नेगुरा जल रहा है...! मंदिर पर छींटाकशी से भड़की चिंगारी ने ली थी हिंसा की शक्ल, पुलिस छावनी बने गांव में तीन लाउडस्पीकरों से हो रहे थे अज़ान, महकमा बना रहा उदासीन....
विशेष रिपोर्ट: ओ पी श्रीवास्तव, चंदौली
चंदौली: चंदौली जिले का नेगुरा गांव इन दिनों कम्युनल तनाव की आग में झुलस रहा है।छींटाकशी से शुरू हुआ विवाद इस कदर बढ़ा कि एक युवक की जान चली गई और कई लोग घायल हो गए। हिंसा की आंच में गांव की फिज़ा जहरीली हो चली है और पूरा इलाका पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका है।
घटना की जड़ उस समय पड़ी जब गांव की कुछ हिंदू महिलाएं मंदिर में पूजा-अर्चना कर रही थीं। इसी दौरान मुस्लिम समुदाय के कुछ युवकों द्वारा कथित छींटाकशी की गई। यह बात आग की तरह फैली और दोनों पक्ष आमने-सामने आ गए। विवाद बढ़ा और मामला स्थानीय नवही पुलिस चौकी पर पहुंचा। लेकिन सुलह - समझौते से हर मामले का निराकरण करने में महारत हासिल किए नवही चौकी प्रभारी द्वारा इस मामले पर सुलह - समझौता सवालों के घेरे में आ गया । बताया जा रहा है कि पहले भी दोनों समुदायों के बीच तनाव की स्थिति बनी थी, लेकिन चौकी प्रभारी द्वारा मामले को सुलह-समझौते की शक्ल देकर टाल दिया गया। यही ढिलाई विवाद को हिंसा में बदलने की मुख्य वजह मानी जा रही है।
हिंसा के दौरान गंभीर रूप से घायल युवक बादशाह की इलाज के दौरान मौत हो गई, जिससे गांव का माहौल और बिगड़ गया। मृतक के घर विपक्षी दलों के नेताओं का तांता लग गया, जिन्होंने इसे सीधे-सीधे सांप्रदायिक रंग देकर सरकार पर निशाना साधा और कानून - व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए। जिसके बाद मामले ने और तुल पकड़ लिया और हिंदू समुदाय के घायलों की सुध लेने के लिए भाजपा के कई नेता गांव पहुंचे। इससे स्थिति और अधिक संवेदनशील हो गई। कुछ स्थानों पर आपसी बातचीत की कोशिशें भी हुईं, लेकिन सफलता नहीं मिली।
वहीं आपको बता दें कि हिंसा के बाद भी मस्जिद पर अज़ान के लिए लाउडस्पीकर का प्रयोग जारी था, जबकि योगी सरकार पहले ही धार्मिक स्थलों से अवैध लाउडस्पीकर हटाने का निर्देश दे चुकी है। सैयदराजा के भाजपा विधायक सुशील सिंह जब आज मौके पर पहुंचे और मस्जिद पर लाउडस्पीकरों से अज़ान होने की बात पर सख्ती से मंदिर में रामायण पाठ कराने को कहकर पुलिस महकमें पर सवाल साधा तो चंदौली पुलिस महकमा चुप्पी साध बैठा। विधायक की सख्ती देख पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए लाउडस्पीकर हटवाए, वहीं घटना की जड़ बने मंदिर पर दर्शन - पूजन कर वहां की व्यवस्थाओं पर जमकर सवाल साधा,तब जाकर उपद्रव को नियंत्रित करने के पुलिस छावनी बनी पुलिस महकमें की तंद्रा भंग हुई। सवाल यह भी उठ रहा है कि पुलिस को यह अज़ान की आवाज अब तक क्यों नहीं सुनाई दी?
वर्तमान में नेगुरा गांव पूरी तरह पुलिस घेरे में है। पीएसी और स्थानीय पुलिस की तैनाती के बावजूद गांव के चेहरे पर खामोशी और डर साफ दिखाई देता है। सोशल मीडिया पर अफवाहें फैलने से रोकने के लिए विशेष निगरानी रखी जा रही है। हालांकि इस घटना ने एक बार फिर प्रशासनिक सतर्कता और स्थानीय पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या समय रहते कार्रवाई की गई होती तो एक जान बच सकती थी? क्या अब भी प्रशासन चेतेगा या फिर अगली हिंसा की पटकथा तैयार होती रहेगी?