राज्यसभा चुनाव से पता चलेगी माया व अखिलेश की सियासी राह, जटिल व दिलचस्प है गणित

Update: 2018-02-25 03:43 GMT
उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की दस सीटों पर होने वाले चुनाव बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा मुखिया अखिलेश यादव की सियासी राह भी बताएंगे। साथ ही जहां प्रदेश के भावी समीकरणों का संकेत मिलेगा, वहीं दोस्ती व दुश्मनी की कहानी भी सुनाएंगे। इस रहस्य से पर्दा उठेगा कि कौन से नेता प्रदेश में ही आगे की पारी खेलना चाहते हैं और कौन दिल्ली के रास्ते राजनीतिक मंच पर सक्रिय रहना चाहते हैं।
यह भी पता चलेगा कि प्रदेश की राजनीति में अपने नाम, बयान या कद के कारण चर्चा में रहने वाले चेहरों में किसको उसका नेतृत्व राज्यसभा में भेजने का इच्छुक है और किसे नहीं।
प्रदेश में जिन सीटों पर चुनाव होंगे उनमें भाजपा के विनय कटियार को छोड़कर शेष सभी विपक्ष के कब्जे वाली हैं। इनमें बसपा अध्यक्ष मायावती के त्यागपत्र से रिक्त हुई राज्यसभा सीट भी शामिल है। एक सीट कांग्रेस के प्रमोद तिवारी और एक बसपा के मुनकाद अली की है।
शेष सीटें सपा के किरनमय नंदा, दर्शन सिंह यादव, नरेश अग्रवाल, जया बच्चन, चौधरी मुनव्वर सलीम और आलोक तिवारी की हैं। विपक्षी विधायकों की संख्या देखते हुए इन सबका वापस राज्यसभा पहुंचना काफी मुश्किल है। भाजपा ने यदि आठ उम्मीदवार ही उतारे तब तो विपक्ष के दो सदस्य राज्यसभा पहुंच सकते हैं। पर, उस स्थिति में भी विपक्ष को एक-दूसरे का साथ देना पड़ेगा।
दरअसल, पहले निकाय चुनाव और अब हो रहे दो लोकसभा उपचुनाव में विपक्ष की एका नहीं हो पाई है। विपक्ष में सपा के अलावा अन्य कोई दूसरा दल अपने बल पर एक सदस्य भेजने की स्थिति में नहीं है। सपा अपने 47 सदस्यों के बल पर एक सदस्य को राज्यसभा भेज सकती है। उसके बाद भी सपा के 10 विधायकों के वोट बच जाएंगे। जिन्हें वह विपक्ष के किसी दूसरे उम्मीदवार को जिताने के लिए इस्तेमाल कर सकती है।
पर, सवाल यह है कि इन वोटों को हासिल करने के लिए विपक्ष में किस तरह और किसके नाम पर सहमति बनेगी? यह फिलहाल काफी मुश्किल दिखता है क्योंकि निकाय चुनाव और उपचुनाव में विपक्ष के बीच आपसी सहमति नहीं बन पाई है। देखने वाली बात यह भी होगी कि सपा की तरफ से फिर राज्यसभा जाने वाले एक भाग्यशाली चेहरे में कौन शामिल होता है।
क्या होगी माया की राह
संख्या के लिहाज से देखें तो सपा के 47, बसपा के 19 और कांग्रेस के सात विधायक हैं। इसके अलावा तीन निर्दलीय, एक रालोद और एक निषाद पार्टी का विधायक है। इन विधायकों का समर्थन विपक्ष को मिलने की संभावना काफी कम नजर आ रही है। मायावती अपनी पार्टी के सिर्फ 19 विधायकों के बल पर राज्यसभा जाने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में यह भी देखने वाला होगा कि सपा और कांग्रेस का मायावती को लेकर क्या रुख रहता है।
सपा यदि मायावती को राज्यसभा भेजने के लिए अपने अतिरिक्त विधायकों का वोट देने की घोषणा करती है और इस बात से कांग्रेस भी सहमत हो जाती है तो आगे इनके बीच लोकसभा चुनाव में सहमति या गठबंधन की संभावनाएं मजबूत होंगी। पर, यदि मायावती खुद चुनाव लड़ने से इन्कार कर देती हैं या सपा, बसपा और कांग्रेस में इस पर सहमति नहीं बन पाती तो उसका संदेश यही होगा कि फिलहाल विपक्षी एकता की संभावना दूर की कौड़ी है।
पर, विपक्ष की परीक्षा तभी होगी जब भाजपा नौ उम्मीदवार उतार दे। अगर वह सिर्फ आठ उम्मीदवार उतारती है तो फिर विपक्ष के लिए दो लोगों को राज्यसभा भेजना मुश्किल नहीं होगा। वजह, विधायक लोकेन्द्र सिंह चौहान की मृत्यु के बाद भाजपा व गठबंधन के पास प्रदेश में सबसे ज्यादा 324 विधायक हैं। राज्यसभा चुनाव की प्रक्रिया के अनुसार, एक सदस्य के चुनाव के लिए लगभग 37 विधायकों के वोट की जरूरत होगी।
इस लिहाज से भाजपा अपने आठ उम्मीदवारों को आसानी से जिता लेगी। इसके बाद भी उसके पास 28 विधायकों के वोट बचेंगे। इससे पहले कुछ मौकों पर भाजपा सदन के तीन निर्दल विधायकों और निषाद पार्टी के एक विधायक का समर्थन हासिल कर चुकी है।
इस तरह उसके पास 32 विधायकों का समर्थन हो जाएगा। भाजपा यदि विपक्ष की फूट का लाभ लेते हुए लड़ाई को उलझाने के लिए नौवां उम्मीदवार उतार देती है और विपक्ष भी दो प्रत्याशी ले आता है तो लड़ाई दिलचस्प हो जाएगी क्योंकि तब वरीयता के मतों का भी महत्व हो जाएगा। जाहिर है, राज्यसभा चुनाव अपने भीतर प्रदेश का भावी सियासी समीकरण और कुछ दिग्गज नेताओं का भविष्य भी छिपाए हुए है।

Similar News