इस समय मैं कोरेना - पर्यावरण जागरूकता अभियान शहीद सम्मान सायकिल यात्रा के तहत गांव गांव भ्रमण कर रहा हूँ । कोरेना और पर्यावरण के संबंध में जन जागरण के तहत समाज के सभी वर्गों के लोगों से संवाद होता है। संवाद सिर्फ कोरेना और पर्यावरण तक ही सीमित नही रहती है । बल्कि समाप्त होने के बाद समाज और राजनीति पर केंद्रित हो जाती है । अभी तक समाज के जिन वर्गों से भी चर्चा हुई। उसमें अनुसूचित जातियों ने बड़ी बेबाकी और साफगोई से अपनी बात रखी। उनकी बातें सुन कर मुझे पहली बार लगा कि उनके पास एक पुष्ट सामाजिक संरचना के साथ परिपक्व राजनीतिक समझ और विकासवादी विचारधारा है । अगर हम उत्तर प्रदेश के संबंध में बात करें, तो अन्य प्रदेशों की तरह उन पर भी बाबा भीमराव अंबेडकर के जीवन दर्शन और विचारधारा का व्यापक प्रभाव है । उनके सामाजिक प्रभावों के कारण ही उसने ब्राह्मणवाद का खुला विरोध करते हुए उनके द्वारा बनाई गई समस्त परंपराओं और रूढ़ियों का परित्याग कर दिया । सनातन धर्म को भी छोड़ कर बौद्ध धर्म अपना लिया । इससे उनके मन मे एक स्वस्थ विचार का आगमन हुआ। अपनों के प्रति एक सकारात्मक सोच बनी । बौद्ध धर्म के अनुसार उन्होंने अपने बुद्धि के अनुसार अपनी समस्याओं का समाधान करना शुरू किया। इसकी वजह से अनुसूचित जन की शिक्षा के प्रति अभिरुचि बढ़ी । उन्होंने बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया। संविधान प्रदत्त आरक्षण का लाभ मिला । और धीरे धीरे आर्थिक रूप से भी वे मजबूत होते गए । अपनी इस यात्रा के दौरान मैं जितनी अनुसूचित जन की बस्तियों में गया, अगर कुछ गरीबों को छोड़ दें, तो दो तिहाई से अधिक बस्ती काफी सम्पन्न दिखी। छोटे ही सही, पर सभी के घर ईंटों से ही बने थे। रहन सहन का स्तर भी ठीक ठाक दिखा । उनसे हुई चर्चाओं के आधार पर मैं कह सकता हूँ कि बातचीत की व्यवहारिकता में भी वे काफी कुशल दिखे ।
बौद्ध धर्म अपना लेने के कारण उन्होंने सभी सनातनी परंपराओं का त्याग कर दिया। जिसकी वजह से उनके समय और धन दोनों की बचत होने लगी । जिस घर मे शराब पीने के लती नही है, हर दृष्टि से वह परिवार उन्नत हुआ है । बस यही एक कमी इस समाज मे दिखी की मेहनतकश होने के बावजुद अधिकांश अनुसूचित बस्तियों के लोग शाम की देशी पौव्वा पीकर मस्त हो जाते हैं । और उलूल जुलूल बकने की वजह से उनका सामाजिक अनादर होता है। लेकिन लोगों यह भी बताया कि अब इस प्रवृत्ति पर भी काफी रोग लगी है । शिक्षित युवा पीढ़ी इसका विरोध करती है । और यह कहती सुनी गई कि अगर पीना ही हो, तो घर पर लाकर पीओ और खाना खा कर सो जाओ । इससे भी अनुसूचित समाज परिष्कृत हुआ है । इससे लोगों की आदतों में बदलाव आया है । और उनकी सामाजिक स्थिति बदली । सनातनी व्यवस्था में इनकी बस्तियां भी बाहर और गांव से अलग बनाई गई थी। इसका भी इन लोगों ने बुद्धि बल का उपयोग कर अपना पक्ष मजबूत कर लिया । यह भी देखने मे दिखा कि ये आपस मे कितनी भी लड़ाई करें । लेकिन जब किसी बाहरी से लड़ाई होती है तो पूरा समाज एक हो जाता है । सरकार और कानून से मिली सुविधाये भी इन पर होने वाले बाहरी अत्याचार से बचाती हैं । अब तो समाज मे कहीं कहीं भयावह स्थिति बन गई है । लोग इनसे दूरी बना कर रखते हैं ।
