मनुष्य को अपनी उपलब्धियों से अधिक अपने बच्चों की उपलब्धियों पर गर्व होता है। अपने जीवन काल मे धन की ढेरी लगा देने वाले व्यक्ति के हाथ में भी जब उसका बच्चा अपनी पहली कमाई का थोड़ा सा रुपया रख देता है, तो पिता उतना खुश होता है जितना स्वयं की कमाई पर नहीं हुआ होता। यह सामान्य मानवीय भाव है, यह भारतीय रङ्ग है।
कुछ पत्थर मन्दिर की दीवारों, स्तम्भों और शिखरों में लगाये जाते हैं। चमकदार, सुन्दर पत्थर! जिन्हें देख कर लोग मोहित होते हैं, प्रशंसा करते हैं। कुछ पत्थर मन्दिर की नींव में डाले जाते हैं। बहुत ही शक्तिशाली पत्थर! इन्हें कोई नहीं देखता, पर गुणी लोग उनकी महता जानते हैं, सो प्रणाम करते हैं।
उस दिन जब मोदी जी अयोध्या में मन्दिर की पहली ईंट रख रहे थे, तब कहीं दूर बैठे इस बुजुर्ग का रोम रोम अपने इस यशश्वी बच्चे को आशीष दे रहा होगा। श्री आडवाणी जानते थे कि पहली ईंट के साथ मन्दिर की नींव में उनकी तपस्या, उनकी निष्ठा, उनका संघर्ष, उनका त्याग सब रखा जा रहा था। आयु के अंतिम चरण में अपने सबसे बड़े स्वप्न को पूरा होते देखना बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। अटल आडवाणी ने साथ मिल कर यह स्वप्न देखा था। अटल नहीं देख सके, पर आडवाणी जी के भाग्य में यह सुख देखना लिखा था। । रो पड़ा होगा वह व्यक्ति... मोदी की इस उपलब्धि पर यदि कोई मोदी से अधिक प्रसन्न होगा तो वे आडवाणी होंगे।
यदि केवल राजनैतिक व्यक्तियों की बात करें तो राम मंदिर के लिए लालकृष्ण आडवाणी का परिश्रम सबसे अधिक दिखता है। राममन्दिर को राजनैतिक मुद्दा उन्होंने ही बनाया था। राममन्दिर को भाजपा का लक्ष्य उन्होंने ही बनाया था। सोमनाथ से अयोध्या की उनकी रथयात्रा ने देश के हर व्यक्ति को मन्दिर आंदोलन से भावनात्मक रूप से जोड़ने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी। आडवाणी तब भी बुजुर्ग ही थे, पर जब वे गरजते थे तो लगता था कि अच्छे दिन आने वाले हैं। भारतीय लोकतंत्र में वे हिंदुत्व के पहले स्पष्ट स्वर थे।
आडवाणी जी का प्रभाव इस बात से भी सिद्ध होता है कि हिंदुत्ववादी विचारधारा के विरोधी लोग आज जितनी गालियां मोदीजी को देते हैं, उससे अधिक गालियां वे आडवाणी जी को देते रहे हैं।
प्रधानमंत्री जी जो पूरा कर रहे हैं, पार्टी में वे सारे सपने आडवाणी जी के सिरजे हुए हैं। मोदी जी जिस सीढ़ी पर चढ़ कर लालकिले की छत तक पहुँचे, वह सीढ़ी आडवाणी जी की बनाई हुई है। किसी भी राष्ट्र को नया नायक यूँ ही नहीं मिलता, कम से कम एक पीढ़ी तो उसके आने की राह बनाती है। श्री लालकृष्ण आडवाणी उसी राह बनाने वाली पीढ़ी के मुखिया हैं...
कभी बंटवारे के बाद पाकिस्तान से रिफ्यूजी की तरह आया था आडवाणी जी का परिवार! पाकिस्तानी मानसिकता वाले लोगों का अत्याचार देखा था उन्होंने। भारत विभाजन की पीड़ा को भोगा था उन्होंने। रिफ्यूजी कैम्प से देश के उपप्रधानमंत्री तक की यात्रा वस्तुतः एक योद्धा की यात्रा है। एक अनिश्चित भविष्य वाले युवक से भारत के भविष्य की वैचारिक नींव रखने वाले बुजुर्ग बनने तक की यात्रा स्वयं में एक प्रतिष्ठित इतिहास है। आडवाणी एक व्यक्ति का नाम नहीं, शून्य से शिखर तक की यात्रा का नाम है।
कुछ विदूषक कहते हैं कि मोदी जी ने आडवाणी जी के साथ न्याय नहीं किया। काश! वे समझ पाते कि देश का प्रधानमंत्री चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले जिस व्यक्ति का पैर छूने जाता हो, उस व्यक्ति को उसके बाद और किसी चीज की इच्छा ही नहीं रह जाती।
जीवन के रंगमंच पर हर व्यक्ति को अलग अलग भूमिका मिलती है। अच्छा अभिनेता वह होता है जो अपनी भूमिका को पूरी निष्ठा के साथ निभाये... लालकृष्ण आडवाणी इस रंगमंच के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक हैं। वे नींव के पत्थर हैं।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।