दीपावली के बाद पटरियों पर दौड़ेगी भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन

Update: 2025-10-15 14:39 GMT

डेस्क रिपोर्ट : विजय तिवारी

हरियाणा के सोनीपत–गोहाना–जींद रूट पर चलेगी प्रदूषण-मुक्त तकनीक, जींद में हाइड्रोजन प्लांट तैयार

सोनीपत / जींद | 15 अक्टूबर 2025

भारतीय रेलवे जल्द ही एक नया इतिहास रचने जा रहा है। देश की पहली हाइड्रोजन चालित ट्रेन दीपावली के बाद हरियाणा के सोनीपत–गोहाना–जींद रूट पर दौड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है। जींद में स्थापित अत्याधुनिक हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्र में ट्रेन से जुड़ी टेस्टिंग और मानकीकरण की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। यह ट्रेन पूरी तरह पर्यावरण-मित्र (Zero Emission) होगी और भारतीय रेलवे की हरित ऊर्जा दिशा में यह अब तक का सबसे बड़ा कदम माना जा रहा है।



तकनीकी खूबियाँ और पर्यावरणीय लाभ

इस ट्रेन को हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक से संचालित किया गया है, जिसमें ऊर्जा उत्पादन के दौरान केवल जलवाष्प (भाप) उत्सर्जित होती है — यानी प्रदूषण शून्य।

एक बार में करीब 2,600 से अधिक यात्री यात्रा कर सकेंगे।

इसमें 8 आधुनिक बोगियाँ होंगी जिनमें यात्रियों की सुविधा के लिए अत्याधुनिक सुरक्षा और निगरानी प्रणाली लगाई गई है।

इंजन की क्षमता लगभग 1200 हॉर्सपावर है, जो इसे देश की सबसे उन्नत और शक्तिशाली यात्री ट्रेनों में शामिल करता है।

ट्रेन की रफ्तार 110 से 140 किलोमीटर प्रति घंटे तक रहने की संभावना है।

जींद प्लांट में रोजाना 430 किलोग्राम हाइड्रोजन का उत्पादन किया जाएगा।

यह पूरी प्रक्रिया ‘Hydrogen for Heritage’ योजना के तहत की जा रही है, जिसके माध्यम से रेलवे न केवल अपने कार्बन फुटप्रिंट को घटाएगा बल्कि भारत को विश्व के उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल करेगा, जो स्वच्छ रेल तकनीक का प्रयोग कर रहे हैं।

जींद प्लांट की क्षमता और संरचना

जींद में स्थापित हाइड्रोजन उत्पादन संयंत्र भारतीय रेलवे की नई तकनीकी इकाई द्वारा विकसित किया गया है।

संयंत्र में 3,000 किलोग्राम हाइड्रोजन भंडारण की क्षमता है।

उच्च-दबाव कंप्रेसर, दो डिस्पेंसर और प्री-कूलिंग सिस्टम से लैस यह प्लांट एक बार में ट्रेन को ईंधन भरने के लिए तैयार कर सकता है।

पूरा सिस्टम सुरक्षा मानकों (RDSO) के अनुरूप है और फिलहाल अंतिम परीक्षण जारी है।

परियोजना लागत और रणनीतिक महत्व

इस महत्वाकांक्षी परियोजना की अनुमानित लागत लगभग ₹136 करोड़ बताई जा रही है। यह पायलट ट्रेन भविष्य में पूरे देश के लिए दिशा तय कर सकती है। रेलवे की योजना है कि आने वाले वर्षों में 35 से अधिक हाइड्रोजन ट्रेनें देश के विभिन्न मार्गों पर चलाई जाएँ।

इस तकनीक से न केवल ईंधन लागत में दीर्घकालिक कमी आएगी, बल्कि भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता और हरित नीति (Green Mobility Vision 2030) को भी बल मिलेगा।

लॉन्च की तैयारी और परीक्षण

ट्रेन की बोगियाँ फिलहाल दिल्ली के शकूरबस्ती यार्ड में खड़ी हैं, जहाँ अंतिम स्तर की सुरक्षा जाँच और इंजन प्रदर्शन परीक्षण किए जा रहे हैं।

जींद में प्लांट के सफल परीक्षण के बाद ट्रेन को ट्रैक पर उतारने की अनुमति दी जाएगी। रेलवे के तकनीकी विशेषज्ञों के अनुसार, सभी प्रक्रियाएँ दीपावली तक पूरी हो जाएँगी, जिसके बाद ट्रेन औपचारिक रूप से ट्रायल रन के लिए रवाना की जाएगी।

क्यों है यह ट्रेन विशेष?

1. भारत की पहली हाइड्रोजन ट्रेन — देश में स्वदेशी तकनीक पर आधारित पहला सफल प्रयोग।

2. शून्य कार्बन उत्सर्जन — केवल जलवाष्प उत्पन्न करती है, जिससे प्रदूषण नहीं होगा।

3. ऊर्जा दक्षता — पारंपरिक डीज़ल इंजन के मुकाबले 40% तक अधिक कुशल।

4. कम शोर और कंपन — यात्रियों को अधिक आरामदायक यात्रा अनुभव मिलेगा।

5. विश्वस्तरीय उपलब्धि — जर्मनी, चीन और फ्रांस के बाद भारत इस तकनीक में कदम रखने वाला चौथा बड़ा देश होगा।

विशेषज्ञों की राय

रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार,

> “यह ट्रेन भारत के रेलवे इतिहास में मील का पत्थर साबित होगी। इससे हरित परिवहन को नई दिशा मिलेगी और भविष्य में डीज़ल इंजनों की निर्भरता घटेगी।”

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यह परियोजना न केवल प्रदूषण नियंत्रण की दिशा में अहम कदम है, बल्कि भारत को सस्टेनेबल एनर्जी ट्रांजिशन के केंद्र में लाने की क्षमता रखती है।

दीपावली के बाद जब यह ट्रेन पटरियों पर दौड़ेगी, तो यह केवल रेलवे का नहीं बल्कि हर भारतीय का गर्व का क्षण होगा। स्वच्छ ऊर्जा, आधुनिक तकनीक और आत्मनिर्भर भारत के विज़न का यह प्रतीक, आने वाले समय में देश की रेल व्यवस्था को नई परिभाषा देने जा रहा है।

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