बहराइच में सालार मसूद गाजी की दरगाह पर नहीं लगा मेला; चप्पे-चप्पे पर रही पुलिस
जेठ की सदियों पुरानी परंपरा इस बार बदली दिखी। जिस रोड पर मेले की पहली चौथी को तिल रखने की जगह नहीं रहती थी। आज वहां वाहन फर्राटे भर रहे थे। जानकारों का कहना है कि मेले की पहली चौथी को चार से पांच लाख की भीड़ होती थी, वहां आज बमुश्किल पांच से आठ हजार के आसपास लोग मेला परिसर में छिटके नजर आ रहे हैं।
बताया जाता है कि 11वीं शताब्दी में हुए इस युद्ध के बाद 14वीं शताब्दी में फिरोजशाह तुगलक ने यहां किलेनुमा दीवार बनवाकर इसे दरगाह का रूप दे दिया। उसके बाद से यहां मेलार्थियों के आने का सिलसिला तेज हो गया। समय बीतता गया जायरीन की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी होती गई। जायरीन की बढ़ती भीड़ को देखते हुए इसे धार्मिक स्थल के साथ बड़ा व्यापारिक केंद्र भी माना जाने लगा। जेठ माह की चारों चौथी के बाद जब यहां सिक्कों तथा नोटों की गिनती शुरू होती थी तो करोड़ों की नकदी का चढ़ावा और भारी तादाद में सोना-चांदी के जेवरात की कमाई होती थी। दुकानों के ठेके से करोड़ों की कमाई होती थी। यही कारण रहा कि बड़े ओहदेदार इस स्थल की प्रबंध समिति में जगह पाने के लिए अपने राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करते थे।
मुस्लिम से कई गुना अधिक आते थे हिंदू मेलार्थी
सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर मुस्लिमों की अपेक्षा हिंदू मेलार्थी अधिक आते थे। सभी की अपनी-अपनी समस्याएं होती थीं। किसी को संतान न होने की समस्या ताे किसी को मानसिक व शारीरिक बीमारी से राहत मिलने की उम्मीद रहती थी। इतना जरूर था कि मुस्लिम जायरीन जहां सिन्नी इत्यादि चढ़ाते थे वहीं हिंदू मेलार्थी त्रिशूल और लाल कपड़े में लिपटा नारियल लेकर आते थे।
नहीं आई बरात, त्रिशूल व निशान के बिना आए जायरीन
सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर लगने वाले जेठ मेले में पहली बरात रविवार को आनी थी। जायरीन तो आए, लेकिन बिना बरात, त्रिशूल व निशान के। गोला तमाशा भी नहीं दगा, कव्वाली भी नहीं हुई। जयरीन ने सादगी के साथ जियारत कर रस्म अदायगी की। कोविड के बाद यह पहला अवसर है जब बिना बरात के जायरीन आए हों।
गाजी की दरगाह पर परंपरा अनुसार हर वर्ष जेठ माह के प्रत्येक रविवार को जायरीन बरात लेकर आते थे। यह बरात बिना दूल्हे की होती थी, लेकिन गाजे-बाजे के साथ पूरा दहेज का सामान होता था। इसमें सौ से डेढ़ सौ तक जायरीन होते थे। पूरा हुजूम नाचते हुए दरगाह पहुंचता था। वहां निशान गाड़ देते थे। इसके साथ त्रिशूल जिस पर लाल कपड़ा लपेटा जाता था, वह भी जहां यह बरात रुकती थी वहां गाड़ा जाता था। इसके बाद पूरी रात जश्न का माहौल रहता था। जगह-जगह कव्वाली व गोला दगाया जाता था।
पूरे दरगाह क्षेत्र में करीब पांच लाख लोग रहकर अपनी जियारत करते थे। लेकिन इस वर्ष हाईकोर्ट के आदेश के बाद पहली बार बिना बरात, निशान व त्रिशूल के लोग आए। कहीं-कहीं पर कव्वालों ने कव्वाली गाने का प्रयास किया तो पुलिस ने भीड़ एकत्र करने से मना कर दिया। स्थिति यह रही की जहां पहले दरगाह में पहली चौथी (रविवार) को लाखों की संख्या में रहते थे। वहां 10 से 12 हजार लोग ही जियारत के लिए आए।
रात रुकने की नहीं इजाजत
दरगाह में रात रुकने की इजाजत नहीं है। पुलिस इस बात को लेकर सतर्क है कि कहीं भी भीड़ एकत्र न हो ताकि भगदड़ की स्थिति न बनने पाए। इसके लिए मेला परिसर में करीब डेढ़ हजार से अधिक पुलिस बल तैनात है।
जंजीरी गेट से हो रहा प्रवेश
दरगाह के अंदर जाने के लिए वैसे तो कई रास्ते हैं, लेकिन ज्यादातर जायरीन जंजीरी गेट से ही अंदर जा रहे हैं। यहां कोई भगदड़ न हो। इसके लिए भारी संख्या में गेट पर पुलिस तैनात है।
सांसद ने की जियारत
श्रावस्ती सांसद राम शिरोमणि वर्मा ने रविवार को दरगाह पहुंचकर जियारत की। इस मौके पर उनके साथ सपा के पदाधिकारी मौजूद रहे। इस मौके पर उन्होंने दरगाह को आस्था का केंद्र बताया।
सीमित संख्या में आएं जायरीन
हाईकोर्ट के आदेश पर दरगाह में सुरक्षा व्यवस्था की गई है। जायरीनों को आने पर कोई रोक नहीं है, लेकिन वह सीमित संख्या में आएं। भीड़ का हिस्सा न बनें। -रामानंद कुशवाहा एएसपी नगर
कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हैं
हम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हैं। कोर्ट ने हमें सभी धार्मिक आयोजन करने की छूट दी है, लेकिन सीमित संख्या में जायरीन के आने का आदेश दिया है। इसलिए सभी जायरीन से अपील है कि वह भीड़ के रूप में न आकर कम संख्या में आएं और जियारत करें। -वकाउल्ला, प्रबंधक दरगाह शरीफ