शिक्षा दीक्षा और आर्थिक स्थिति उच्च होने के कारण ये साफ सुथरे कपड़े पहनते हैं । कई लोग तो धनिकों की तरह महंगे कपड़े पहने देखे जा सकते हैं । अनुसूचित बस्तियो में भी घर घर मोटर सायकिल दिखाई देती है। सायकिल की संख्या बहुत कम हो गई है । कई घरों में चार पहिया वाहन तो दिखे ही। कईयों की तो आलीशान कोठियों के साथ महंगी गाड़ियां भी दिखी । लेकिन बहुसंख्यक समाज आज भी गरीब दिखाई पड़ता है । मोबाइल तो घर घर तक पहुच गया । पहरावे में तो इतनी साम्यता आ गई है कि उसके आधार पर भविष्यवाणी ही नही की जा सकती है ।
सनातन धर्म छोड़ने के बाद इन लोगों ने अम्बेडकर को अपना भगवान मान लिया । यह अनुसूचित बस्ती है, इसकी पहचान हर बस्ती के बाहर लगी बाबा साहब अम्बेडकर की मूर्ति से हो जाती है । इस मूर्ति के प्रति उनकी आस्था का अनुमान इसी बात से लगाया जाता है कि अगर किसी ने इस मूर्ति की एक उंगली भी तोड़ने की हिमाकत कर दी, तो पूरी बस्ती ही नही, पूरे क्षेत्र के अनुसूचित जन एक होकर शासन प्रशासन को उसके खिलाफ कार्रवाई करने और उस मूर्ति की मरम्मत करने के लिए बाध्य कर देते हैं । उनकी आसक्ति सिर्फ मूर्ति के साथ नही, बल्कि उनके विचारों के प्रति भी है । बाबा साहब अम्बेडकर ने समाज के उत्थान के लिए जो जो विचार दिए हैं, उसे सिर्फ पढ़ कर ही इतिश्री नही कर लेते हैं , बल्कि उसे आत्मसात करके उचित अवसर पर उसका उपयोग करते हैं । इसी कारण उनकी सोच उच्च गामिनी बनी हुई है । दूसरे समाजों की अपेक्षाकृत अधिक विकास कर रहे हैं ।
उत्तर प्रदेश मान्यवर कांशीराम और मायावती की वजह से उनमें राजनीतिक जागरूकता बढ़ी । पहले अनुसूचित जन दूसरों के लिए वोट बैंक बने रहते । लोग डरा धमका कर उनका और उनके वोट का अपने पक्ष में प्रयोग कर लेते। लेकिन समय के साथ उनमे राजनीतिक जागरूकता बढ़ी । कांशीराम द्वारा बहुजन समाज पार्टी बन जाने के बाद वे बसपा के पक्ष में लामबंद हुए । इनके नेता साल भर कोई भी धरना आंदोलन नही करते हैं। दूसरे दलों से कम प्रचार भी करते हैं । इसके बाद भी बसपा कई बार सरकार बना चुकी है।
लेकिन अपनी यात्राओं के दौरान मुझे उनसे होने वाले संवाद से ऐसा महसूस हो रहा है कि अनुसूचित जन का भी अपने दल बसपा से मोहभंग हो रहा है। बातचीत में वह मोदी और अखिलेश की बात कर रहा है । सिर्फ बात ही नही, प्रशंसा भी कर रहा है। पिछली सरकार में अखिलेश द्वारा बिना किसी भेदभाव के उनके लिए जो योजनायें चलाई गई थी, उसकी चर्चा वह आज भी करता है । वह अखिलेश के चेहरे को राजनीति का सबसे साफ सुथरा चेहरा मानता है । यानी उसका आकर्षण अपनी नेता के अतिरिक्त होने लगा हैं। लेकिन उसकी राजनीतिक निष्ठा अब भी बसपा के प्रति है। लेकिन इन्ही लोगों में से कुछ लोगों का कहना है कि अगर हमें विश्वास दिलाया जाए, कि सरकार बनने पर हमारे हितों की सुरक्षा होगी तो हम सपा के पक्ष में भी वोट करते हैं । लेकिन एक बात और है स्थानीय नेताओं से वे घृणा भी करते हैं ।
