इसमें कोई दो राय नही है कि इस देश की राजनीति की दिशा और दशा ब्राह्मण तय करता है । जिसने इस बात को समझा, उसे सत्ता मिली। सभी ओर से आलोचनाओं की मार सहने वाले ब्राह्मण समुदाय केवल राजनीति की दिशा और दशा ही तय नही करता है, सत्ता किसी की हो, सरकार का संचालन भी उसी के इशारे पर होता है। इसका कारण शुरू से ही शिक्षा की अहमियत को समझने वाले इस समाज को भूखे भले ही रहना पड़े, वह अपने बच्चों को शिक्षा जरूर देता है ।
इसी कारण इस समुदाय के लोग प्रतियोगी परीक्षाओं में भी अधिक सफलता भी प्राप्त करते है। शिक्षा और व्यवहारिकता के कारण समाज मे विरोध के बाद भी इनकी उपयोगिता बनी रहती है । शिक्षा के कारण ही इनमे सहनशीलता भी पाई जाती है । जिसकी वजह से यह समाज लड़ाई झगड़े से दूर रहता है। ऐसा माना जाता है कि अपने व्यक्तिगत गुणों की वजह से यह समाज जिस राजनीतिक दल की हवा बना देता है, उसकी जीत हो जाती है। ज्ञान होने की वजह से यह समाज किससे क्या बात करना है, कब करना है, कैसे करना है, समय सूचकता का भी उन्हें भरपूर ज्ञान होता है। इसी कारण वे सफल होते है।
अपनी प्रकृति के अनुसार मूलरूप से ब्राह्मणों का झुकाव भारतीय जनता पार्टी की तरफ ही होता है । भाजपा भी उन्हें पूरा सम्मान देती है। ऐसा नही कि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस या अन्य पार्टियां उसे सम्मान नही देती, उसे सम्मान तो सभी देती है, लेकिन सपा, बसपा का एक धड़ा उसका विरोध करते हुए भी देखा जा सकता है। जबसे सोशल मीडिया आई है और मूल निवासी नामक संगठन बने है, तब से भाजपा को छोड़ कर अन्य राजनीतिक दलों के समर्थकों के मूल निवासी समर्थक उन्हें भला बुरा कहते हुए देखे जा सकते हैं।
लेकिन विभिन्न राजनीतिक दल इनके मानवीय और व्यक्तिगत व व्यवहारिक कौशल के कारण इन्हें खूब तवज्जो देते है। सभी विपक्षी दलों में उनकी पूछ परख भी खूब होती है। बसपा सुप्रीमों मायावती ने तो ब्राह्मणों और अनुसूचित जाति, जनजाति का नया राजनीतिक सामाजिक गठजोड़ बना कर चुनाव भी जीता और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनी । समाजवादी पार्टी की बागडोर जबसे अखिलेश यादव के हाथ मे आई, युवा ब्राह्मणों का झुकाव समाजवादी पार्टी की ओर हुआ। पढ़े लिखे और शालीन स्वभाव के अखिलेश यादव को ब्राह्मण प्रिय लगे। उनकी सोच और चिंतन की वजह से उन्होंने उन्हें उच्च पदों पर आसीन किया। हर राजनीतिक मसलों पर उनसे सलाह मशविरा भी किया । पिछले विधानसभा चुनाव में लखनऊ के रहने वाले, अखिलेश यादव के बेहद करीबी माने जाने वाले एक ब्राह्मण नेता ने पर्चियों पर जिसका नाम लिख कर भिजवा दिया, उसे भी विधानसभा चुनाव का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। अपने मुख्यमंत्रित्व काल मे ब्राह्मणों को प्रतिनिधित्व ही नही दिया, अपने हर निर्णय के पूर्व ब्राह्मण नेताओं के साथ विचार विमर्श करने के साथ ब्राह्मण अधिकारियों का भी सम्मान किया। अपने नजदीक उन्हें रखा और काम भी लिया। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के इन्हीं गुणों के कारण अखिलेश यादव ब्राह्मणों की पहली पसंद बन गए। गली मोहल्लों में उनके नाम की चर्चा भी होने लगी। अगर चुनाव की बागडोर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संभालने के कारण वे भाजपा की ओर उन्मुख हुए । फिर संघ के प्रभाव में आकर अधिकांश ब्राह्मण भाजपा के पक्ष में लामबंद हो गया। उत्तर प्रदेश का जो ब्राह्मण उत्तर प्रदेश में अखिलेश और दिल्ली में नरेंद्र मोदी की बात करने लगा था, उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव को अपनी पहली पसंद बताने लगा था, वह अचानक कैसे पलट गया, इस पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को विचार करना चाहिए।