कर्नाटक सत्ता संकट चरम पर — शिवकुमार बनाम सिद्धारमैया नेतृत्व संघर्ष ने बढ़ाई राजनीतिक सरगर्मी, भाजपा ने दूरी बनाई, हाईकमान निर्णायक बैठक को तैयार

Update: 2025-11-28 13:24 GMT

रिपोर्ट : विजय तिवारी

कर्नाटक कांग्रेस इन दिनों अपने सबसे बड़े आंतरिक राजनीतिक संकट से गुजर रही है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के बीच नेतृत्व को लेकर खींचतान अब खुलकर सामने आ चुकी है।

सत्ता-साझेदारी के कथित ‘2.5-2.5 वर्ष के फॉर्मूले’, जातीय समीकरणों और सार्वजनिक बयानबाज़ी ने राज्य की राजनीति में उथल-पुथल मचा दी है। यह विवाद अब सिर्फ सत्ता हस्तांतरण तक सीमित नहीं रहा, बल्कि कांग्रेस की राष्ट्रीय रणनीति और आगामी चुनावी दिशा को प्रभावित करने वाला मुद्दा बन गया है।

विवाद की पृष्ठभूमि — ढाई-ढाई साल का समझौता केंद्र में

2023 विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद माना गया था कि सिद्धारमैया और शिवकुमार के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए ढाई-ढाई वर्ष के लिए मौखिक सहमति बनी थी। इस व्यवस्था की आधिकारिक पुष्टि कभी नहीं हुई, लेकिन विधायक समूहों और राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि यह फॉर्मूला कांग्रेस नेतृत्व की मंजूरी से तय हुआ था।

अब ढाई वर्ष पूरे होने पर शिवकुमार गुट नेतृत्व परिवर्तन की मांग तेज कर रहा है। इसी संदर्भ में शिवकुमार का बयान चर्चा में है :

“शब्द की कीमत बहुत होती है, सबको अपनी बात पर कायम रहना चाहिए।”

इसे सत्ता परिवर्तन के दबाव का स्पष्ट संकेत माना जा रहा है।

शिवकुमार का भावनात्मक संदेश — भाजपा में जाने की अटकलों पर विराम

भाजपा ज्वाइनिंग की चर्चाओं के बीच शिवकुमार ने सोशल मीडिया के माध्यम से स्पष्ट संदेश दिया :

“पार्टी मेरी शक्ति है, पार्टी ने ही मुझे बनाया है। अफवाह फैलाना बंद करें — मैं सच्चा कांग्रेसी हूँ।”

उनका यह बयान राजनीतिक गलियारों में बड़ा संकेत माना गया और संभावित दल-बदल की आशंकाओं को शांत करता दिखा।

सिद्धारमैया की प्रतिक्रिया — ‘जनादेश पाँच साल का’

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सीधे शब्दों में कहा :

“2023 में हमें जो जनादेश मिला, वह पाँच साल के लिए था। मैं जनादेश का सम्मान करूंगा।”

यानी वे इस्तीफ़ा या नेतृत्व बदलाव के दबाव में आने के मूड में नहीं हैं।

जातीय समीकरणों ने विवाद को और संवेदनशील बनाया

कर्नाटक में राजनीतिक आधार जातीय समीकरणों पर गहराई से टिका है:

डी.के. शिवकुमार — वोक्कालिगा समुदाय के प्रभावशाली नेता, दक्षिण कर्नाटक के कई धार्मिक मठ खुले समर्थन में

सिद्धारमैया — दलित व ओबीसी वोट बैंक पर मजबूत पकड़

यदि विवाद लम्बा चला, तो सामाजिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है और कांग्रेस की 2028 रणनीति को गंभीर नुकसान पहुँच सकता है।

भाजपा का रुख — ‘हमें शिवकुमार की जरूरत नहीं’

अफवाहों और चर्चाओं के बीच केंद्रीय मंत्री वी. सोमन्ना का तीखा बयान सामने आया :

“भाजपा को डी.के. शिवकुमार की आवश्यकता नहीं है। कांग्रेस में हिम्मत है तो विधानसभा भंग कर चुनाव करवाए।”

भाजपा का यह रवैया साफ करता है कि वह फिलहाल वेट-एंड-वॉच की रणनीति पर चल रही है और कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान से राजनीतिक लाभ लेने की प्रतीक्षा कर रही है।

हाईकमान सक्रिय — दिल्ली में निर्णायक बैठक

स्थिति गंभीर होते देख सोनिया गांधी, राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जल्द ही दोनों नेताओं से संयुक्त चर्चा करने वाले हैं। उद्देश्य :

विवाद का समाधान

सरकार को अस्थिर होने से बचाना

चुनाव से पहले एकता का संदेश देना

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बैठक कांग्रेस के लिए निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है।

अगले 30 दिनों में संभावित राजनीतिक परिदृश्य

परिदृश्य संभावित परिणाम

नेतृत्व परिवर्तन शिवकुमार CM, दलित–OBC असंतोष का खतरा

समझौता / साझा फॉर्मूला स्थिरता का संदेश, शक्ति-संतुलन

खुला विद्रोह / टूट कांग्रेस को बड़ा नुकसान, भाजपा को लाभ

विधानसभा भंग शुरुआती चुनाव, राष्ट्रीय राजनीति पर असर

कर्नाटक का यह नेतृत्व संघर्ष अब राज्य की सीमा से बाहर निकलकर राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक चक्रव्यूह में बदल चुका है।

भाजपा ने दूरी बना ली है, शिवकुमार ने वफादारी जताई है, हाईकमान निर्णायक फैसले की तैयारी में है — लेकिन संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ।

सबसे बड़ा सवाल अब भी वही है —

क्या कांग्रेस अपना घर संभाल पाएगी या कर्नाटक में बड़ा राजनीतिक भूकंप आने वाला है?

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