धरती के एकमात्र प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य के आज से रोहिणी नक्षत्र में गोचर के साथ ही धरती पर नौतपा शुरू हो गया है. भारतीय कृषि परंपरा में नौतपा का संदेश शुरू से ही बड़ा रहस्यमय रहा है. नौतपा को लेकर वैदिक और उत्तर वैदिक ग्रंथों में तो कोई जिक्र नहीं मिलता, लेकिन उपनिषदों में कई बार इसकी चर्चा हुई है. छांदोग्य और आचार्य वराहमिहिर की बृहत् संहिता समेत कई अन्य उपनिषदों में माना गया है कि नौतपा जितना तपेगा, धरती पर उतनी ही बारिश होगी. वहीं, धरती पर जितनी बारिश होगी, उतनी ही फसल अच्छी होगी.
इसी बात को लोकपरंपरा में दूसरे तरह से कहा गया है. इसमें मारवाड़ी की कहावत को सर्वाधिक मान्यता है. इसमें कहा गया है कि ‘दो मूसा, दो कातरा, दो तीडी, दो ताव. दो की बादी जल हरे, दो विश्वर दो बाव (विषैले जानवर)’. मतलब यह कि यदि नौतपा के शुरुआती दो दिन नहीं तपे तो धरती पर चूहे और कातरा यानी कीट पतंगे ज्यादा पैदा होंगे. इसी प्रकार दो तीडी दो ताव का मतलब अगले दो दिन भी गर्मी नहीं पड़ी तो टिड्डी और ताव यानी जहरीले जीव बढ़ जाएंगे. अगले दो दिनों के लिए कहा गया है कि दो की बादी जल हरे यानी इन दो दिनों में लू नहीं चली तो आंधी-तूफान से नुकसान की संभावना रहेगी. इसी प्रकार आखिरी दो दिन के लिए कहा गया है कि दो विश्वर दो बाव यानी इसमें लू नहीं चलने पर जहरीले जानवर और बाव यानी विषैले जीव बढ़ जाएंगे.
बारिश से नौतपा का सीधा संबंध
इसी प्रकार एक दूसरी लोकोक्ति में नौतपा को सीधे बारिश से जोड़ा गया है. इसमें कहा गया है कि “पैली रोहण जल हरै, बीजी बोवोतर खाए. तीजी रोहण तिण खाये, चौथी समदर जाए.” मतलब भगवान सूर्य के रोहिणी नक्षण में गोचर करने यानी रोहिणी नक्षत्र शुरू होने की शुरुआत में बारिश हो जाए तो अकाल पड़ने की संभावना रहती है. इसी प्रकार नौतपा के मध्य में बारिश हो तो पहली और दूसरी बारिश के बीच की अवधि लंबी हो जाती है. वहीं यदि नौतपा के आखिर में बारिश हो तो सूखा पड़ने के आसार रहते हैं और धरती सफेद हो जाती है. वहीं चौथे हिस्से में बारिश हो तो अच्छी बारिश की संभावना बनती है.
ये नौतपा है क्या?
कूर्म चक्र के मुताबिक पृथ्वी के केंद्र पर रोहिणी नक्षत्र का शासन होता है. भारत के भौगोलिक स्थिति को देखें तो यहां भी केंद्र बिंदु पर रोहिणी ही है. इसीलिए रोहिणी नक्षत्र का ज्यादा असर मध्य भारत पर पड़ता है. नौतपा की शुरुआत सूर्य के रोहिणी में गोचर से हो जाती है. ज्योतिषीय विचार के मुताबिक जब भी सूर्य का गोचर वृषभ राशि में कृतिका और रोहिणी नक्षत्र के आसपास होता है तो सूर्य की सीधी किरणें धरती पर पड़ती हैं. ऐसे हालात में धरती खासतौर पर मध्य प्रदेश और उससे लगते राजस्थान में गर्मी ज्यादा पड़ती है. इस बार सूर्य का रोहिणी में गोचर 25 मई को शुरू हुआ है और तीन जून तक रहेगा. उपनिषदों में कहा गया है कि कई बार चंद्रमा की गति की वजह से इन नौ दिनों में बारिश होती है. यह संकेत होता है कि मानसून में बारिश कम होगी. इसी परिस्थिति को रोहिणी कंठ का नाम दिया गया है.