प्रयागराज : पूर्व सांसद धनंजय सिंह को इलाहाबाद हाईकोर्ट से बड़ा झटका, राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ तेज
रिपोर्ट : विजय तिवारी
प्रयागराज। वाराणसी के चर्चित नदेसर ओपन शूटआउट मामले में जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह को शनिवार को बड़ा कानूनी झटका लगा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाए गए बरी आदेश को चुनौती देने वाली उनकी क्रिमिनल अपील खारिज कर दी है। जस्टिस लक्ष्मीकांत शुक्ला की सिंगल बेंच ने माना कि गैंगस्टर एक्ट समाज और राज्य के खिलाफ अपराध से जुड़ा कानून है, इसलिए पीड़ित व्यक्ति की ओर से दायर अपील कानूनी रूप से पोषणीय नहीं है।
इस फैसले के साथ चारों आरोपियों की रिहाई पर ट्रायल कोर्ट का आदेश कायम रहेगा और 23 वर्ष पुराने इस केस के कानूनी रूप से बंद होने की संभावना मजबूत हो गई है।
हमला और मुकदमे की पृष्ठभूमि
4 अक्टूबर 2002 को वाराणसी के नदेसर क्षेत्र में टकसाल सिनेमा के पास धनंजय सिंह के काफिले पर अंधाधुंध फायरिंग की गई थी। इस हमले में वे तथा उनके सुरक्षा कर्मी घायल हुए थे।
घटना के बाद धनंजय सिंह ने तत्कालीन विधायक अभय सिंह, एमएलसी विनीत सिंह तथा अन्य लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी। आरोपियों पर गैंगस्टर एक्ट, जानलेवा हमले एवं अन्य संगीन धाराएँ लगाई गई थीं।
ट्रायल कोर्ट का फैसला
29 अगस्त 2025 को वाराणसी एमपी-एमएलए विशेष अदालत ने साक्ष्यों के अभाव में चार आरोपियों —
संदीप सिंह, संजय रघुवंशी, विनोद सिंह, सतेंद्र सिंह उर्फ बबलू — को बरी कर दिया था।
इसके खिलाफ पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जिसे अब खारिज कर दिया गया है।
हाईकोर्ट की टिप्पणी
अदालत ने अपने आदेश में कहा —
“गैंगस्टर एक्ट समाज-विरोधी गतिविधियों को रोकने के लिए बनाया गया है, न कि निजी विवाद निपटाने के लिए।”
इसलिए, निजी तौर पर कोई व्यक्ति ऐसी अपील दायर करने का अधिकार नहीं रखता।
अदालत ने यह भी माना कि ट्रायल कोर्ट ने उपलब्ध साक्ष्यों का सही आकलन किया, और उसे पलटने का कोई आधार नहीं है।
राजनीतिक हलकों में प्रतिक्रिया
सत्तापक्ष की प्रतिक्रिया
प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि—
“यह फैसला न्यायपालिका की निष्पक्षता और साक्ष्य-आधारित निर्णय प्रक्रिया को मजबूत करता है। सिर्फ आरोप लगाने से कोई दोषी नहीं हो जाता।”
उनका कहना है कि लंबे समय से राजनीति में मुकदमों का इस्तेमाल हथियार की तरह होता आया है, लेकिन यह फैसला कानून और प्रक्रिया की जीत है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों ने फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा—
“23 साल पुराने एक गंभीर हमले में न्याय न मिलना निराशाजनक है। न्याय में देरी का लाभ आरोपी पक्ष ने उठाया है।”
विपक्ष का आरोप है कि राजनीतिक दबाव, समय अंतराल और कमजोर पड़ते साक्ष्यों ने न्याय प्रक्रिया को प्रभावित किया है। उन्होंने कहा कि पीड़ित की आवाज अदालत तक पहुँच ही नहीं पाई।
स्थानीय जनभावना और विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला भविष्य में गंभीर आपराधिक मामलों में साक्ष्य-संकलन और जांच-प्रणाली को मजबूत करने की दिशा में संकेत देता है।
सोशल मीडिया और स्थानीय राजनैतिक समूहों में फैसले को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है — एक ओर लोग इसे न्यायिक संतुलन कहते हैं, वहीं दूसरी ओर “न्याय की अनुभूति” की कमी पर सवाल हैं।
वर्तमान स्थिति और आगे की संभावना
इस निर्णय के बाद नदेसर शूटआउट केस न्यायिक रूप से लगभग समाप्त माना जा रहा है।
अब केवल राज्य सरकार या अभियोजन पक्ष के पास ही आगे उच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका (SLP) का विकल्प शेष है।
राजनीतिक तौर पर, यह फैसला आने वाले दिनों में पूर्वांचल की राजनीतिक बहस और आगामी चुनावी समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला स्पष्ट संदेश देता है कि —
“न्याय भावनाओं से नहीं, ठोस प्रमाणों से चलता है।”
और राजनीतिक मुकदमों में भी कानून, साक्ष्य और प्रक्रिया सर्वोपरि है।