अमेरिका ने रूसी तेल कंपनियों (रोसनेफ्ट और लुकोइल) पर कड़े प्रतिबंध लगाकर वैश्विक ऊर्जा बाजार में हलचल मचा दी है. ये प्रतिबंध यूक्रेन युद्ध के फंडिंग को रोकने के नाम पर लगाए गए हैं. मगर, इसका सबसे बड़ा असर भारत पर पड़ने का अनुमान है जो कि अपनी जरूरत का करीब 35-40 फीसदी तेल रूस से आयात करता है. साल 2022 से रूस भारत का सबसे बड़ा कच्चे तेल आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. जहां से सस्ता तेल मिलने से भारत को अरबों डॉलर की बचत हुई है. अब ये प्रतिबंध भारत की ऊर्जा सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं लेकिन वैकल्पिक स्रोतों की तलाश से स्थिति को संभाला जा सकता है.
22-23 अक्टूबर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रोसनेफ्ट और लुकोइल पर प्रतिबंधों की घोषणा की, जो रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियां हैं. ये प्रतिबंध रूस की संपत्तियों को फ्रीज करते हैं और अमेरिकी एवं दूसरे देशों की कंपनियों को इनके साथ कारोबार करने से रोकते हैं. यूरोपीय संघ ने भी अमेरिका की तरह रूसी तेल कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है.
अमेरिका और यूरोपीय यूनियन की दलील है कि इसका मुख्य उद्देश्य रूस की यूक्रेन युद्ध की फंडिंग को कमजोर करना है, जहां रोसनेफ्ट और लुकोइल से सालाना अरबों डॉलर की कमाई होती है. वैश्विक स्तर पर तेल कीमतों में 5-7% की वृद्धि हुई है, ब्रेंट क्रूड $65-70 प्रति बैरल पहुंच गया. चीन और भारत जैसे बड़े खरीदार अब रूसी तेल खरीद कम कर रहे हैं, जिससे रूस की आय में भारी गिरावट की संभावना है.
भारत रूस से रोजाना औसतन 1.5-1.7 मिलियन बैरल कच्चा तेल आयात करता है, जो कुल आयात का 35-40% है. प्रतिबंधों से आयात में 40-50% की कटौती हो सकती है, जिससे सालाना $2-3 बिलियन का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा. तेल आयात बिल बढ़ने से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और पेट्रोल-डीजल कीमतों में 5-7% वृद्धि संभव है, जो आम उपभोक्ताओं को प्रभावित करेगी. आर्थिक रूप से जीडीपी पर 0.2-0.5% का नकारात्मक असर पड़ सकता है, क्योंकि ऊर्जा लागत बढ़ने से उद्योग और परिवहन प्रभावित होंगे. अमेरिका ने पहले ही भारत पर 25-50% टैरिफ लगाए थे, जो इन प्रतिबंधों से जुड़े हैं, लेकिन भारत सरकार ने राष्ट्रीय हितों के मुताबिक तेल ख़रीदने का फ़ैसला करने का ऐलान किया है.
रिलायंस इंडस्ट्रीज भारत की सबसे बड़ी रूसी तेल खरीदार, रोसनेफ्ट के साथ लंबे अनुबंधों को 21 नवंबर 2025 तक समाप्त करने पर विचार कर रही है. कंपनी रोजाना 500000 बैरल आयात करती थी, लेकिन अब स्पॉट खरीदारी भी बंद हो रही है, जिससे उसकी कमाई पर ₹3,000-3,500 करोड़ का असर पड़ेगा. नायरा एनर्जी, जो रोसनेफ्ट की सहयोगी है, भी प्रभावित है, जहां रिफाइनरी क्षमता 70-80% पर चल रही है और निर्यात घट गया है.
सरकारी कंपनियां जैसे इंडियन ऑयल और भारत पेट्रोलियम शुरुआत में यूरोपीय ट्रेडर्स के जरिए आयात जारी रख सकती हैं, लेकिन लंबे समय में दिक्कतें बढ़ेंगी. ये बदलाव रिफाइनिंग मार्जिन को प्रभावित करेंगे, लेकिन नए बाजारों से अवसर भी मिल सकते हैं.
भारत के पास ये है विकल्प
भारत के पास मध्य पूर्व (सऊदी अरब, यूएई), अफ्रीका (नाइजीरिया, अंगोला), ब्राजील और अमेरिका जैसे वैकल्पिक स्रोत हैं. रिलायंस पहले ही मध्य पूर्व से स्पॉट कार्गो खरीद रही है, जहां से 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन की पूर्ति संभव है. ओपेक+ से अतिरिक्त उत्पादन की मांग की जा रही है और घरेलू स्तर पर रिन्यूएबल एनर्जी (सोलर, इथेनॉल) पर फोकस बढ़ाया जा रहा है. सरकार 90 दिनों का तेल भंडार रख रही है और 2030 तक आयात निर्भरता 77% से घटाकर 65% करने का लक्ष्य है. हालांकि वैकल्पिक तेल 5-10% महंगा पड़ेगा लेकिन ये प्रतिबंध भारत को ऊर्जा विविधीकरण की ओर धकेलेंगे, जो लंबे समय में फायदेमंद साबित हो सकता है. आने वाले कुछ दिन आर्थिक चुनौतियों से अलग यह भारत के रूस और अमेरिका से संतुलन साधने को लेकर निर्णायक साबित होने वाला है.