“राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं” शिवपाल का यह बयान दर्शाता है कि भविष्य में भी कोई गठबंधन, तख्तापलट या समझौता चौंका सकता है।
शिवपाल सिंह यादव का यह हालिया इंटरव्यू न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति के पुराने पन्नों को खोलता है, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनावों (2027) से पहले सियासी गलियारों में नई चर्चाओं और हलचलों को भी जन्म देता है। आइए इस पूरे घटनाक्रम को कुछ प्रमुख बिंदुओं में समझते हैं:
मुख्य खुलासे और उनके राजनीतिक मायने:
1. बसपा का टूटना और बीजेपी की ‘बचाव नीति’
शिवपाल सिंह यादव ने बताया कि अगर उस समय बसपा नहीं टूटती, तो बीजेपी टूट जाती।उन्होंने खुलासा किया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सहमति से ही यह रणनीति बनी।बसपा के 37 विधायक तोड़े गए, जिससे सपा ने सरकार बनाई।इससे यह भी साफ होता है कि बीजेपी और बसपा के गठबंधन में उस समय गहरे मतभेद थे, और बीजेपी खुद को बचाने के लिए बसपा की कुर्बानी को तैयार थी।
यह सियासी ऑपरेशन शिवपाल सिंह यादव, अमर सिंह और अरविंद गोप की टीम ने अंजाम दिया। यह एक सुनियोजित राजनीतिक तख्तापलट जैसा था, जिसे रातों-रात अंजाम दिया गया।
सरकार बनते ही सभी विधायकों को मंत्री पद देकर इनाम दिया गया। शिवपाल ने इसे रणनीति की सफलता बताया, जिससे सपा को बहुमत भी मिला।
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर राजनीतिक नैतिकता पर बड़े सवाल उठ रहे हैं।विपक्ष पहले भी इसे “खरीद-फरोख्त की राजनीति” कहता रहा है।अब जब शिवपाल खुद इसे खुलकर स्वीकार कर रहे हैं, तो इसका इस्तेमाल बीजेपी, बसपा या कांग्रेस – कोई भी दल राजनीतिक हमला करने के लिए कर सकता है।
शिवपाल के इस बयान की टाइमिंग बेहद अहम है।2027 विधानसभा चुनावों से पहले यह संदेश देना कि "हम सत्ता बनाने में माहिर हैं", सपा के लिए एक सियासी संदेश भी हो सकता है।लेकिन दूसरी ओर, यह भाजपा को भी सावधान और हमलावर बना सकता है।