छत्रपती शिवाजी महाराज की वो गौरव गाथा, जो आपको जानना चाहिए #ShivajiMaharaj

Update: 2020-02-19 03:52 GMT

भारत के बहादुर शासकों में से एक छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती आज है. शिवाजी महाराज को इतिहास के बहादुर, बुद्धिमान, शौर्य से पूर्ण और महान राजा के रूप में पूजा जाता है. 19 फरवरी 1630 को पुणे में जन्में शिवाजी महाराज ने अखंड भारत और स्वराज का सपना देखा और मराठा साम्राज्य खड़ा किया था. उनके शासन में आम जनता को सदा न्याय मिला और यही कारण है कि आज भी उन्हें जनता का राजा कहा जाता है.

महाराष्ट्र में तो उनकी आज भी पूजा होती है. शिवाजी पिता शाहजी और माता जीजाबाई के पुत्र थे. उनका जन्म स्थान पुणे के पास स्थित शिवनेरी का दुर्ग है. छत्रपति शिवाजी की जयंती को शिव जयंती और शिवाजी जयंती भी कहते हैं. महाराष्ट्र में शिवाजी जयंती पारंपरिक तरीके से मनाई जाती है. शिवाजी को उनकी बहादुरी और रणनीतियों के लिए जाना जाता है, जिससे उन्होंने मुगलों के खिलाफ कई युद्धों को जीता.

कई लोग मानते हैं कि शिवाजी का जन्म भगवान शिव के नाम पर रखा गया, लेकिन ऐसा नहीं था, उनका नाम एक देवी शिवई के नाम पर रखा गया था. दरअसल शिवाजी की मां ने देवी शिवई की पुत्र प्राप्ति के लिए पूजा की और उन्हीं पर शिवाजी का नाम रखा गया. 6 जून 1674 को शिवाजी महाराज मुगलों को धूल चटाकर लौटे थे. जिसके बाद उनका मराठा शासक के रूप में राजतिलक हुआ था.

उनका विवाह 14 मई, 1640 को सइबाई निम्बालकर के साथ हुआ था. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत लोगों ने शिवाजी महाराज के जीवन से प्रेरित होकर अपना तन, मन धन तक न्यौछावर कर दिया था. शिवाजी महाराज को नौसेना का जनक भी माना जाता है. साल 1680, अप्रेल में बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी, लेकिन आज भी दुनिया उनके पराक्रम और साहस को नहीं भूली है. आज शिवाजी महाराज की जयंती के मौके पर पढ़ें उनके बारे में

शिवाजी महाराज की मुगलों से पहली मुठभेड़ वर्ष 1656-57 में हुई थी. बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की मृत्यु के बाद वहां अराजकता का माहौल पैदा हो गया था, जिसका लाभ उठाते हुए मुगल बादशाह औरंगजेब ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया. उधर, शिवाजी ने भी जुन्नार नगर पर आक्रमण कर मुगलों की ढेर सारी संपत्ति और 200 घोड़ों पर कब्जा कर लिया. इसके परिणामस्वरूप औरंगजेब शिवाजी से खफा हो गया. जब बाद में औरंगजेब अपने पिता शाहजहां को कैद करके मुगल सम्राट बना, तब तक शिवाजी ने पूरे दक्षिण में अपने पांव पसार दिए थे. इस बात से औरंगजेब भी परिचित था.

उसने शिवाजी पर नियंत्रण रखने के उद्देश्य से अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया. शाइस्ता खां ने अपनी 1,50,000 फौज के दम पर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार करते हुए मावल में खूब लूटपाट की. शिवाजी को जब मावल में लूटपाट की बात पता चली तो उन्होंने बदला लेने की सोची और अपने 350 मवलों के साथ उन्होंने शाइस्ता खां पर हमला बोल दिया. इस हमले में शाइस्ता खां को बचकर निकलने में कामयाब रहा, लेकिन इस क्रम में उसे अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा.

बाद में औरंगजेब ने शाहजादा मुअज्जम को दक्षिण का सूबेदार बना दिया. औरंगजेब ने बाद में शिवाजी से संधि करने के लिए उन्हें आगरा बुलाया, लेकिन वहां उचित सम्मान नहीं मिलने से नाराज शिवाजी ने भरे दरबार में अपना रोष दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया.

इससे नाराज औरंगजेब ने उन्हें आगरा के किले में कैद कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों का पहरा लगा दिया, लेकिन अपने साहस और बुद्धि के दम पर वो सैनिकों को चकमा देकर वहां से भागने में सफल रहे. शिवाजी महाराज ने अपने जीवनकाल में कई बार मुगलों की सेना को मात दी थी. 

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