कोरेना संकट काल मे मोदी और योगी सरकार द्वारा दिये जा रहे प्रति यूनिट 5 किलोग्राम गेहूं व चावल और एक किलो चना से भी वे खुश हैं । वे कहते हैं कि हमारे बच्चों को मोदी भूखे मरने नही दिया। गेहूं व चावल देकर हमारे लिए भोजन की व्यवस्था की । साथ ही 5 सौ रुपये भी हमारे खाते में डालते रहते हैं । इस वजह से अधिकांश अनुसूचित जन का झुकाव मोदी की ओर भी है । इस प्रकार जी अनुसूचित जन कभी बसपा के सिवा किसी दूसरी पार्टी के बारे में सोचता भी नही था। आज वह अखिलेश और मोदी के चेहरों को अच्छा बताने लगा है । इससे यह लगता है कि वह भी अपने वोट की कीमत समझने लगा है । इतना ही नही, उसे यह भी लगने लगा है कि वह देश व प्रदेश में बनने वाली सरकार में अहम भूमिका निभा सकता है । वह जिसे चाह ले उसकी सरकार बन सकती है । जिसकी चाहे जीत छीन सकता है ।
मुझे अपनी यात्राओं के दौरान यह अनुभव हो रहा है कि समाज मे अनुपातिक रूप में अगर किसी ने सबसे अधिक विकास किया, तो वे हैं अनुसूचित जन । समाज मे अपनी स्थिति तो बदली ही । शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति की है ।
राजनीति में आज सबसे अधिक प्रासंगिक अनुसूचित जन ही बचे हैं । क्योंकि सबसे अधिक एका इन्हीं में बची है । बिना किसी प्रयास के आज भी इनका वोट अपनी ही पार्टी को ही मिलता है । लेकिन वह कितने दिन तक एकजुट रह पायेगा । यह देखने की बात है ।
बाबा साहब अम्बेडकर ने संविधान में अनुसूचित जन के उत्थान और विकास की जो व्यवस्था हुई हैं, उसका भी इन्हें निरंतर लाभ मिल रहा है । संविधान में इनके सामाजिक उत्थान से लेकर आर्थिक उत्थान तक की व्यवस्था की गई है । जिसका लाभ इन्हें मिल रहा है । इनके लिए नौकरियां ही सिर्फ संविधान आरक्षित नही की गई । बल्कि आज जितनी भी सरकारी योजनाएं निकलती हैं, उसमें अनुसूचित जन को वरीयता के साथ सहूलियत भी प्रदान की जाती है। जिसका उन्हें लाभ मिलता है । इसके अलावा उनकी सामाजिक सुरक्षा की भी व्यवस्था की गईं । कोई भी उन्हें बेवजह नही सता सकता है । न ही उनकी कोई जमीन ही खरीद सकता है। खरीदने के लिए बड़ी लंबी और क्लिष्ट प्रक्रिया बनाई गई है। इसी कारण अम्बेडकर के साथ साथ अनुसूचित जन संविधान को भी बहुत महत्व देता है । भारत के संविधान के बारे में सबसे अधिक ज्ञान अगर किसी को है, तो ब्राह्मण समाज के बाद अनुसूचित जन को है। इसी कारण संविधान में किसी भी परिवर्तन के खिलाफ जो सबसे अधिक मुखर विरोध होता है, वह अनुसूचित जनों द्वारा ही किया जाता है ।
इस प्रकार अपने अनुभवों के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि अनुसूचित जन निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है । इसके पीछे उसकी अग्रगामी सोच, रूढ़ियों और परंपराओं का त्याग, बाबा साहब अम्बेडकर प्रति निष्ठा, उनकी शिक्षाओं की आत्मसात करना और संविधान में अगाध विश्वास ।
प्रोफेसर डॉ. योगेन्द्र यादव
पर्यावरणविद, शिक्षाविद, भाषाविद,विश्लेषक, गांधीवादी /समाजवादी चिंतक, पत्रकार, नेचरोपैथ व ऐक्टविस्ट