एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत गिरफ्तारी का फैसला लिया वापस, अब तत्काल गिरफ्तारी होगी

Update: 2019-10-01 08:55 GMT

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) अधिनियम में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक के फैसले के खिलाफ सरकार की पुनर्विचार अर्जी पर फैसला सुनाया।

तीन जजों की पीठ ने पिछले साल दिए गए दो जजों की पीठ के फैसले को रदद् कर दिया। इससे पहले 20 मार्च 2018 को उच्चतम न्यायालय ने इस अधिनियम में केस दर्ज होने पर बिना जांच के तत्काल गिरफ्तारी के प्रावधान पर रोक लगा दी थी।

न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर यह फैसला सुनाया। पीठ ने कहा कि समानता के लिए अनुसूचित जाति और जनजातियों का संघर्ष देश में अभी खत्म नहीं हुआ है।

पीठ ने कहा कि समाज में अभी भी एससी/एसटी के लोग अस्पृश्यता और अभद्रता का सामना सामना कर रहे हैं और वे बहिष्कृत जीवन गुजारते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 15 के तहत अजा-जजा वर्ग के लोगों को संरक्षण प्राप्त है, लेकिन इसके बावजूद उनके साथ भेदभाव हो रहा है।

पिछले साल दिए इस फैसले में अदालत ने माना था कि एससी/एसटी एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी की व्यवस्था के चलते कई बार बेकसूर लोगों को जेल जाना पड़ता है। लिहाजा अदालत ने तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार अर्जी दायर की थी।

इस कानून के प्रावधानों के दुरूपयोग और झूठे मामले दायर करने के मुद्दे पर न्यायालय ने कहा कि यह जाति व्यवस्था की वजह से नहीं, बल्कि मानवीय विफलता का नतीजा है।

पिछले वर्ष शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि एससी/एसटी एक्ट के तहत आरोपी को सीधे गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। इस आदेश के मुताबिक, मामले में अंतरिम जमानत का प्रावधान किया गया था और गिरफ्तारी से पहले पुलिस को एक प्रारंभिक जांच करनी थी। इस फैसले के विरोध में देशभर में एससी/एसटी समुदाय के लोगों द्वारा देशभर में व्यापक प्रदर्शन किया गया था। 

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