सौ गुनाहगार भले छूट जाय, पर किसी निर्दोष को दण्ड नहीं मिलना चाहिए...लेकिन

Update: 2021-03-09 08:20 GMT

कहते हैं, भारतीय कानून व्यवस्था का मूल भाव है कि 'सौ गुनाहगार भले छूट जाय, पर किसी निर्दोष को दण्ड नहीं मिलना चाहिए।'

पर रुकिए! ये विष्णु तिवारी हैं, जिन्होंने बीस वर्ष की सजा उस अपराध के लिए काटी है जो उन्होंने किया ही नहीं। बीस वर्ष पूर्व किसी पड़ोसी को इनपर गुस्सा आया, सो उसने कानून की मार मारी। अपने परिवार की किसी महिला से इन पर बलात्कार का मुकदमा करवा दिया। लगे हाथ sc/st एक्ट वाला केस भी दर्ज हो गया। विष्णु जी सवर्ण थे, भारतीय व्यवस्था के अनुसार शोषक... सो नप गए। कानून ने बीस साल तक मामले को देखा और तब पाया कि ये निर्दोष हैं। सो बीस साल के बाद ये रिहा हुए हैं।

जानते हैं, जिस आरोप के ट्रायल में इन्हें बीस वर्ष तक बंदी बना कर रखा गया उसकी अधिकतम सजा ही सात वर्ष है। मतलब यदि सचमुच इसने वह अपराध किया होता तब भी इसे तेरह वर्ष पहले रिहा हो जाना चाहिए।

जब इन्हें इस निर्लज्ज व्यवस्था ने बन्दी बनाया तो ये 25 वर्ष के थे, अब 45 वर्ष की आयु में रिहा हुए हैं। स्पष्ट है कि युवक का जीवन बर्बाद हो गया। बीस वर्षों में पिता चले गए, मां चली गयी, बड़े भाई चले गए... यह व्यक्ति अपनों का मरा मुँह भी नहीं देख सका। तनिक सोचिये तो, कौन हैं जिनका अपराधी? क्या केवल वह व्यक्ति जिसने इनपर मुकदमा किया था? नहीं!

अपराधी है वह निर्लज्ज कानून व्यवस्था, जिसने इनके नाम में लगा 'तिवारी' शब्द देखते ही मान लिया कि यह शोषक है। अपराधी है वह न्यायधीश जिसकी अदालत से एक निर्दोष को मुक्त होने में बीस वर्ष लग गए क्योंकि उसके पास पैरवी के पैसे नहीं थे। अपराधी हैं वे सारी सरकारें, जो सत्तर वर्षों में भी इस कथित लोकतांत्रिक देश को एक ऐसा न्यायालय नहीं दे सकीं जो किसी दरिद्र को न्याय दे सकें।

पर क्या कोई शर्मिंदा है? सरकार, कानून, प्रशासन... कोई भी? नहीं! किसी को लज्जा नहीं आती। किसी को लज्जा नहीं आएगी। इस देश की व्यवस्था आजादी के बाद निर्लज्ज से निर्लज्जतम होती चली गयी है। भारत में कानून एक ऐसा कोड़ा है जिससे कोई सामर्थ्यवान किसी भी गरीब को जब चाहे पीट देता है।

जो लोग कोर्ट कचहरी के चक्कर में पड़े हैं, वे जानते हैं कि उतना भ्रस्टाचार और कहीं नहीं है। यदि आपके पैसा न हो तो आप किसी को थप्पड़ मारने के केस में भी दस वर्ष तक जेल के भीतर रह जाएंगे। फिर भी काले कोर्ट वाले साहब की छवि ऐसी है कि कोई उनपर उंगली नहीं उठा सकता।

विष्णु तिवारी भारत की असंख्य दरिद्र प्रजा के प्रतिनिधि हैं जो आज भी स्वतंत्र नहीं है। वह 1947 के पहले विदेशियों की गुलाम थी, अब देशियों की गुलाम है।

अगर सचमुच यह देश लोकतंत्र है, तो इस देश के राष्ट्रपति और मुख्य न्यायधीश को इस आदमी से क्षमा मांगना चाहिए, क्योंकि देश ने ही इस व्यक्ति का जीवन बर्बाद कर दिया है।

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।

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