एडवा का 13वां राज्य सम्मेलन : मनुवादी और पितृसत्तात्मक विचारधारा से हक़ की लड़ाई कमजोर नहीं होने देंगे — सुभाषिनी अली
लखनऊ, 4 अक्टूबर।
महिलाएं आज भी हिंसा, अशिक्षा, बेरोज़गारी और समानता के अधिकार के लिए संघर्ष कर रही हैं। सत्ता में बैठी मनुवादी और पितृसत्तात्मक ताकतें इस संघर्ष को कमजोर नहीं कर सकतीं। हम हक़ और सम्मान की लड़ाई को और मजबूत करेंगे — यह संकल्प अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) उत्तर प्रदेश इकाई के 13वें राज्य सम्मेलन में लिया गया। सम्मेलन का आयोजन उद्यान भवन प्रेक्षागृह, सप्रू मार्ग, लखनऊ में किया गया, जिसमें प्रदेश के 15 जिलों से करीब 130 महिलाओं ने भाग लिया।
“हक़ की लड़ाई में एकजुट रहना ज़रूरी” — सुभाषिनी अली
मुख्य वक्ता और एडवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सुभाषिनी अली ने कहा कि उत्तर प्रदेश महिलाओं के प्रति अपराधों में अव्वल है। दलितों और महिलाओं पर अत्याचार लगातार बढ़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में स्कूल बंद हो रहे हैं, और नवजात शिशु मृत्युदर 70 प्रति हजार तक पहुंच चुकी है, जो केरल के मुकाबले बेहद अधिक है।
उन्होंने कहा, “सत्ता में बैठी मनुवादी सरकारें अडानी-अंबानी जैसे कारपोरेट घरानों को देश सौंप रही हैं। गांवों में स्मार्ट मीटर थोपे जा रहे हैं, और बलात्कारियों को सम्मानित किया जा रहा है। हम मनुवाद स्वीकार नहीं करेंगे। संविधान में मिले अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष जारी रहेगा।”
उन्होंने चेताया कि “अगर हम आज भी एक-दूसरे का हाथ पकड़कर साथ नहीं चलेंगे, तो हम पर भी बुलडोज़र चल जाएगा। हर महिला का दर्द हमारा दर्द है।”
“महिलाओं को बराबरी से काम करने दिया जाए” — नेहा दीक्षित
मुख्य अतिथि और लेखिका-पत्रकार नेहा दीक्षित, जिन्होंने ‘माई लाइफ ऑफ सईदा’ जैसी चर्चित पुस्तक लिखी है, ने कहा कि खेत, घर, शिक्षा और यौनिक हिंसा जैसे मुद्दे महिलाओं से जुड़े हैं, लेकिन मीडिया में महिलाओं को अब भी रसोई तक सीमित कर दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि तकनीकी विकास और डिजिटलीकरण के बावजूद सरकारी नीतियों की ढिलाई से महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित हैं। “आशा और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को आज भी वेतन नहीं, केवल सहयोग राशि मिल रही है। मेहनतकश महिलाओं को डिजिटल प्रणाली के कारण राशन तक नहीं मिल पा रहा,” उन्होंने कहा।
“संविधान और अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलन जरूरी” — मरियम धावले
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए एडवा की महासचिव मरियम धावले ने कहा कि देश के 26 राज्यों में एडवा के सम्मेलन हुए हैं और हर जगह महिलाएं संविधान बचाने और समान अधिकारों की मांग के लिए आवाज उठा रही हैं।
उन्होंने कहा, “हमारी लड़ाई सिर्फ अधिकारों की नहीं, बल्कि रोज़गार, महंगाई, शिक्षा, पानी और ज़मीन की भी है। छात्रवृत्ति और राशन नीतियों को बदलने की ज़रूरत है। लड़कियों की शिक्षा किसी भी कीमत पर बंद नहीं होनी चाहिए।”
“भीतरी जंजीरें भी तोड़नी होंगी” — वंदना मिश्र
सामाजिक कार्यकर्ता वंदना मिश्र ने स्वागत भाषण में कहा कि उत्तर प्रदेश में ऑनर किलिंग और महिला अपराध के मामलों में बढ़ोतरी चिंताजनक है। उन्होंने कहा, “हमें बाहरी नहीं, भीतरी जंजीरें भी तोड़नी होंगी। लखनवी कला और संस्कृति की तरह हमें शिक्षा व्यवस्था को भी सशक्त बनाना होगा।”
सम्मेलन के अन्य प्रमुख क्षण
कार्यक्रम का संचालन मधु गर्ग ने किया। सम्मेलन की शुरुआत बुशरा नक़वी के गीत “हम मेहनतकश जगवालों से...” से हुई।
दिवंगत साथियों को श्रद्धांजलि देने के बाद 344 दिनों से अमौसी एयरपोर्ट भूमि अधिग्रहण के खिलाफ संघर्ष कर रही सुषमा और सीमा यादव, तथा अकबरनगर आंदोलन की बुशरा सुमन पांडे को सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर प्रो. नदीम हसनैन, प्रो. रमेश दीक्षित, वंदना राय, सरोज कुशवाहा, किरन, सुमन सिंह, सीमा कटियार, नाइश हसन सहित बड़ी संख्या में महिलाएं उपस्थित रहीं।