रेलवे सर्कुलेटिंग एरिया में अवैध ऑटो स्टैंड बना 'उगाही केंद्र', RPF-CSG पर मिलीभगत के आरोप

Update: 2025-05-28 00:54 GMT


रिपोर्ट: मोहम्मद अफजल, डीडीयू नगर

चंदौली, डीडीयू नगर।पंडित दीनदयाल उपाध्याय नगर रेलवे मंडल (डीडीयू) में व्याप्त भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो चुकी हैं कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की कार्रवाई के बावजूद भी अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगता नहीं दिख रहा है। ताजा मामला डीडीयू स्टेशन परिसर के सर्कुलेटिंग एरिया स्थित पार्सल ब्रिज के पास वर्षों से संचालित एक अवैध ऑटो स्टैंड का है, जो न केवल रेलवे की जमीन पर अवैध कब्जे का जीता-जागता उदाहरण है, बल्कि रेल अधिकारियों और सुरक्षा एजेंसियों की संलिप्तता को भी बेनकाब करता है।

न टेंडर, न लेखा-जोखा, फिर भी धड़ल्ले से चल रहा स्टैंड

इस अवैध ऑटो स्टैंड को लेकर न तो रेलवे के पास कोई टेंडर रिकॉर्ड है और न ही इससे प्राप्त होने वाला कोई राजस्व। बावजूद इसके, यहां से प्रतिदिन 100 से अधिक ऑटो बिना किसी वैध अनुमति के संचालित हो रही हैं। सूत्रों की मानें तो दशकों पहले एक तत्कालीन मंडल रेल प्रबंधक (DRM) द्वारा सीमित दायरे में 26 ऑटो की अनुमति दी गई थी। लेकिन आज यह संख्या चार गुना से अधिक हो चुकी है और न तो रेलवे ने इसकी वैधता की समीक्षा की, न ही किसी प्रकार की अनुमति दी।

जब अफसर आते हैं, ऑटो हट जाते हैं...

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जब कोई वरिष्ठ रेलवे अधिकारी निरीक्षण के लिए स्टेशन आता है, तब इस स्टैंड को अस्थायी रूप से पूरी तरह हटा दिया जाता है। यह दर्शाता है कि रेलवे प्रशासन इस अवैध स्टैंड से भली-भांति अवगत है, लेकिन कार्रवाई करने की जगह इसे 'अनदेखा' करने की नीति अपनाए हुए है।

रेलवे सूत्रों की मानें तो इस अवैध स्टैंड के संचालन में रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स (RPF) और कमर्शियल सुपरवाइजर जनरल (CSG) की अहम भूमिका है। आरोप है कि RPF के कारखास अशोक यादव और कमांडेंट के कारखास बबलू सहित कुछ अधिकारियों को स्टैंड से होने वाली कमाई का 'हिस्सा' नियमित रूप से पहुंचता है। इतना ही नहीं, जीआरपी की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं, जो कानून व्यवस्था की जिम्मेदार होने के बावजूद चुप्पी साधे हुए है।

रेलवे की सर्कुलेटिंग एरिया की भूमि पर वर्षों से अवैध स्टैंड संचालित हो रहा है, लेकिन रेल प्रशासन चुप है। हर साल प्रीमियम पार्किंग, साइकिल स्टैंड और वैध ऑटो स्टैंड के लिए टेंडर निकाले जाते हैं। ऐसे में यह अवैध स्टैंड पूरी तरह नियमविरुद्ध है और सरकारी संपत्ति पर कब्जे का मामला बनता है।

भ्रष्टाचार के इस 'हमाम' में सब नंगे नजर आते हैं...

जब ऐसे मामलों में कार्रवाई करने वाली संस्थाएं और अधिकारी ही मौन हों, तो यह स्पष्ट है कि कहीं न कहीं मिलीभगत है। यह पूरा प्रकरण न सिर्फ रेलवे की छवि को धूमिल करता है, बल्कि यात्रियों की सुरक्षा, सुविधा और रेलवे के राजस्व को भी गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है।अब देखना यह है कि रेलवे बोर्ड और संबंधित जांच एजेंसियां इस गंभीर भ्रष्टाचार के खिलाफ कब तक आंख मूंदे बैठी रहती हैं, या फिर कोई ठोस कार्रवाई होती है।

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