हमारे देश मे ही नही, सम्पूर्ण विश्व मे डॉक्टर को धरती का भगवान माना जाता है। उसे दूसरा जन्मदाता कहा जाता है। वह लोगों को पीड़ा से राहत दिलाता है। वह पीड़ितों के रोगों को ठीक करके नया और स्वस्थ जीवन देता है। इसी कारण उसकी जनता की नजरों में इज्जत है। वह सरकारी नौकरी करता हो या न करता हो, उसे डॉक्टर साहब कह कर पुकारा जाता है। असहनीय पीड़ा, दुख और कष्ट में रहने के बावजूद भी हर पीड़ित व्यक्ति और उसके घर वाले उससे बड़े अदब से बात करते है। डॉक्टर साहब जो फीस बोल देते हैं, बिना किसी तरह का प्रतिवाद किये लोग दे देते हैं । यह जरूरी नही है कि लोग चिकित्सा के लिए जाएं, तभी उनसे अभिवादन के लिए जाएं । कहीं रास्ते में भी अगर कोई डॉक्टर मिल जाता है, तो लोगों का सर अपने आप श्रद्धा से झुक जाता है। यही एक क्षेत्र है, जहां लोग किसी की जाति, धर्म, सम्प्रदाय नही देखते हैं, जो भी डॉक्टर सिद्धहस्त होता है, उसके पास वे सहर्ष चले जाते हैं और बिना किसी मोलभाव, वाद-प्रतिवाद के इलाज कराते हैं । इस देश के अधिकांश डॉक्टर भी अत्यंत उदार होते हैं, अगर कोई गरीब उनके पास पहुच जाता, उसके पास उनकी फीस देने के पैसे नही होते, तो भी उसका इलाज करते देखे गए हैं। अपने लिए सैम्पल के लिए मिली दवाइयां उसे देते हुए पाए गए हैं। अगर उसके पास जाने के लिए किराया नही होता, तो दस बीस रुपये किराया भी देने के लिए जाने जाते हैं ।
लेकिन जबसे नर्सिंग होम खुलने लगे। ऐसे नर्सिंग होम खुलने लगे, जो निपट पैसे कमाने के लिए खोले जाने लगे । तबसे चिकित्सा क्षेत्र में भी गिरावट आने लगी। चिकित्सा क्षेत्र में एक गिरावट इसलिए भी आई कि हर प्रदेश में प्राइवेट मेडिकल कालेजों खुलने लगे । उनकी फीस इतनी महंगी है कि गरीब की कौन कहे, माध्यम श्रेणी का व्यक्ति भी इन प्राइवेट मेडिकल कॉलेजो में अपने बच्चों को पढ़ाने की कल्पना भी नहीं कर सकता है। इसके अलावा इन प्राइवेट कालेजों में पेमेंट की सीटें भी होती है, जिसमें करोड़ों रुपये डोनेशन देकर लोग अपने बच्चों का ऐडमिशन कराते हैं । ऐसे लोगों के बच्चे पढ़ने में तेज तो होते नही, पास होने के लिए भी अनैतिक रास्ते अपनाते हैं। ऐसे चिकित्सकों के पास डिग्री तो होती है, लेकिन चिकित्सकीय ज्ञान नही होता है। होता भी है, तो आंशिक। लेकिन ऐसे चिकिसकों के पिता या परिजनों के पास अकूत संपत्ति होती है। इसलिए किसी तरह पास आउट होकर आने के बाद इनके पिता अपने डॉक्टर पुत्र के लिए नर्सिंग होम बना देते हैं । ऐसे डॉक्टर अपने नर्सिंग होम में अपने क्षेत्र के कुछ जाने माने डॉक्टरों से परसेंटेज पर बात कर लेते है, इस प्रकार जब कोई पेशेंट उनके नर्सिंग होम में भर्ती हो जाता तो उसको अच्छी तरह चूस लेते। पेशेंट ठीक तो हो जाता, लेकिन पेशेंट कितना गरीब हो, वे एक पैसे छोड़ते नही ।
इसके बावजूद भी डॉक्टरों की इज्जत जनता की नजर में कम नही हुई । लोग फिर भी उसे धरती का भगवान मानते रहे। कहते रहे। उसे आदर सत्कार देते रहे। लेकिन कोरोना संकट काल मे ऐसे चिकित्सकों की पोल खुल गई। पूरे हिंदुस्तान में गर्भ ठहरने से लेकर उसकी प्रसूति तक लोग डॉक्टरों की मोटी फीस देकर भी उनसे सलाह लेते रहे और प्रसूति के समय डॉक्टर के कहने पर ही उसे किसी ऐसे नर्सिंग होम में भर्ती कराते, जहां से उन्हें कमीशन मिलता। नर्सिंग होम भी अभिभावकों को ऐसे डराते है कि नार्मल डिलीवरी तो संभव ही नही है, बच्चा टेढ़ा है, तिरछा है, उल्टा है। अगर ऑपरेशन नही किया गया, तो जच्चा और बच्चा का बचना सम्भव नही है। भयभीत परिजन नर्सिंग होम के डॉक्टरों की ऐसी डरावनी बातें सुन