ब्राह्मण और यादव V/s ब्राह्मण बनाम यादव

Update: 2025-07-09 05:15 GMT

आज कल उत्तर प्रदेश की सामाजिक-राजनीतिक फलक में ब्राह्मण बनाम यादव की अवांछनीय, अनावश्यक और अतिरंजित बहस छिड़ी हुई है । कई साथियों ने मुझसे भी इस विषय पर बार बार कुछ बोलने और अपने विचार साझा करने का आग्रह किया तो आत्ममंथन का निष्कर्ष यह निकला कि जातिवाद के अन्धकूप में नई पीढ़ी को जाते और दिग्भ्रमित होते होते हुए मूकदर्शक बन देखना अपनी भूमिका से अन्याय करना होगा जो एक समाजवाद और सामाजिक न्याय के योद्धा के लिए उचित नहीं ।

हम सभी चाहे ब्राह्मण, पंडित अथवा यादव, अहीर जो भी हैं , जन्मना इंसान हैं और हमारे इंसानी तकाजे जड़ जातिवादी सोच से ज्यादा महत्वपूर्ण हैं ।

इटावा में चोटी काटने वाली घटना निंदनीय है , पूजा करने और करवाने का अधिकार सभी को है । वो ब्राह्मण हो ही नहीं सकता जो शिखा का अपमान करे । चोटी काटने वालों को जातिवाद के नाम पर बचाना और इस घटना को सही ठहराना गलत है । इस घटना के बाद सभी ब्राह्मणों और पंडितों के विरुद्ध विषवमन करना और भी गलत है । यह कार्य करने वाले समाजवादी नहीं हो सकते चाहे वो जो हों । ब्राह्मणों और यादवों की अटूट एकता ऐतिहासिक ही नहीं पौराणिक भी है , जो यादव या पंडित इस एकता के विरुद्ध बोल रहा है वह अपने समाज का कल्याण चाहने वाला नहीं हो सकता, वो नितांत स्वार्थी और अपनी जाति व समाज के लिए "विष रस भरा कनक घट जैसे " सरीखा है, भले ही उसके नाम के बाद यादव, तिवारी, मिश्र, पांडे, चौधरी, शास्त्री आदि उपनाम क्यों न लगे हों , ऐसे लोग अपनी कुत्सित सोच और निजी कुंठा के कारण आपको अन्य सामाजिक संवर्ग से काट रहे हैं । ऐसे लोगों को नकारना होगा अन्यथा समाज की समरसता कलंकित और कुप्रभावित होगी ।

हमें योगेश्वर कृष्ण का कथन " समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठति परमेश्वरम्" कदापि नहीं भूलना चाहिए । गीता ज्ञान देने वाले यदुनंदन कृष्ण के गुरु महापंडित संदीपनी ऋषि थे । कन्हैया के मित्रों में पहला नाम पंडित मटुक और ब्राह्मणी रोचना देवी के पुत्र विप्रवर सुदामा का आता है । मैं ऐसे कई यादव परिवारों को जानता हूं जिनके यहां बच्चों का नाम सुदामा है और कई ब्राह्मण परिवार हैं जिनके यहां बच्चों को कान्हा , कन्हैया नाम से पुकारा जाता है । पूरी दुनिया ने कृष्ण को सबसे अधिक लोगों ने पंडित रामदास और पंडिता जमुना देवी के पुत्र सूरदास की आंखों से देखा है । किसी शायर ने खूब लिखा है -

दुनिया ने कृष्ण को देखा

सूरदास की आंखों से

फिर भी किसने सूरदास को

अंधा कहना छोड़ दिया

अब जरा पुराणों से निकल कर वर्तमान युग में आते हैं । चौरी चौरा की क्रांति का इतिहास भगवान अहीर- श्याम सुंदर मिश्र और बाबू लाल यादव - मेघू तिवारी की मित्रता के उल्लेख के बिना अधूरा है । चौरी चौरा में ज्यादातर क्रांतिकारी यदुवंशी थे जिनका मुकदमा लड़ने महामना पंडित मदन मोहन मालवीय आए थे ।

यदुकुलभूषण मुलायम सिंह को पहली बार विधानसभा का टिकट संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से मिला था जिसके तत्कालीन अध्यक्ष महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित श्रीधर महादेव जोशी थे जिन्होंने जीवन भर ब्राह्मणवादी विकृतियों से कई निर्णायक लड़ाइयां लड़ी । नेताजी ने जब समाजवादी पार्टी बनाई तो अग्रिम पंक्ति में छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र, ब्रजभूषण तिवारी, रमाशंकर कौशिक सदृश ब्राह्मण नेताओं ने अपनी ऊर्जस्विता प्रदान की, ये सभी जातिवाद के खिलाफ थे । सपा निर्माण में महान समाजवादी चिंतक मधु लिमए का भी आशीर्वाद शामिल था । हम सब फकीर इसी सिलसिले के हैं ।

सोशलिस्ट पार्टी, जनता पार्टी के दौर से लेकर समाजवादी पार्टी तक सामाजिक न्याय और समाजवाद में आस्था रखने वाले पंडितों की पहली पसंद समाजवादी दल रहे हैं । कुछ तथाकथित यादव बुद्धिजीवी सरीखे लोग भी ब्राह्मणों के खिलाफ सोशल मीडिया पर बोल कर अपने को चर्चित कर रहे हैं, प्रतिक्रियास्वरूप कुछ ब्राह्मण बुद्धिजीवीनुमा भी वैसी ही अवमानकारी भावभंगिमा के साथ मैदान में हैं , इससे समाजवादी विचारधारा और दल , दोनों को समान रूप से नुकसान पहुंच रहा है ।

बड़ी खूबसूरत नजर आ रही हैं

ये राहें तबाही के घर जा रही हैं

दोनों तरफ के जातिवादी सूरमाओं को खारिज करिए । दोनों कटुता और कट्टरता फैला रहे है । ये अपनी अयोग्यता और अकर्मण्यता को जाति के स्याह पर्दे छुपाते हैं और अपनी गलतियों को जाति का आकर्षक मुखौटा पहना कर विद्वेष फैलाते हैं। इन नफरतगर्द लोगों को उनकी ही जाति के उदार और भले लोग नकारना शुरू करें तभी भारत माता प्रसन्न होंगी। संदीपनी - कृष्ण, कृष्ण - सुदामा से लेकर भगवान अहीर - पंडित श्याम सुंदर, मुलायम - जनेश्वर तक की साझा विरासत को लांछित करने वालों को सार्वजनिक रूप से गलत कहने और खारिज करने का समय आ गया है ।

अस्तु, संदेश लंबा होता जा रहा है, बहुत बातें शेष हैं । हमें लोहिया की मोती - कूड़ा विवेक का ध्यान रखना होगा, कूड़ो के चक्कर में आकर मोती से हाथ धोना मूर्खता है । अंततोगत्वा बस इतना ही.....

जिन चिरागों से नफरत का धुआं उठता हो

उन चिरागों को बुझा दो, उजालों के लिए

दीपक मिश्र

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