राजनारायण और अखिलेश के संदर्भ में दुष्प्रचार का खंडन और विमर्श

Update: 2018-06-12 09:22 GMT

लोकबंधु राजनारायण और अप्रतिम अखिलेश यादव के व्यक्तित्व के संदर्भ में दुष्प्रचार और अफवाह का खंडन और विमर्श

समाजवादी धारा के अब तक के इतिहास की पड़ताल कीजिये तो एक बात स्पष्ट तौर पर समझ आ जायेगी जब लोकप्रियता, जनसमर्थन और भरोसेमंद नेता के तौर पर समाजवादी नेतृत्वकर्ता अन्य समकालीन नेताओं को काफी पीछे छोड़ देते है,ऐसे में उनकी छवि को विभिन्न भ्रामक सूचनाओं से प्रभावित करने की साजिश की जाती रही है।

70 के दशक के दौर में जब जेपी ने तत्कालीन तानाशाही सरकार के खिलाफ पूरे देश के छात्रों-नौजवानों को संगठित कर आंदोलित करने का सफल प्रयास किया था,तब उसकी परिणति लोकबन्धु राजनारायण द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हारने से हुई थी लेकिन इस हार की बौखलाहट से कांग्रेस ने राजनारायण के समूचे व्यक्तित्व को अगंभीर बनाने का लम्बा षडयंत्र किया।जबकि राजनारायण,डॉ लोहिया के बाद समाजवादी आंदोलन में संघर्ष करने के मामले में सबसे प्रभावी व्यक्तित्व थे। वाराणसी के अदलपुरा में सरकार को पराजित करने वाले देश के प्रथम किसान आंदोलन के जीत का श्रेय उन्हें ही जाता है।कानून में स्नातक लोकबन्धु राजनारायण जी का जितना दखल सदन में जनता से जुड़े मुद्दों को उठाने और उन्हें सफल परिणाम तक पहुँचाने में था उतना ही सड़क पर संघर्ष करते हुए जेल यात्रा करने में उन्हें कोई हिचक नही थी।वो असल अर्थो में समाज के कमजोर तबके के नेता थे।उत्तर प्रदेश की विधानसभा और देश की संसद में जनप्रतिनिधि के रूप में उनका जीवन दर्शन आजादी के बाद के नायकों में उन्हें अगली पंक्ति में स्थापित करता है।

लेकिन मीडिया और संचार के अन्य माध्यमों से लोकबन्धु राजनारायण की संघर्षगाथा और उनकी महानता के किस्से एक साजिश के तहत गायब करते हुए उनके व्यक्तित्व को हँसोड़,मजाकिया जैसे न जाने कैसे कैसे हल्के उपमाओं में बांधा गया। जिससे नयी पीढ़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती में उनके ऐतिहासिक योगदान के बारे में गंभीरता से न सोच पाए।

इसी प्रकार समकालीन राजनीति में फिर से यह चलन देखने को मिल रहा है।उत्तर प्रदेश की राजनीति से निकले अखिलेश यादव जी ने अपने दो दशकों की राजनीति में राजनैतिक शुचिता,ईमानदारी,विश्वशनीयता की जो साख जनता के बीच बनाई है उसी वजह से न केवल यूपी बल्कि पूरे देश के छात्रों-नौजवानों सहित आम जनता में उनकी लोकप्रियता का इस समय कोई दूसरा विकल्प नही दिखता।देश की सबसे बड़ी पंचायत में एक सांसद के रूप में उनका कार्यव्यवहार, समाजवादी पार्टी के युवा प्रभारी से होते हुए प्रदेश अध्यक्ष से राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते हुए उन्होंने सांगठनिक अनुशासन का पालन कर पार्टी के अंदर और बाहर के लोगों को अपनी सहजता और कार्यशैली से गहरे तक प्रभावित भी किया है।पूरे प्रदेश में तीन बार रथयात्रा सहित अनेकों बार की सायकिल यात्राओं से उन्होंने जनता से प्रत्यक्ष जुड़ाव की ऐसी संस्कृति विकसित की है जिसकी सराहना विपक्षी दल भी करते हैं।

