नई दिल्ली, 24 नवंबर
साहित्य अकादमी ने प्रख्यात हिंदी नाटककार और रंगकर्मी दया प्रकाश सिन्हा की स्मृति में आज एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया, जिसमें साहित्य और संस्कृति जगत के अनेक प्रमुख व्यक्तित्वों ने उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम की शुरुआत उनकी पुत्री आचार्या शून्या के संदेश के पाठ से हुई। संदेश में उन्होंने कहा कि उनके पिता का नाट्य लेखन केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और मानवीय संवेदनाओं का सजीव संवाद था।
संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष संध्या पुरेचा ने उन्हें एक ऐसे दर्पण के रूप में याद किया, जिनके नाटकों में समाज की गहरी संवेदनाएँ और सच्चाइयाँ जीवंत रूप में दिखती हैं। उन्होंने कहा कि सिन्हा का लेखन और जीवनदर्शन एक-दूसरे के पूरक थे।
साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने दया प्रकाश सिन्हा को भारतीय साहित्य और संस्कृति का “सबसे बड़ा राजदूत” बताते हुए कहा कि उन्होंने नाटक और साहित्य के बीच अद्भुत संतुलन स्थापित किया। वहीं उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने ऑनलाइन जुड़कर कहा कि उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था और उन्होंने जीवनभर मनुष्यता तथा भारतीयता के मूल्यों को जिया।
वरिष्ठ साहित्यकार अनिल जोशी ने उन्हें मिथक, पुराण और इतिहास की पुनर्व्याख्या करने वाले एक महत्वपूर्ण नाटककार और दुर्लभ सांस्कृतिक प्रशासक के रूप में याद किया। सुमन कुमार ने उनके भीतर बसे बच्चे जैसी जिज्ञासा और नए परिवेश की निरंतर खोज की भावना को रेखांकित किया। संजीव सिन्हा ने उन्हें भारतीय चिंतन से ओत-प्रोत एक साहसिक विचारक बताया, जबकि शैलेश श्रीवास्तव ने उनके स्नेहपूर्ण और सम्मानजनक व्यवहार का उल्लेख किया। प्रताप सिंह ने उनके यात्रा-संस्मरणों को उत्कृष्ट गद्य का उदाहरण बताया।
सभा के अंत में उपस्थित सभी लोगों ने दो मिनट का मौन रखकर दिवंगत कलाकार को श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम में दया प्रकाश सिन्हा के परिजनों—दामाद सोमेश रंजन, भांजी ज्योति, नाती सारंग—सहित अनेक लेखक, कलाकार और नाट्यकर्मी उपस्थित रहे। संचलन उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।