बंगाल चुनाव से पहले बड़ा सियासी धमाका : टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर ने 6 दिसंबर को ‘बाबरी मस्जिद’ की नींव रखने का ऐलान किया, उमा भारती ने दी खुली चुनौती

Update: 2025-11-24 11:24 GMT


रिपोर्ट : विजय तिवारी

पश्चिम बंगाल में 2026 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले टीएमसी के विधायक हुमायूं कबीर के बयान ने राज्य की राजनीति को अचानक हाई-वोल्टेज विवाद के केंद्र में ला दिया है। कबीर ने घोषणा की है कि वे 6 दिसंबर को मुर्शिदाबाद जिले में “बाबरी मस्जिद” की आधारशिला रखेंगे। जैसे ही उनका यह बयान सामने आया, बंगाल से लेकर राष्ट्रीय राजनीति तक हलचल मच गई।

मुर्शिदाबाद में 6 दिसंबर को ‘बाबरी मस्जिद’ की नींव रखने की घोषणा

टीएमसी विधायक ने बताया कि—

प्रस्तावित स्थल 20 बीघा जमीन पर तैयार किया जाएगा।

इस परियोजना में मस्जिद के साथ एक कॉलेज, अस्पताल और छह मंजिला गेस्ट हाउस भी शामिल होगा।

निर्माण का लक्ष्य तीन वर्षों में पूरा करने का है।

वे 6 दिसंबर को औपचारिक रूप से आधारशिला रखेंगे।

इस घोषणा के तुरंत बाद यह मामला राजनीतिक तूफान की तरह फैल गया क्योंकि 6 दिसंबर को बाबरी विध्वंस की बरसी के रूप में याद किया जाता है।

बीजेपी का कड़ा विरोध, उमा भारती ने दी तीखी चेतावनी

भाजपा ने इस बयान को “चुनावी ध्रुवीकरण की कोशिश” बताया है। सबसे तीखी प्रतिक्रिया भाजपा की वरिष्ठ नेता और राम मंदिर आंदोलन की प्रमुख चेहरा रह चुकीं उमा भारती की आई। उन्होंने कहा—

> “बाबर के नाम पर मस्जिद बनाने की कोशिश की गई तो इसका नतीजा वही होगा जो 1992 में हुआ था।”

उनका संकेत साफ था कि ऐसा कदम सामाजिक तनाव को जन्म दे सकता है और जनता इसका जवाब दे सकती है।

बीजेपी नेताओं ने टीएमसी पर आरोप लगाया कि वह चुनाव से पहले सांप्रदायिक राजनीति को हवा दे रही है।

कांग्रेस और लेफ्ट ने भी सवाल उठाए

कांग्रेस और वाम दलों ने इस घोषणा को “अनावश्यक विवाद” बताते हुए कहा कि चुनावी मौसम में ऐसे बयान सामाजिक सौहार्द को प्रभावित करते हैं।

हालाँकि कांग्रेस ने यह भी कहा कि—

पूजा स्थल बनाना किसी भी धर्म का संवैधानिक अधिकार है,

लेकिन इसे चुनावी हथियार बनाना गलत है।

टीएमसी ने बचाव में कहा — “राय देने से पहले तथ्य देखें”

टीएमसी की ओर से आधिकारिक बयान तो नहीं आया, लेकिन पार्टी सूत्रों के अनुसार—

यह विधायक का “वैयक्तिक निर्णय” हो सकता है,

और पार्टी चुनावी ध्रुवीकरण से बचना चाहती है।

टीएमसी की यह नरम प्रतिक्रिया बताती है कि पार्टी इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर खुलकर कोई रुख लेने से बच रही है।

मुर्शिदाबाद—बंगाल की मुस्लिम राजनीति का केंद्र

मुर्शिदाबाद और मालदा जैसे जिलों में मुस्लिम आबादी बहुत अधिक है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि—

इस तरह की घोषणा स्थानीय वोट बैंक को संदेश देने की रणनीति भी हो सकती है।

मुस्लिम बहुल सीटों पर टीएमसी और कांग्रेस में मुकाबला हमेशा कड़ा रहा है।

ऐसे में इस बयान का सीधा असर लोकल राजनीतिक समीकरणों पर भी पड़ेगा।

6 दिसंबर की तारीख क्यों सबसे ज्यादा विवादित?

6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ था।

यह भारत के इतिहास की सबसे संवेदनशील घटनाओं में से एक है।

इसी दिन किसी “नई बाबरी मस्जिद की नींव” रखने का ऐलान स्वाभाविक रूप से प्रतीकात्मक राजनीति माना जा रहा है।

राजनीतिक विशेषज्ञ इसे एक “हाई रिस्क–हाई इम्पैक्ट” कदम बताते हैं, जो चुनावी माहौल को पूरी तरह बदल सकता है।

कानून-व्यवस्था को लेकर भी चिंता

राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के लिए यह तारीख और कार्यक्रम चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

सुरक्षा एजेंसियों की नजर इस पर टिकी हुई है कि—

क्या 6 दिसंबर को कोई बड़ा कार्यक्रम होगा?

स्थानीय माहौल शांत रहेगा या तनाव की आशंका बढ़ेगी?

केंद्र और राज्य में इस मुद्दे पर टकराव संभव है या नहीं?

चुनावी विश्लेषण : किसे फायदा, किसे नुकसान?

टीएमसी को फायदा—

मुस्लिम वोट और ज़्यादा एकजुट हो सकते हैं।

स्थानीय स्तर पर पार्टी में असंतोष कम होता है।

बीजेपी को बड़ा राजनीतिक मुद्दा—

हिंदू वोटरों को एकजुट करने का मौका मिलेगा।

पूरे देशभर में बंगाल की राजनीति को “हिंदू बनाम मुस्लिम ध्रुवीकरण” की बहस में बदला जा सकता है।

कांग्रेस-लेफ्ट को नुकसान—

उनके पारंपरिक वोट टीएमसी की ओर खिसक सकते हैं।

वे इस विवाद में न तो खुलकर टीएमसी के साथ रह सकते हैं, न विरोध कर सकते हैं।

बंगाल चुनाव से पहले यह विवाद राजनीति की दिशा बदल सकता है।

हुमायूं कबीर का बयान सिर्फ एक धार्मिक ऐलान नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल की 2026 चुनावी राजनीति के केंद्र में खड़ी एक विशाल सियासी हलचल है।

इस मुद्दे का असर—

चुनावी रणनीतियों,

हिंदू–मुस्लिम ध्रुवीकरण,

और टीएमसी-बीजेपी मुकाबले

सब पर गहरा पड़ने वाला है।

अब सबकी नजरें 6 दिसंबर पर टिकी हैं—

क्या वाकई आधारशिला रखी जाएगी?

क्या राज्य में तनाव बढ़ेगा?

और इसका चुनावी परिणामों पर क्या असर पड़ेगा?

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