उत्तर प्रदेश में पांच वर्षों के पूर्ण कार्यकाल की सरकार का नेतृत्व करते हुए अखिलेश यादव जी ने विकास,समृद्धि और प्रदेश को आगे बढ़ाने का जो मॉडल विकसित किया वैसा उदाहरण अन्य प्रदेशों में नही मिलता।आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे का रिकार्ड समय में निर्माण कराकर उन्होंने विश्वस्तरीय सड़क की ऐसी नजीर प्रस्तुत किया जिसपर सेना के सबसे भारी भरकम हरक्यूलिस विमान भी सफलतापूर्वक उतर चुके है।लखनऊ मेट्रो का निर्माण सहित अवस्थापना विकास की पूरे प्रदेश में कायाकल्प करने वाले श्री अखिलेश यादव ने असल विकास से हमारा परिचय कराया।

देश की सबसे बड़ी आबादी वाले सूबे में समाजवादी पेंशन योजना के माध्यम से बिना भेदभाव के सबसे बड़ी समाजिक सुरक्षा की नीति समाजवादी पेंशन योजना को लागू करने वाले तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस फैसले की प्रशंसा न्यायपालिका ने भी किया था।मेधावी छात्रों को लैपटॉप वितरित कर उन्हें तकनीकी से जोड़ते हुए नयी पीढ़ी के सतत विकास के लिए पर्यावरणीय को बेहतर बनाये रखने के लिए सायकिल ट्रैक,एशिया के सबसे बड़े जैव विविधता वाले पार्क सहित अन्य मसलों पर उनके फैसले दूरदर्शी और ऐतिहासिक महत्व के हैं।एमबीबीएस के सीटों की बढोत्तरी, नए विश्वविद्यालयों का सृजन,कौशल विकास कार्यक्रम,शिक्षक-पुलिस भर्ती सहित भारी संख्या में रोजगार-स्वरोजगार के सृजन के माध्यम से छात्रों-नौजवानों के सुखद भविष्य के शिल्पकार के रूप में उनकी पहचान अमित हो गयी है।

अब तक के सार्वजनिक जीवन के कार्यकाल में अखिलेश यादव जी की संवेदनशीलता के अनगिनत उदाहरण भरे पड़े हैं।समाज के कमजोर तबके के जीवन स्तर की ऊंचा उठाने के लिए उनके फैसलों गाँव-गाँव लोहिया आवास,जनेश्वर मिश्र ग्राम के रूप में दिख जाएंगे।

इन सबके बाद भी श्री अखिलेश यादव के अब तक के राजनैतिक/सामाजिक जीवन में उनपर एक भी भ्रष्टाचार, चारित्रिक हनन का आरोप नही लगा।इससे आगे बढ़कर उनकी लगातार बढ़ रही लोकप्रियता से विपक्षी दल सकते में हैं।दूसरे प्रदेशों में उनकी बढ़ रही आवाजाही से अन्य राजनैतिक दलों में बेचैनी स्वाभाविक ही है।

हाल ही में उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में हुए उपचुनाव में जिस तरह श्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की ऐतिहासिक जीत हुई, वह 1977 के रायबरेली की जीत से कत्तई कम नही है। इसके बाद कैराना और नूरपुर में पार्टी और गठबंधन की जीत वो भी बिना श्री अखिलेश यादव के एक भी चुनावी सभा के सिर्फ एक अपील पर कार्यकर्ता द्वारा दिलाई गयी जीत से केंद्र और प्रदेश की सत्ताधारी राजनीति में भूचाल आ गया।

श्री अखिलेश यादव की छवि को धूमिल करने में जब दिल्ली और लखनऊ की सभी साजिशें नाकाम हो गयी ऐसे में एक सरकारी बंगलें को षडयंत्र का केंद्र बनाकर उन्हें बदनाम करने का कुत्सित कार्य किया जा रहा है।

राजनीति में ऐसी ओछी हरकत करना और सत्ताधारी दल द्वारा विपक्षी दल के नेता को बदनाम करना राजनैतिक शिष्टाचार के सर्वथा विपरीत है।लेकिन इस साजिश में शामिल ताकतों को समझ लेना चाहिए लोकतंत्र में असल ताकत जनता के हाथ में होती है,उसका भरोसा तोड़ना और उनके भरोसेमंद नेता के बारे क्षद्म अफवाह फैलाना खंडित मानसिकता और धूर्त राजनीति का परिचायक है।

समाजवादी ऐसे शातिर गिरोह की राजनीति करने वाले लोगों की असलियत जनता के सामने लाकर उन्हें जनमत द्वारा सबक सिखाएंगे।

मणेंद्र मिश्रा मशाल

समाजवादी अध्ययन केंद्र

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