भगवान श्रीराम ने बाली और सुग्रीव में अपेक्षाकृत दुर्बल सुग्रीव से मित्रता क्यों की?

Update: 2020-08-04 13:27 GMT

कल आदरणीय आशुतोष राणा जी ने प्रश्न किया कि " भगवान श्रीराम ने बाली और सुग्रीव में अपेक्षाकृत दुर्बल सुग्रीव से मित्रता क्यों की? यदि वे बाली से मित्रता करते तो वह अकेले रावण को पराजित कर सकता था। फिर उसे त्याग कर सुग्रीव से मित्रता क्यों किये...?"

सबसे पहले तो हमें यह समझना होगा कि राम और रावण का युद्ध सत्ता का युद्ध नहीं बल्कि सभ्यता का युद्ध था। वह युद्ध न तो अयोध्या और लंका का आपसी युद्ध था, न ही केवल राम और रावण का युद्ध था, वह युद्ध था धर्म और अधर्म का... सत्ता के युद्ध में राजनीति देखी और निभाई जाती है, पर सभ्यता के युद्ध मे केवल और केवल धर्म निभाया जाता है।

राम "मातृवत परदारेशु..." की मान्यता वाली सभ्यता के प्रतिनिधि थे, और रावण वह था जिसने असँख्य विवाहिताओं का बलात अपहरण किया था।

राम वे थे जिन्होंने पिता के वचन की रक्षा के लिए अयोध्या छोड़ दी थी, जबकि रावण वह था जिसके कुकर्मो से दुखी हो कर उसके पिता ने लंका छोड़ दी थी।

अयोध्या से जब वे दो योद्धा निकले तो वे साम्राज्य विस्तार के लिए नहीं निकले थे, वे निकले थे धर्म की स्थापना के लिए... राम निकले थे पुत्रधर्म कि निर्वहन के लिए! लक्ष्मण निकले थे भ्रातृधर्म के निर्वहन के लिए! और सीता निकलीं थी पत्नीधर्म के निर्वहन के लिए... महर्षि शरभंग के आश्रम में ऋषियों की अस्थियों का ढेर देख कर जब राम ने दैत्य संहार का प्रण लिया, तो यह उनका क्षत्रिय धर्म था। और रावण से युद्ध करना उनका पति धर्म था। कुल मिला कर कहें तो राम की वनवास यात्रा विशुद्ध धर्मयात्रा थी। यह राम की 'राजकुमार राम' से "मर्यादा पुरुषोत्तम राम" होने की यात्रा थी।

तो फिर इस धर्मयात्रा में राम अधर्म का साथ कैसे देते? बाली ने अनुज वधु का बलात हरण किया था। भगवान राम रावण को ऐसे ही अपराध का दण्ड देने निकले थे, फिर वैसे ही अपराध के अपराधी से मित्रता कैसे कर लेते? जो अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए किसी अधर्मी से सहयोग ले ले वह मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं हो सकता। इसीलिए राम ने बाली का परित्याग किया...

आप राम के जीवन को ध्यान से देखेंगे तो पाएंगे कि उन्होंने कभी किसी अधर्मी का सहयोग न लिया है, न सहयोग दिया है। उनके जीवन से जुड़ा हर व्यक्ति अपने धर्म पर अडिग रहा है। कोई भी व्यक्ति यूँ ही मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं हो जाता। जब जीवन में लक्ष्मण, भरत जैसे समर्पित भाई हों, दशरथ जैसे पुत्रप्रेम में प्राण न्योछावर कर देने वाले आदर्श पिता हो, कौशल्या और सुमित्रा जैसी आदर्श माताएं हों, माता सीता जैसी हर पल साथ खड़ी रहने वाली पत्नी हो, निषादराज जैसा आदर्श मित्र हो, और हनुमान जैसा आदर्श और समर्पित भक्त हो तभी व्यक्ति मर्यादा पुरुषोत्तम राम होता है। राम से जुड़े हर व्यक्ति ने अपने जीवन में धर्म को सबसे आगे रखा था। ऐसी मंडली में बाली के लिए कोई जगह नहीं बनती थी।

यूँ तो भगवान श्रीराम के जीवन का हर अध्याय ही जीवन जीने की कला सिखाता है, पर यहाँ हम उनसे सीख सकते हैं कि मित्रता किससे करनी चाहिए। यह आवश्यक नहीं कि हमारा मित्र बहुत सामर्थ्यवान हो, शक्तिशाली हो, धनवान हो... आवश्यक यह है कि हमारा मित्र हमारे प्रति निष्ठावान हो और हम उसके प्रति निष्ठावान हों। आपके पास जीवन में यदि एक भी निष्ठावान मित्र हो, तो वह आपको हर विपत्ति से हाथ पकड़ कर बाहर खींच लाएगा।

"जय जय सियाराम"

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।।

Similar News