कर ऑपरेशन करने के लिए हां कर देते हैं । और इसके बाद फिर टेस्ट और ऑपरेशन, ड्रिप और महंगी दवाइयों के साथ पेशेंट के परिजनों को निचोड़ने का खेल शुरू हो जाता। जब तक कोरोना महामारी नही आई थी, तब तक इस लूट और हर औरत का पेट फाड़ने के बाद भी लोग डॉक्टरों को भगवान मानते रहे। लेकिन कोरोना के भय से लॉक डाउन हुआ। हॉस्पिटल और नर्सिंग होम सब बंद हो गए। जो हॉस्पिटल या नर्सिंग होम को खोलने की इजाजत मिली, उसमें केवल कोरोना के पेशेंट ही देखे जाते। उन्हीं का इलाज किया जाता । ऐसा नही कि कोरोना संक्रमण काल हुआ तो बच्चे पैदा बंद हो गए। बच्चे आज भी पैदा हो रहे हैं । लेकिन ऊपर वाले भगवान ने जमीन वाले भगवान की कलई खोल दी। इन दिनों होने वाली 99 प्रतिशत डिलीवरी बिना किसी ऑपरेशन और डॉक्टरों की बिना सलाह के हुई। अगर किसी क्रिटिकल केस में कोई परिजन डॉक्टरों से संपर्क किया, तो उन्होंने कॅरोना के डर से भर्ती नही किया। बल्कि उस परिजन को मोबाइल पर ही बता दिया कि ऐसा कर लेना, वैसा कर लेना। और लोग उनके बताए तरीके को अपना कर नार्मल डिलीवरी करा लेते।
यही हाल दूसरी बीमारियों का भी रहा। अधिकांश बीमारियों में लोग हर्बल दवाइयों या घरेलू नुख्शो का उपयोग किये और उतने ही समय मे ठीक हो गए, जितने समय मे डॉक्टर उन्हें ठीक करते रहे। यही से आम जनता की आंख खुल गई, वे कोरोना संक्रमण को धन्यवाद देने लगे । और आम गावों, चौपालों, बैठकों में इस बात को लेकर चर्चा होती रही । कि इस धरती के भगवान ने उन्हें कितनी बेरहमी से लूटते रहे हैं ।
डॉक्टरों की इसी लूट का फायदा हर्बल कंपनियों ने उठाया। उन्होंने ऐसे प्रोडक्ट बनाये, जिससे मनुष्य के शरीर की इम्यूनिटी पॉवर बढ़े, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़े। उन्होंने एक नया कांसेप्ट दिया, जो चिकित्सकीय विज्ञान के अनुसार सही था कि मनुष्य के शरीर मे जितने भी रोग होते हैं, वे किसी न किसी तत्व की कमी की वजह से होते हैं । अगर उसकी पूर्ति कर दी जाए, तो वह रोग उस व्यक्ति को होगा ही नही । या जिस तत्व की कमी की वजह से वह रोग हुआ, उसकी पूर्ति कर दी जाए, तो वह रोग ठीक हो सकता है । इसके साथ साथ ऐसी हर्बल कंपनियों ने प्रचार प्रसार पर यानी एडवरटाइजिंग पर भारी भरकम खर्च को शून्य करते हुए अपने हर्बल प्रोडक्ट का प्रचार प्रसार करने के लिए व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने लगे। इससे उनका खूब प्रचार हुआ और भारत की तमाम जनता उसका उपयोग करने लगी। इसको उदाहरण के रूप में समझने के लिये बाबा रामदेव को देखा जा सकता है। उनके तमाम प्रोडक्ट इसी प्रकार के हैं, जो शरीर की इम्युनिटी पावर को बढ़ाते हैं, और रोगों को ठीक कर देते हैं। बाबा रामदेव की सफलता के पीछे धरती के भगवान माने जाने वाले डॉक्टरों की स्वार्थी प्रवृत्ति और अनुचित तरीके से कमाने की धन की पिपासा है। पहले के तमाम ऐसे डॉक्टर थे, जो उतनी ही दवा देते थे, जितनी जरूरत होती । दवा के साथ घरेलू नुस्खे बता देते। जिससे पेशेंट के साथ उनका आत्मीय संबंध बन जाता और धरती के भगवान के रूप में उनकी प्रतिष्ठा भी बनी रहती।
धरती के भगवान को अपनी घटती लोकप्रियता के संबंध में एक बार विचार करना चाहिये। नही तो आने वाले समय मे उनको भी दूसरे व्यवसायियों की तरह लोग व्यवहार करने लगेंगे, और अगर ऐसा रहा, तो फिर गाली गलौज भी होगी, मारपीट भी होगी, मोल भाव भी होगा। इस कोरोना संकट में जनता को जो ज्ञान हो गया है, उसी के अनुरूप अपने व्यवहार और चिकित्सा में बदलाव करना पड़ेगा।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट