दूर्वा गणपती व्रत:- (निरंजन मनमाडकर)

Update: 2020-07-23 10:52 GMT


श्रावण शुद्ध चतुर्थी व्रत

सौर पुराण तथा स्कंद महापुराण के अनुसार श्रावण मास की शुक्ल चतुर्थी का व्रत दूर्वा गणपती व्रत कहा है!

सौर पुराण के अनुसार यदि माध्यान्ह काल में चतुर्थी तिथी हो, तो वह ग्राह्य मानी गयी है, मातृविद्धा प्रशस्यते इस न्याय से माध्यान्ह व्यापिनी चतुर्थी को भी यह व्रत कर सकते है!

सनत्कुमार उवाच

केन व्रतेन भगवन्सौभाग्यमतुलं भवेत् |

पुत्रपौत्रधनैश्वर्यं मनुजः सुखमेधते |

तन्मे वद महादेव व्रतानामुत्तमं व्रतम् ||

हे भगवन्! कौनसा व्रत करने पर अतुलनीय सौभाग्य प्राप्त होता है?

मनुष्य को पुत्रपौत्र धन ऐश्वर्य किस व्रत के द्वारा प्राप्त होता है?

हे महादेव! आप मुझे व्रतों में उत्तम व्रत बताईएं!

ईश्वर उवाच

अस्ति दूर्वागणपतेर्व्रतं त्रैलोक्यविश्रुतम् |

भगवत्या पुरा चीर्णं पार्वत्या श्रद्धया सह ||

सरस्वत्या महेन्द्रेण विष्णुना धनदेन च |

अन्यैश्च देवैर्मुनिभिर्गन्धर्वैः किन्नरैस्तथा |

चीर्णमेतद् व्रतं सर्वैः पुराभून्मुनिसत्तम ||

तीनों लोकों में विख्यात दूर्वा गणपती नामक व्रत है!

सर्व प्रथम पार्वतीने इसे श्रद्धा पूर्वक किया था!

हे मुने! तत्पश्चात सरस्वती, इंद्र, कुबेर, विष्णु गंधर्व किन्नर आदि सभी ने इस व्रत को किया था!

चतुर्थी या भवेच्छुद्धा नभोमासि सुपुण्यदा |

तस्यां व्रतमिदं कुर्यात्सर्वपापौघनाशनम् ||

श्रावण मास की जो शुक्ला चतुर्थी है उस तिथी में यह व्रत करने से महापापोंका नाश होता है!

एकदन्त गजानन गणेशजी की सुवर्ण(Gold) मूर्ती बनवानी चाहिए!

सुवर्ण(Golden दुर्वा) @दूर्वा जो संख्यामें २१ हो उनके आधार पर उस सुवर्ण मूर्ती की स्थापना करनी चाहिए! तत्पश्चात विघ्नेश्वर भगवान गणपती जी को रजत के पूर्णपात्रमें सोला पल धान्य में स्थापन करना चाहिए! उन्हे रक्तवस्त्र से वेष्टित करना चाहिए! और उस पात्र को सर्वतोभद्र मंडलस्थित कलश के उपर स्थापित कर देना चाहिए!

रक्तपुष्प, अपामार्ग पत्र, शमी, दूर्वा, मन्दारपुष्प, तुलसी, बिल्वपत्र आदिंसे पूजा करनी चाहिए! भिन्न भिन्न प्रकार के फल, फूल तथा मोदकसहित भगवान गणेशकी आराधना करनी चाहिए! अनैको उपचार अर्पण करने चाहिए

तत्पश्चात इस अध्याय में गणेशजी की विशेष पौराण मन्त्रोंसे पूजा दी है!

उपासकों की सुविधा हेतू यहापर दी जाती है!

१)आवाहन!

प्रतिमायां स्वर्णमय्यां निर्मितायां यथाविधि |

आवाहयामि विघ्नेशमागच्छतु कृपानिधी ||

इस स्वर्णमयी प्रतिमा में हे कृपानिधी विघ्नेश्वर आप आजावे! आपका आवाहन करता, करती हूँ!

२)आसनम्!

रत्नबद्धमिदं हैमं सिंहासनमनुत्तमम् |

आसनार्थमिदं दत्तं प्रतिगृह्णातु विश्वराट् ||

३)पाद्य!

उमासुत नमस्तुभ्यं विश्वव्यापिन्सनातन |

विघ्नौघं छिन्दि सकलं मम पाद्यं ददामि ते ||

४)अर्घ्य!

गणेश्वराय देवाय उमापुत्राय वेधसे |

अर्घ्यमेत्प्रयच्छामि गृहाण भगवन्मम ||

५)आचमनीयम्!

विनायकाय शूराय वरदाय नमो नमः |

इदमाचमनीयं ते ददामिप्रतिगृह्यताम् ||

६)गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाह्रतम् |

स्नानार्थं ते मया दत्तं गृहाण सुरपुङ्गव ||

७)वस्त्र! रक्तवर्णी!

सिन्दूरेण यथा लक्ष्म कुङ्कुमै रञ्जितं मया |

वस्त्रयुग्ममिदं दत्तं गृहाणं च नमोस्तुते ||

८)गन्ध चन्दन!

