उपराष्ट्रपति चुनाव: क्रॉस वोटिंग ने विपक्ष की एकता पर उठाए सवाल

Update: 2025-09-09 14:22 GMT

उपराष्ट्रपति चुनाव के नतीजे ने राजनीति में नए सवाल खड़े कर दिए हैं। एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन ने विपक्षी उम्मीदवार पर बड़ी जीत दर्ज की। यह जीत सिर्फ़ संख्याओं का खेल नहीं है, बल्कि विपक्षी खेमे की असंगति और बिखराव को भी उजागर करती है।

एनडीए के पास कुल 427 सांसद थे।

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) के 11 सांसदों को जोड़ दें, तो यह संख्या 438 तक पहुँचती है।

लेकिन सीपी राधाकृष्णन को कुल 452 वोट मिले।

यानी विपक्ष के 14 सांसदों ने क्रॉस वोटिंग की और एनडीए उम्मीदवार को वोट दिया।

किन दलों पर उठ रहे हैं सवाल?

1. वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP)

जगनमोहन रेड्डी की पार्टी ने खुलकर एनडीए का समर्थन किया।

उनके सभी 11 सांसदों ने अगर राधाकृष्णन को वोट दिया, तो यह पहले से तय समीकरण का हिस्सा था।

लेकिन सवाल यह है कि क्या विपक्ष ने इस पार्टी से समर्थन की उम्मीद छोड़ दी थी, या फिर गुप्त मतदान ने और भी समीकरण बिगाड़ दिए?

2. भारत राष्ट्र समिति (BRS)

केसीआर की पार्टी BRS ने पहले ही कहा था कि वह उपराष्ट्रपति चुनाव में मतदान से अलग रहेगी।

पार्टी ने किसानों की समस्याओं और उर्वरक संकट को कारण बताया था।

लेकिन मतदान में यह साफ नहीं हो पाया कि उनके सांसदों ने वास्तव में क्या किया। अगर BRS के किसी सांसद ने गुप्त रूप से एनडीए को वोट दिया, तो यह पार्टी लाइन की अवहेलना मानी जाएगी।

3. डीएमके (DMK)

तमिलनाडु से आने वाले एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन का सामना करना DMK के लिए असहज स्थिति थी।

राज्य की राजनीतिक संवेदनाओं के कारण, DMK के भीतर मतभेद की आशंका जताई जा रही है।

हालांकि पार्टी ने आधिकारिक तौर पर विपक्षी खेमे के साथ रहने का दावा किया, लेकिन गुप्त मतदान में कुछ सांसदों के रुख बदलने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

4. कांग्रेस, तृणमूल और अन्य INDIA ब्लॉक दल

विपक्षी गठबंधन INDIA ने अपनी एकजुटता दिखाने की कोशिश की, लेकिन 14 क्रॉस वोटिंग ने उनकी एकता की परख को उजागर कर दिया।यह स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस, तृणमूल या अन्य सहयोगी दलों से कितने सांसद टूटे, लेकिन संदेह की सुई कई जगह घूम रही है।

उपराष्ट्रपति चुनाव का नतीजा यह साबित करता है कि विपक्ष अपने ही खेमे को नियंत्रण में रखने में असफल रहा।

YSRCP का NDA के साथ जाना तय था।

BRS ने मतदान से दूरी बनाने की घोषणा की थी, लेकिन व्यवहारिक स्थिति संदेह पैदा करती है।

DMK और अन्य विपक्षी दलों पर भी सवाल उठ रहे हैं कि उन्होंने विपक्ष की एकता को कितना निभाया।

कुल मिलाकर, इस चुनाव ने न केवल एनडीए की मजबूती दिखाई, बल्कि यह भी उजागर कर दिया कि विपक्षी खेमे में विश्वास और अनुशासन की गंभीर कमी है।

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