को विजयी घोषित कर दिया गया । इस पर उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ को भी विचार करना चाहिए। क्योंकि इस तरह से जो छीटे पड़ेंगे, उससे सबसे अधिक कलंकित दामन मुख्यमंत्री का ही होगा ।

प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव

पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट

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