अयोध्या. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मस्थली अयोध्या की शास्त्रीय सीमा के भीतर एक गांव तकपुरा के निरंकार का पुरवा में गांव के बाहर स्थित 'रामनामी वृक्ष' लोगों में श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना हुआ है. यहां दूर-दराज से लोग इस वृक्ष की पूजा करने आते हैं. हर साल यहां अमावस्या पर यहां मेले का आयोजन होता है.
मान्यता है कि जब राम वनवास गए थे और राम के अनन्य सेवक हनुमान लक्ष्मण मूर्छा के समय संजीवनी बूटी लेकर इधर से गुजर रहे थे. राज्य पर खतरे की आशंका को लेकर भरत ने बाण मारा था. बाण के प्रहार से हनुमान जी भरतकुंड नंदीग्राम में गिर पड़े, जबकि भरत की ओर से चलाया गया बाण हलकारा का पुरवा और तकपूरा गांव के बीच गिरा था. मान्यता है कि जहां पर बाण गिरा था वहीं पर एक वृक्ष पैदा हुआ. इस वृक्ष की खासियत है कि इसके तने पर जगह-जगह राम लिखा हुआ है.
1972 में हुई खोज
खास बात यह है कि यह पेड़ कहीं पर लगाने पर नहीं लगता और काटे जाने के बाद इधर-उधर कहीं न कहीं खुद ही उग आता है. रोज पूजा करने वाले बुजुर्ग बिहारी बाबा का कहना है कि वर्ष 1972 में जब वह कक्षा 12वीं के छात्र थे तो पढ़ाई के दौरान उनको हनुमान जी दिखाई पड़े और किताब में 'रामनामी वृक्ष' के बारे में जानकारी मिली. हनुमान जी की कृपा से उन्होंने संबंधित पेड़ की तलाश शुरू की तो यह पेड़ हलकारा का पुरवा गांव के बाहर तकपुरा निरंकार का पुरवा में मिला. पता चला कि पेड़ को ईंट भट्ठा संचालकों की ओर से काट दिया गया था. लेकिन प्रभु की कृपा से बाद में वहीं पर दूसरा रामनामी पेड़ उग आया.
1974 से लग रहा है हर साल मेला
इसके 2 वर्ष बाद रामनामी पेड़ वाले स्थल पर अमावस्या तिथि को मेला लगने लगा. इस रामनामी पेड़ को त्रेता युग का बताया जाता है. स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का कहना है कि रामनामी पेड़ के दर्शन से उनकी मनौती पूरी होती है. जो भी श्रद्धालु अपनी कामना को लेकर यहां आता है और रामनामी पेड़ की पूजा करता है भगवान राम की सभी इच्छाओं को पूरा करते हैं.
गांव की बुजुर्ग जाहरा का कहना है कि पहले स्थान इस स्थान पर विशालकाय रामनवमी पेड़ था, जो बाद में किसी कारण सूख गया. उसके बाद इसी स्थान पर एक नया पेड़ उग आया. रोज बिहारी बाबा पूजा करने के लिए यहां पर आते हैं. हनुमान जी ने अयोध्या के बिहारी बाबा को सपने में इस रामनामी पेड़ के बारे में बताया था. बाबा रोज यहां पूजा करने आते हैं और रामनामी पेड़ की पत्तियां गिरती है उसे बटोर कर ले जाते हैं और सरयू में प्रवाहित कर देते हैं. कुआर माह के अमावस्या तिथि पर यहां पर मेला लगा लगता है.