लेखक: अजय मिश्रा पूर्व नेवी ऑफिसर
आज की तेज़ रफ़्तार दुनिया में लोग पैसे के पीछे इस कदर भाग रहे हैं कि उन्हें यह एहसास ही नहीं हो पा रहा कि असली खुशी दिल में बसती है, बैंक बैलेंस में नहीं। अरबों की दौलत रखने वाले कई लोगों की आत्महत्या की खबरें हमें झकझोर कर रख देती हैं। सवाल उठता है — जब उनके पास सब कुछ था, तो आखिर उन्हें क्या कमी थी?
इसके ठीक उलट एक गरीब मजदूर की जिंदगी देखिए। सुबह से शाम तक वह मेहनत करता है, पसीना बहाता है, लेकिन जब रात होती है तो अपने परिवार के साथ एक मुस्कान के साथ खाना खाता है, बच्चों की बातें सुनता है और चैन की नींद सो जाता है। उसके पास शायद बड़ी गाड़ी या बंगला न हो, लेकिन उसके पास वह रिश्ता है, वह अपनापन है जो उसे असली सुख देता है।
आज जो लोग बहुत पैसे वाले हैं, उनके पास अक्सर कोई एक ऐसा सच्चा मित्र नहीं होता जिससे वे अपने मन की बात कह सकें। यही कारण है कि वे अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं और कई बार अवसाद (डिप्रेशन) में आकर आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। यह स्थिति चिंता का विषय है।
इसलिए यह लेख समाज के हर वर्ग से एक सच्ची और सरल गुज़ारिश करता है — कम से कम 2 से 4 हित-मित्र ज़रूर बनाइए। ऐसे मित्र जिनसे आप दिल खोलकर बात कर सकें, अपनी परेशानियों को साझा कर सकें, बिना किसी डर के। जीवन में भावनाएं सबसे कीमती चीज होती हैं, जिन्हें पैसों से नहीं खरीदा जा सकता।
हमारे रिश्ते, संवाद और संवेदनाएं ही हमें इंसान बनाते हैं। पैसा जरूरी है, लेकिन वो इंसानियत और अपनेपन की जगह नहीं ले सकता। अगर दिल से जिएंगे, तो सच्ची खुशियां अपने आप मिलेंगी।
याद रखिए:
"पैसा सामान खरीद सकता है, पर सुकून नहीं;
घर खरीद सकता है, पर घर का प्यार नहीं;
रिश्ते पैसे से नहीं, दिल से बनाए जाते हैं।"
समाज को एकजुट रखने के लिए आइए हम मिलकर एक ऐसा माहौल बनाएं, जहां हर व्यक्ति को कोई न कोई सुनने वाला हो, समझने वाला हो!