लम्बोदराय देवाय सर्वविघ्नाप हारिणे |

उमाङ्गमलसम्भूतं चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ||

९)अक्षता!रक्ताक्षता

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ रक्तचन्दनचर्चिता |

मया निवेदिता भक्त्या गृहाण सुरसत्तम ||

१०)पुष्प!

चम्पकैः केतकीपत्रैर्जपाकुसुमसङ्घकैः |

गौरीपुत्रं पूजयामि प्रसीद तु ममोपरी ||

११)धूपम्!

अनुग्रहायलोकानां दानवानां वधाय च |

अवतीर्णः स्कन्दगुरूर्धूपं गृह्णातु वै मुदा ||

१२)दीपम्!

परं ज्योतिः प्रकाशाय सर्वसिद्धिप्रदाय च |

दीपं तुभ्यं प्रदास्यामि महादेवात्मने नमः ||

१३) नैवेद्यम्!

ग॒णानां॑ त्वा ग॒णप॑तिं हवामहे क॒विं क॑वी॒नामु॑प॒मश्र॑वस्तमम् ।

ज्ये॒ष्ठ॒राजं॒ ब्रह्म॑णां ब्रह्मणस्पत॒ आ नः॑ शृ॒ण्वन्नू॒तिभिः॑ सीद॒ साद॑नम् ॥

ऋग्वेद २.०२३.०१॥

शुक्ल तथा कृष्ण यजुर्वेदी बंधु अपने अपने शाखा का अनुसरण करें!

उपरोक्त मंत्र से चार प्रकार के अन्न भक्ष्य, भोज्य, लेह्य तथा चोष्य! एवं मोदक, पायसम्, लड्डुकम् इन तीनोंका समावेश होना ही चाहिए!

१४)ताम्बूलम्!

कर्पूरैलादिसंयुक्तं नागवल्लीदलान्वितम् |

ताम्बूलं ते प्रदास्यामि मुखवासार्थमादरात् ||

१५)दक्षिणा!

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः |

दक्षिणां ते प्रदास्यामि ह्यतःशान्तिप्रयच्छ मे ||

१६)प्रार्थना!

गणेश्वर गणाध्यक्ष गौरीपुत्र गजानन |

व्रतं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादादिभानन ||

हे गणेश्वर! हे गणाध्यक्ष! हे गौरीपुत्र! हे गजानन!

आपके कृपा प्रसाद से मेरा यह व्रत संपूर्ण हो!

इस प्रकार पूजन करने के पश्चात सभी पूजा तथा स्वर्ण प्रतिमा दूर्वा सभी दान करना चाहिए!

दानी को चाहिए के वह योग्य ब्राह्मण जो गाणपत्य हो! अथवा गणेश भक्त हो! वेदाचार रत हो ऐसे निष्ठावान ब्राह्मण को देना चाहिए!

गृहाण भगवन्ब्रह्मन्गणराजं सदक्षिणम् |

एतत्वद्वचनादद्य पूर्णतां यातु मे व्रतम् ||

हे ब्रह्मन्! आप इस गणराज सहित दक्षिणा का स्वीकार करें!

आपके आशीर्वाद से मेरा यह व्रत पूर्ण हो जाए

इस व्रत को पाँच वर्षतक करने का विधान है!

तत्पश्चात उद्यापन करना चाहिए!

विना उद्यापन किया हुआ व्रत निष्फल है!

उद्यापन विधि में भी उपरोक्त स्वर्ण प्रतिमा एवं दूर्वा बनानी चाहिए!

पंचगव्य से स्नान करवा कर!

सर्वतोभद्रमण्डलस्थ देवताओं के साथ पूर्णपात्र में स्थापना करनी चाहिए!

ॐ गणाधीशाय नमः

ॐ उमापुत्राय नमः

ॐ अघनाशनाय नमः

ॐ विनायकाय नमः

ॐ ईशपुत्राय नमः

ॐ सर्वसिद्धिप्रदायकाय नमः

ॐ एकदन्ताय नमः

ॐ इभवक्त्राय नमः

ॐ मूषकवाहनाय नमः

ॐ कुमारगुरवे नमः

इन नामोंसे एवं यथा शक्ति अष्टोत्तरशतनाम, सहस्रनामोंसे दूर्वा अर्चन करें!

उद्यापन के प्रथम दिन ग्रहयज्ञ करें!

दुसरे दिन मोदक दूर्वादलोंसे हवन करना चाहिए!

पूर्णाहुती के पश्चात उपरोक्त दान सहित उत्तम गोदान का विधान है!

गणेशकी तुष्टी हेतू गोदान करना चाहिए!

हे सनत्कुमार! इस प्रकार पंचवर्ष गणेश की दूर्वादलोंसे पूजन यजन करने से मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण होते है!

सभी प्रकारकें प्रश्नोंका उत्तर मिल जाता है!

ॐ मंगलमूर्ती मोरया

बाप्पा मोरया विघ्नहर्ता कल्याण करो

लेखन व प्रस्तुती

निरंजन मनमाडकर

यहापर जो विशेष मन्त्र दिएं है उन्हींसे ही पूजा करनी चाहिए!

अधिक जो चाहे वह करें किंतु इस व्रत में इन्ही मन्त्रोंसे पूजन करें!

गणेशाय नमस्तुभ्यं हेरम्बयैकदन्तिने

स्वानंदवासिने तुभ्यं ब्रह्मणस्पतये नमः ||

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