सपा से नहीं मिली गठबंधन की हरी झंडी: सूत्रों की मानें तो अभी कुछ महीने पहले तक रालोद और सपा के बीच गठबंधन को लेकर चर्चाएं चल रहीं थी। खुद शिवपाल सिंह यादव और मुलायम सिंह यादव ने गठबंधन में दिलचस्पी दिखाई थी। सभी कुछ सही तरीके से तय होने जा रहा था, लेकिन इसी बीच सीएम अखिलेश यादव और रामगोपाल की नाराजगी ने गठबंधन की कोशिशों को पीछे धकेल दिया। और उसके बाद से फिर कोई नई चर्चा सामने नहीं आई है।
क्या भाजपा को नहीं रही रालोद की जरूरत: बताया जाता है कि एक वक्त था जब रालोद और भाजपा की अच्छी बनती थी। वर्ष 2009 में दोनों के बीच गठबंधन भी हुआ था। गठबंधन के तहत ही रालोद के पांच सांसद जीतकर आए थे। जबकि 2002 के यूपी विधानसभा चुनावों में 14 सीट पर जीत हासिल की थी। सूत्रों की मानें तो मुज़फ्फरनगर दंगों के बाद से जाट वोट और भाजपा के बीच की तस्वीर बदल चुकी है। 2014 के चुनावों में भी भाजपा बदली हुई तस्वीर के रंग देख चुकी है। शायद उसी चलते भाजपा को नहीं लगता कि उसे रालोद की कोई बहुत ज्यादा जरूरत रह गई है।
कांग्रेस भी कह चुकी है साफ-साफ दो टूक: सूत्रों की मानें तो राज्यसभा जाने के रास्ते को आसान बनाने के लिए रालोद मुखिया सोनिया गांधी से मिले थे। राज्यसभा भेजे जाने की शर्त पर 2017 के चुनावों में गठबंधन की बात रखी थी। लेकिन पिछले अनुभवों को देखते हुए कांग्रेस ने रालोद संग गठबंधन को दो टूक साफ-साफ बोल दिया।