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर अपराधियों के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान में जब कानपुर के विकास दुबे का एनकाउंटर हुआ, तो ब्राह्मणों में आक्रोश बढ़ा। उस समय उसके जितने साथियों का एनकाउंटर हुआ, सभी ब्राह्मण निकले। इसके अलावा ब्राह्मणों में आक्रोश का कारण उनकी हो रही सामूहिक हत्याएं भी रही । ब्राह्मण समुदाय की इस पीड़ा को सबसे पहले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने महसूस किया। उनके साथ खड़े होने और उन्हें सुरक्षा देने के साथ उनके साथ न्याय करने का मन बनाया। पार्टी के अधिकांश ब्राह्मण नेताओं से विचार विमर्श करके उन्हें संगठित करने और अपना संदेश देने के लिए ब्राह्मण समाज के बीच जाने को कहा। समाजवादी ब्राह्मण सभा सक्रिय हुई। इसके साथ अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले समाजवादी पार्टी के ब्राह्मण नेता भी स्वतः सक्रिय हुए। सपा के पक्ष में एक माहौल बनने लगा। जमीनी जानकारी मिलने के बाद ब्राह्मणों के आराध्य भगवान परशुराम की 108 फुट ऊंची मूर्ति लगाने की घोषणा हुई, इसके पूर्व कृष्ण और सुदामा संबंधित अखिलेश के ट्वीट ने हलचल मचा ही रखा था। समाजवादी पार्टी के पक्ष में जमीनी ब्राह्मणों के लामबंद होने की जानकारी जब बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों मायावती और कांग्रेस को मिली, तो इन दोनों दलों ने ब्राह्मणों को अपने पक्ष में करने के लिए मीडिया पर अवतरित हुए। बसपा सुप्रीमों ने सत्ता में आने के बाद भगवान परशुराम की मूर्तियां बनवाने, उनके नाम पर पार्कों के नाम रखने की बात की। कांग्रेस ने परशुराम की जयंती पर अवकाश की बात की। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल मे उनकी जयंती पर राजकीय अवकाश घोषित किया था।
एक बात तो तय है कि भाजपा की गोदी में बैठे ब्राह्मण का अगर किसी राजनीतिक दल की तरह सबसे अधिक झुकाव है, तो वह समाजवादी पार्टी है। उसके नेता का स्वभाव और चरित्र है । अपना नाम न छापने की शर्त पर अखिलेश यादव के एक करीबी, उनकी सरकार में मंत्री रहे ब्राह्मण सपा नेता ने बताया कि जो बसपा ब्राह्मणों को जूते मारने की बात करती रही, वह कैसा सम्मान देगी, सभी जानती है । अपनी सरकार में उसने किस तरह बुजुर्ग ब्राह्मणों से अपनी चरण वंदना करवाई है, आम ब्राह्मण भूला नही है। उन्होंने यह भी कहा कि चंद पद लोलुप ब्राह्मण भले बसपा के पक्ष में खड़े होते दिखे, लेकिन उत्तर प्रदेश के संदर्भ में ब्राह्मणों की पहली पसंद अखिलेश यादव ही हैं ।
यह बात सही भी है। भाजपा के बाद उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की पहली पसंद सपा ही है। उसके नेता अखिलेश यादव ही है। लेकिन समाजवादी पार्टी के अंदर पिछड़े और अनुसूचित जाति का समर्थन करने वालों को ब्राह्मणों का यह महिमा मंडन ठीक नही लग रहा है। वे सोशल मीडिया पर खुल कर इसका विरोध कर रहे हैं । समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को उन्हें भी समझाना चाहिए कि इससे उनके ऊपर कोई असर नही पड़ने वाला है। बल्कि उनके आने से 351 प्लस का लक्ष्य पूरा करने में आसानी होगी।
लेकिन एक बात तो है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों की क्या अहमियत है, अपने पक्ष में उन्हें लामबंद करने के लिए उत्तर प्रदेश में सभी विपक्षी दलों में आपसी तकरार को देख कर समझा जा सकता है। भाजपा और उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ योगी सरकार भी इसी कोशिश में है कि ब्राह्मण उनकी ही गोदी में बैठा रहे और मोदी के कारण भाजपा और असकी सत्ता का सहयोग करता रहे। अभी तो यह शुरुआत है, आने वाले समय मे स्थितियां और साफ होगी कि ब्राह्मण का झुकाव किस तरफ है। फिलहाल तो अभी अखिलेश यादव का चेहरा सब पर भारी है ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट