उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दिमाग से पंचायती चुनाव को लेकर नित्य नए नए विचार आ रहे हैं । उनके ये विचार उनकी सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। लगभग पिछले दो साल से वे इस पर गहन अध्ययन करवा रहे थे। अपने अध्ययन में उन्होंने पाया कि अगर जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख का चुनाव सीधे जनता से कराया जाएगा, तो अधिक से अधिक जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख पद पर कब्जा किया जा सकता है। इसी कारण उन्होंने 73वें संविधान में आंशिक संशोधन के लिए प्रस्ताव भेजा है। अपने प्रस्ताव में उन्होंने जो लिखवाया है, वे वही बातें हैं, जो ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव प्रक्रिया की आलोचना के रूप में कही जाती रही है। अपने प्रस्ताव में उन्होंने कहा है कि यह प्रस्ताव लागू होने से यानी जनता द्वारा सीधे चुनाव होने से सदस्यों की खरीद फरोख्त, धन बल, बाहुबल का खुल गई प्रयोग होता रहा है। इससे गुटबाजी व सियासी चालें भी खूब चली जाती हैं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक ऐसे नेता हैं, जो अपना जनाधार बढ़ाने और ग्राम प्रधानी, बीडीसी, ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष पर कब्जा करके जमीन स्तर भाजपा को प्रभावी और मजबूत बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं । अपनी इसी रणनीति को कामयाब करने के लिए वे उत्तर प्रदेश में क्षत्रियों को मजबूत कर रहे हैं। वे इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि अगर उत्तर प्रदेश की अन्य मार्शल कौमो को नियन्तित करना है, तो क्षत्रियों का मजबूत होना जरूरी है। वे उत्तर प्रदेश के संदर्भ में कांग्रेस के पतन को इस बात को उत्तरदायी मानते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाली अन्य मार्शल कौमों के साथ जनता का सहयोग होने की वजह से क्षत्रियों को बैकफुट पर जाना पड़ा था। और धीरे धीरे सत्ता पर समाजवादी पार्टी का वर्चस्व हो गया था। आज पहले जैसे हालात नही है। यादव भी राजनीतिक लाभ के लिए अपनों से टकरा सकता है। उसकी राजनीतिक अभिलिप्सा इतनी बढ़ गई है कि घर घर मे नेता पैदा हो गए हैं । जिसकी वजह से उसकी आर्थिक स्थिति भी ठीक नही है। हालांकि वह आर्थिक स्थिति विपन्न होने के बाद भी उनका रहन सहन तो ठीक हैं, लेकिन सत्ता से बाहर होने और अखिलेश यादव की सरकार के दौरान ठेका पट्टा न मिलने के कारण और इस समय सत्ता से बाहर होने की वजह से धनागम के सारे मार्ग बंद है। आज कल के यादवों के लड़कों और बहुओं को भी गाय और भैंस के गोबर से घिन आने लगी है। इस कारण यादवों में गाय भैस पालने की प्रवृत्ति में कमी आई है। जो लोग पालते हैं, वे दूध खाने के बजाय बेच कर अपने घर का खर्च किसी तरह चला रहे हैं । इस कारण जो यादव अपनी शरीरिक ताकत की वजह से प्रतिष्ठा पाते थे, उसमे कमी आई है। साथ ही राजनीतिक षड्यंत्रों की वजह से ऊपर और नीचे की सभी जातियों के कोपभाजन का शिकार हो रहा है। इस वजह से वह अलग थलग पड़ गया है। आज उसकी स्थिति ऐसी नही है, जो सत्ता संरक्षित क्षत्रियों से आमने सामने मोर्चा ले सके। इसी बदली प्रवृत्ति की वजह से भारतीय जनता पार्टी को प्रधानी से लेकर, जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में लाभ मिलेगा ।
