आरक्षण रोस्टर पर केंद्र सरकार फिर जाएगी सुप्रीम कोर्ट

Update: 2019-02-07 02:10 GMT

नई दिल्ली। आम चुनावों से पहले विश्वविद्यालयों के आरक्षण रोस्टर को मुद्दा बनाकर उसे सियासी रंग देने में जुटे राजनीतिक दलों को सरकार की नई चाल से झटका लगा है। इस मामले को लेकर सरकार ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला लिया है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि वह विश्वविद्यालयों में आरक्षण रोस्टर की पुरानी व्यवस्था के पक्षधर हैं। इसके तहत विवि को यूनिट मानकर आरक्षण तय होता है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार फिर से पुनर्विचार याचिका दाखिल करेगी।

सरकार ने यह फैसला उस वक्त लिया है, जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने विश्वविद्यालय आरक्षण रोस्टर को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली सरकार की याचिका को खारिज कर दिया है। इसके तहत विश्वविद्यालयों में आरक्षण का रोस्टर अब विश्वविद्यालय को यूनिट मानकर नहीं ,बल्कि विभाग को यूनिट मानकर तय होगा। यानि आरक्षण का रोस्टर विभागवार होगा।

गौरतलब है कि इसके खिलाफ सरकार के ही कई मंत्री और विपक्ष के नेता हैं। उनका कहना है कि ऐसा होने पर दलितों और पिछड़ों को मिलने वाला लाभ सीमित हो जाएगा। शीर्ष कोर्ट ने इससे मना कर दिया तो कुछ विपक्षी दलों की ओर से केंद्र सरकार को कठघरे में घेरने की कोशिश शुरू हो गई थी।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री जावड़ेकर ने बुधवार को बयान जारी कर कहा है कि वह जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे। हालांकि सरकार के इस फैसले से विश्वविद्यालयों में खाली पड़े पदों को भरने की शुरू हुई प्रक्रिया फिर से अटक जाएगी।

लेकिन राजनीतिक दलों की ओर से सरकार पर जिस तरह से इसे लेकर हमला हो रहा है, उसे लेकर सरकार के पास कोई विकल्प भी नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी तीन फरवरी को ट्वीट कर इस मुद्दे को लेकर सरकार को घेरा था। इससे पहले सपा, बसपा सहित कई दलों ने भी विवि रोस्टर में बदलाव को लेकर सरकार पर निशाना साधा था।

जिस पीठ से हुई थी खारिज, वही करेगी पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के तहत पुनर्विचार याचिका की सुनवाई उसी पीठ में होती है, जहां पहले इस पर निर्णय हो चुका होता है। ऐसे में सरकार की ओर से दायर होने वाली पुनर्विचार याचिका की सुनवाई फिर से वही जज करेंगे, जिन्होंने पहले फैसला दिया है। अमूमन माना जाता है कि यदि कोई बड़ा सबूत या दस्तावेज पेश नहीं किया गया, तो फैसले में कोई भी बदलाव होना संभव नहीं है।

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