इसके अलावा प्रधानी और बीडीसी का चुनाव भी बहुत महंगा हो गया है। लोग चुनाव जीतने के लिए लाखों रुपये खर्च करते हैं। तब जाकर प्रधान बनते हैं । दूसरी तरफ देखने मे यह आ रहा है कि अब ग्राम प्रधान भी अपने गांव के विकास के लिए प्रस्ताव तो सरकार को भेजता है, लेकिन उसकी स्वीकृति सरकार की इच्छा पर निर्भर करती है। इसलिए आज कल के प्रधानों के अनुभव और विचार के अनुसार जितना धन वे खर्च करते हैं, उसका आधा भी नही निकलता है । इस कारण ग्राम प्रधानी अब केवल सामाजिक प्रतिष्ठा तक सीमित रह गई है। दूसरी ओर ब्लाक प्रमुख का चुनाव सीधे जनता द्वारा होने के कारण बीडीसी के कार्य और अधिकार में भी परिवर्तन किया जाएगा। मेरी अधिकतम सूचना के अनुसार बीडीसी भी गांव के विकास और कार्यों में सामूहिक भागीदारी की व्यवस्था की जाएगी। जिससे प्रधान के अधिकारों में एकछत्र राज समाप्त हो जाएगा।
अब ब्लाक प्रमुख की बात कर लेते हैं। ब्लाक प्रमुख स्तर पर जो चुनाव होगा, उसमें धन पशुओं की भागीदारी तो संभव है। लेकिन आम और लोकप्रिय लोग भी चुनाव लड़ सकते हैं । जिससे ब्लाक स्तर पर स्थिति काफी लोक व संविधान सम्मत होगी । जनता द्वारा चुना गया ब्लाक प्रमुख क्षेत्र के विकास के लिए भी उत्तरदायी होगा। सिर्फ नेताओं की ही नही, जनता की भी सुननी पड़ेगी । इस स्तर पर समाजवादी पार्टी को उस दशा में लाभ हो सकता है, जब बगावत करके समाजवादी पार्टी के नेता चुनाव न लड़ें। नेताओं की संख्या देखते हुए ऐसा बहुत संभव है कि बागी प्रत्याशी खड़े होंगे, वे वोटकटवा के रूप में काम आएंगे। ऐसा बहुत सम्भव है कि सत्ताधारी दलों द्वारा डमी प्रत्याशी खड़े किए जा सकते हैं । जिसका खामियाजा समाजवादी पार्टी को भुगतना पड़ेगा।
केंद्र और उत्तर प्रदेश में एक ही दल की सरकार है। इस कारण पंचायती राज अधिनियम में यह संशोधन न हो, ऐसी कल्पना भी नही की जा सकती है। लेकिन यह सच्चाई है कि पंचायत का यह सबसे बड़ा चुनाव होगा। जिसमें पैसा भी खूब खर्च होगा। जो चुनाव जीतेगा, उसका अधिकार और वित्तीय अधिकार भी अधिक होंगे। वह अपना बजट खुद पास करेगा, और विकास कार्य करेगा। लेकिन यहां पर हम जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव और उसमें खर्च होने वाले धन की बात कर लेते है। जिला पंचायत अध्यक्ष के प्रत्याशी भी राजनीतिक दल ही तय करेंगे। समाजवादी पार्टी भी ऐसे प्रत्याशी को टिकट देगी, जिसके पास खूब पैसा हो और खर्च करने की प्रवृत्ति हो । इसके साथ साथ पूरी पार्टी भी उसका सहयोग करेगी । अभी तक वह दल ही चुनाव जीतता या अपने पद पर बना रह पाता था, जिसकी सत्ता होती रही है। बाहुबल में समाजवादी पार्टी बीस पड़ती, जब वह सत्ता में होती । यादव बाहुल्य क्षेत्रों में अधिकतर जिलापंचायत अध्यक्ष वही बनते रहे। अधिनियम में संशोधन हो जाने और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता द्वारा होने पर सपा का एकाधिकार उन सीटों पर टूटेगा, जहां उसका कब्जा रहा है। बसपा से बढ़ी दूरियों और पिछड़े और अनुसूचित जाति, जनजाति के वोटों का बंटवारा हो जाता है। और हिन्दू मुस्लिम कार्ड खेलने की वजह से सपा के वोट भी भाजपा के पक्ष में चले जाते हैं । जिसका खामियाजा समाजवादी पार्टी को उठाना पड़ता है ।
लेकिन एक लाभ भी है। जो लोग जनता द्वारा चुनै जाएंगे, उन्हें कोई सरकार गिरा नही सकती । यानी अब ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष भी पूरे पांच साल अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। जिले के प्रभावी और बड़े नेताओं को उम्मीदवार बनाने की वजह से जीत की संभावनाएं भी बढ़ेगी । जिसका फायदा भी मिलेगा। लेकिन उसके लिए जमीनी रणनीति भी बनानी होगी । अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को संगठित करना पड़ेगा । और एकजुट होकर प्रचार करना पड़ेगा। तभी सफलता मिल पाएगी ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट