किशोरी लाल जी राजस्व विभाग में लिपिक थे। जीवन के पच्चीस वर्ष नौकरी में खर्चने के बाद शहर में एक छोटी सी जमीन खरीद ली. जिस पर दो तल्ला मकान भी खड़ा कर लिया. जीवन की पूरी कमाई ईंट,सरिया और सीमेंट में तबदील होने पर..किशोरीलाल जी का डीलडौल बदला.. थोड़ा व्यवहार भी. मकान चमक गया किन्तु इनकी चमक पर तनिक झुर्रियाँ...तनिक कालिमा मार गई.
प्लाट कार्नर का था जिसका मुख पच्छिम की तरफ खुलता था, दक्षिण तरह एक पांच फीट की पतली, सुनसान गली निकलती थी. गली में इक्का-दुक्का मोटरसाइकिल निकलती लेकिन पैदल वाले शार्टकट मारकर निकल लेते थे. गली एक लिहाज़ से और भी मुफीद थी,वो थी राहगीरों के पेशाब करने के लिए. राहगीर सन्नाटा में खड़े होकर बड़े शुकुन से हल्के होकर आगे बढ़ जाते.
गली में किशोरीलाल जी का इकलौता मकान का जिसका मुख गली में नहीं खुलता इसलिए इनकी पूरी दीवार पेशाब करने वालों के लिए सबसे सुरक्षित दीखती थी. वहाँ गली के अन्य मकान के गेट गली में खुलते इसलिए अन्य मकान के सामने पिचकारी नहीं बरसती.
एक दिन अपने किशोरीलाल जी टहलते हुए गली में पहुंचे, घर की दक्षिणी दीवार पर नजर ठहरी तो चौंक गये! ये मोटी-मोटी धार. नया मकान, मेहनत का रूपैया, तिसपर पेशाब की अम्ल और क्षार का आक्रमण! इतना तो मालूम ही था कि पेशाब सीमेंट का दुश्मन है. किशोरीलाल जी आठ-दस भद्दी-भद्दी गालियों के साथ भविष्य के किसी अज्ञात अपराधी को देख लेने की धमकी के साथ वापिस अपने घर में चले गये.
आज आफिस में पूरे दिन केवल भुनभुनाते रहे. आफिस के उनके सहकर्मी चौबे जी को जब पूरी घटना का मालूमात हुआ तो उन्होंने किशोरीलाल जी को मशवरा दिया कि "अपने गली की दीवार को खूब अच्छे से पेंट करा दीजिए.. साफ दीवार पर किसी की हिम्मत नहीं की पिचकारी चला दे." किशोरीलाल को बात जचीं सो अगले दिन दो मजदूर नियुक्त कर एशियन का डिस्टेम्पर लगवा गली की सबसे सफेद और चमकीली दीवार बनाकर सभी राहगीरों के लिए एक अलिखित संदेश प्रेषित किया कि दीवार की सफेदी आपको यह अधिकार नहीं देती कि आप इसके सामने बेपर्दा हों.
किशोरीलाल की गलतफहमी महज चौबीस घंटे में पेशाब की धार से तार-तार हुई सुबह सात-आठ धारों से उजली दीवार पर पीली धारियाँ स्पष्ट शिनाख्त की गयीं. किशोरीलाल आपे से बाहर, दस मिनट में डिक्शनरी की कोई गाली नहीं बची जो एक सांस में नहीं उगल डाले. दो बाल्टी पानी डालकर दीवार को पुरानी दशा में लाने का प्रयास किये किन्तु पीली धार की दस्तखत वैसी ही बनी रही.
सुबह फाइलों में मन न लगा. पूरा दिन बुझे-बुझे.. चौबेजी ने पूछा-"क्या हुआ किशोरी! अब तो पेशाब वाली समस्या से मुक्त हो गये होंगे."
"क्या खाक़ मुक्त हुए .. अब तो तश्वीर और खुलकर आ रही है. खूब तगड़े से मूत रहें हैं उजली दीवार पर" किशोरीलाल खीझे अंदाज़ में जबाब दिये.
चौबे जी- "अच्छा! बड़े ढीठ हैं..उजली दीवार भी नहीं छोड़ रहे!"
अच्छा ऐसा किजिये- दीवार पर पेशाब मनाही का इश्तिहार लिखवाइए. जरूर असर होगा."
सुबह पेंटर पकड़ा गया- बड़े स्पष्ट शब्दों में लिखा गया
"कृपया यहाँ पेशाब न करें!"
किशोरीलाल ने जब लेखन करवाया उसी वक्त आश्वस्त हो गये कि अब तो बला टली. कोई इतना बेगैरत नहीं कि दीवार हाथ जोड़कर विनती करे और वो उस पर मूत्र छिड़कने का दुस्साहस कर जाये.
किशोरी लाल की यह गलतफहमी भी चौबीस घंटे में पेशाब की धार से धुली गई. सबसे गहरी धार 'कृपया' वाले शब्द पर गिराकर किशोरीलाल के हृदय में अंकुरित विश्वास की जड़ो को खोद डाला.
आज आफिस में वो किसी से बात करने के मूड में नहीं थे किशोरी लाल का हाथ फाइल तथा दिमाग़ पिचकारी ढोने में मशगूल था.
चौबेजी- "का हुआ किशोरी बाबू सब कुशल-मंगल?"
किशोरी लाल- "हां! आज भी सब मूतकर कुशल-मंगल कर गये "
चौबेजी- "लिखने के बाबजूद?"
किशोरीलाल-" हां!आज तो ऐसा लगा मूतने नहीं चुनौती देने आये हों"
चौबेजी- "वैसे दीवार पर क्या लिखवाया आपने ?"
किशोरी लाल- "कृपया यहाँ पेशाब न करें!"
चौबेजी- कृपया!!!
ह्ह्ह ह्ह्ह... आप भी महाराज! पता नहीं किस स्कूल से पढ़े हैं. अरे! 'कृपया' शब्द लाइन लगाने के लिए, फुटकर रूपये देने के लिए, धीरे या बायें चलने के लिए लगाया जाता है.. मूतने वाले के लिए कड़ाई से आदेश दिया जाता है. जाइए और तुरंत 'कृपया' शब्द हटाकर चेतावनी लिखवाइए.
किशोरीलाल आफिस से लौटते ही पेंटर गाड़ी पर बिठाकर घर पहुंचे. अभी गली में घुसे ही थे कि एक आदमी दीवार पर काम तमाम करने के लिए दीवार की तरफ बढ़ चुका था. किशोरीलाल चीखे- " हेएएs ई का ई का करे जात हवं" आदमी समझदार था... धीरे से कोण बदलकर सीधा हो लिया. हांलाकि किशोरीलाल जानते थे कि यह पेशाब करने ही जा रहा था लेकिन जिस वक्त किशोरीलाल चीखे उस वक्त तक वो आदमी अपने जद में था इसलिए उसपर आरोप नहीं सिद्ध हो पाया.. वो आदमी लगभग बीस मीटर की दूरी लेकर पांचवीं दीवार पर मिसाइल झोंक पर पलटकर मुस्कुराया.
खैर! पेंटर ने 'कृपया' शब्द हटाकर "यहाँ पेशाब करना मना है" का आदेशात्मक सूक्त लिखकर नई उम्मीद जगाकर चला गया.
किशोरीलाल जी पेशाब वीरों की हिमाकत से भीतर तक भयभीत थे किन्तु नई सूचना पर थोड़ा विश्वास अवश्य था. सुबह तड़के गली में उतरे लेकिन अफसोस कि आज की सुबह भी गीली रही. मुंह बिचकाकर सिर्फ एक लम्बी गाली उतार कर घर की सीढ़ी चढ़ गये.
आज किशोरीलाल चौबेजी का मुंह नहीं देखना चाह रहे थे..चौबेजी उनका गुस्सा भांप गये..कनखियों से बोले " "आप तो अईसा खिसियाये हैं जैसे हम ही पेशाब कर के चले आते हैं.. का हुआ कृपया शब्द हटवाये की नहीं ?"
"हटवाया और फिर से लिखवाया कि "यहाँ पेशाब करना मना है" फिर भी कोई फरक नहीं पड़ा." किशोरीलाल चिढ़कर सक्षिप्त उत्तर दिये.
चौबेजी- आप भी महाराज! कितने ढीले आदमी हैं... अरे मना ही करना था तो 'सख्त मना' लिखवाये होते. यहाँ "पेशाब करना सख्त मना है"
किशोरीलाल- "अब इससे क्या होगा?"
चौबे जी- 'सख्त' शब्द में एक अलग किस्म की सख्ती होती है. सख्त से सख्त इंसान इस 'सख्त' शब्द को सुनकर सिकुड़ जाता है.
किशोरीलाल- चौबे जी आपकी हर बात को अक्षरशः माना. चलिए! आज यह भी लिखवाया देंगे लेकिन यकीन मानिए इस पर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा.
चौबेजी- "अच्छा आप लिखवाइए तो... और हाँ 'सख्त' शब्द तनिक बड़े अक्षर में हो."
आज नया आदेश पेंट किया गया. किशोरीलाल बहुत विश्वस्त तो नहीं थे किन्तु सख्त शब्द पढ़ने पर खुद अपने पेशाब करने की हिम्मत छूट रही थी इस लिहाज से उन्होंने अंदाज़ लगाया कि नये आदेश का अवश्य ही एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ेगा.
आज शाम से देर रात तक दर्जनों बार बालकनी से झांके.. एक भी आदमी दीवार के सामने नहीं दिखा. आज उनके मन में यह विश्वास जमने लगा कि 'सख्त' शब्द अपना प्रभाव छोड़ रहा है और इसी विश्वास को वो तकिया पर लेकर सो गये. सुबह नींद खुली तो सबसे पहले सख्त शब्द जेहन में कौंधा.. भागकर गली से उतरे लेकिन ओह्ह! रात भर में सारी सख्ती को सींचकर नम एवं मुलायम बना दी गई.
किशोरीलाल जी गुस्से से एक लात 'सख्त' शब्द पर जमाकर तमतमाए हुए घर चले आये.
आज आफिस में घुसते ही चौबेजी के टेबुल पर पहुंचकर चीखकर बोले- खबरदार! जो तुमने पेशाब या फिर सख्त या मुलायम कुछ भी लिखने की बात की..तुम्हारे चक्कर में दो हजार फूंक कर सबके मूत की धार गिन रहा हूँ.
चौबेजी- अच्छा लिजिये चाय पीजिए. उन बेहूदों के चक्कर में अपना खून न जलाइए. आज मैं चलता हूँ आपके घर. वहां प्रत्यक्ष देखकर कुछ उचित उपचार पर बात होगी.
किशोरीलाल- अब मैं कुछ लिखवाने वाला नहीं..
चौबेजी- ठीक है भाई. अच्छा चाय तो पी लो पहले.
शाम को चौबे जी और किशोरीलाल दोनों लोग गली में मुआइना करने निकले. सख्त मना वाला आदेश सीधे-सीधे चौबेजी को मुंह चिढ़ा रहा था.
चौबेजी- बड़े बेइज्जत लोग हैं यहाँ के.. बताइए भला! इतनी उजली दीवार पर इतने सख्त आदेश के बाद इतना दुस्साहस...
"किशोरी बाबू जब इतनी बात माने तो सिर्फ एक बात और मानिए. ऐसे बेइज्जत लोगों के लिए सबसे बेहतर यह लिखवाना है कि "यहाँ कुत्ते पेशाब करते हैं" यकीन मानिए कोई इतना भी बेगैरत नहीं कि इस पर भी मूत कर चला जाये."
"मुझे नहीं लगता कि अब लिखवाने से कुछ फर्क पड़ेगा बेमतलब सौ रूपया पेंटर का खर्चा अलग." किशोरी लाल बुझे मन से बोले.
चौबेजी- देखिए अब मामला पैसे या पेशाब का नहीं बल्कि चुनौती और प्रतिष्ठा का है. पैसे के लिए पीछे मत हटिए. तुरन्त पेंटर बुलाइये!
किशोरीलाल ने पेंटर को पुनः फोन करके बुलाया. किन्तु इस बार की पंचलाइन चौबेजी के नेतृत्व में नई लिखी गई
" यहाँ कुत्ते पेशाब करते हैं"
चौबेजी शाम सात बजे अपने घर गये लेकिन जाते-जाते किशोरीलाल को आश्वस्त करके गये कि अब शायद की कोई गिरा होगा जो खुद को कुत्ता कहलवाना चाहे. बेफिक्र रहिए अब इसके लिए आपको परेशान नहीं होना पड़ेगा.
तीन दिन गुजर गये लेकिन किशोरी लाल जी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो गली में झांके.. डर भीतर तक पालथी मारकर बैठा था किन्तु इस बार कुत्ता शब्द लिखने के नाते एक कोने में विश्वास भी हिलोरे मार रहा था. रविवार की सुबह टहलते वक्त गली की तरफ नजर फेरे.. हौसला पस्त! कुत्ते वाले शब्द पर गुटखे की मोटी धार के साथ पेशाब की नई धारियों की भरमार ..वैसे एकबारगी मान भी लेते कि कुत्ता ही टांग उठाकर पेशाब कर गया लेकिन दीवार पर पान-गुटखे की पीक ने कुत्तों को अपराध के संदेह से मुक्त कर दिया.
सोमवार को आफिस पहुंचते ही सारा गुस्सा चौबे पर फूटा. "चौबे तुम्हारे चक्कर मे ढाई हज़ार फूंक दिया. हम कहते हैं कि जब इतना करने पर भी मूतना बंद न हुआ तो क्या जरूरत थी हमें इतना पेंट-पालिश कराने की... मेरे जैसा बेवकूफ जो पिछले पन्द्रह दिन परेशान भी हुआ.. हजारों फूंक भी डाला.. ऊपर से रोज पेशाब की धार भी गिन रहा है"
आज चौबे खामोश होकर किशोरीलाल के गुस्से का सम्मान कर रहे थे. उधर हो-हल्ला सुनकर राजस्व अधिकारी (रमन कुमार जी) ने अपने चेम्बर से चौबेजी और किशोरीलाल को भीतर बुलवाया.. और तसल्ली से पूरा माजरा सुना.
रमन कुमार (मुस्कुराकर)- चौबे! तुम भी यार.. बेमतलब की इतनी कसरत कराये...यह भारत देश है किशोरी लाल यहाँ 'कृपया' 'सावधान'.. कुत्ता-बिल्ली कहने पर किसी के कान पर जूं नहीं रेंगता... यहाँ किसी को झकझोरना हो तो उसके पौरुष पर हथौड़ा चलाओ. किशोरीलाल तुमने चौबे की इतनी बात मानी. सिर्फ एक बात मेरी मान लो... जाकर दीवार पर यह लिखवाओ कि-
"यहाँ हिजड़े पेशाब करते हैं"
लिखवाकर देखो! कोई कितना भी गाली सुन ले लेकिन पौरुष पर आक्रमण कतई बर्दाश्त नहीं करता.. मेरा कहा मानो.. तुम्हारी दीवार पेशाब की धार से बच जायेगी.
मरता क्या न करता अधिकारी कि बात! आज पुनः पेंटर पकड़ा गया. दीवार खुरची गई. और नये रंग से चौड़े में लिखा गया-
"यहाँ हिजड़े पेशाब करते हैं"
आशा तो कुछ न शेष थी किन्तु अधिकारी के आदेश और सम्मान के कारण किशोरीलाल जी पेंटर को डेढ़ सौ रुपया देकर अपने अधिकारी के बात का सम्मान रख लिये.
अन्तिम आदेश जरूर थोड़ा कारगर निकला. बहुत से लोग दीवार के सामने से बैरंग वापस होते हुए देखे गये. इस सप्ताह दीवार पर नमीं कम पायी गई लेकिन जो सबसे खतरनाक हुआ वो यह कि-
एक दिन सुबह सवेरे किशोरीलाल की डोरबेल बजी.. किशोरीलाल तौलिया लपेटे बाहर निकल आये. बाहर आये तो सन्न... बाहर गेटपर सात-आठ हिजड़े खड़े थे.
हिजड़ो के मेठ ने किशोरीलाल से पूछा- "यह तुम्हारा मकान है "
किशोरीलाल- "जी"
किशोरीलाल के मुंह से "जी" निकलते ही मेठ ने झटके से उनकी कलाई पकड़ी और उन्हें घसीटते गली में ले गया.
"यह किसने लिखवाया" मेठ ने घुड़ककर पूछा
किशोरीलाल- वो क्या है कि...
मेठ- चुप्प! अभी सब हेकड़ी निकाल दूंगी.. बता हमारे कुनबे से कौन मूतने आता है तेरे दरवाजे.
"किशोरीलाल लाचार हाथ जोड़ कर खड़े हो गये"
मेठ- "अबे! मूतने वाले तुम्हारे लोग हैं और बदनाम हमको कर रहे हो.. तुरन्त साफ करो और पांच हजार जुर्माना भरो..नहीं तो दिखाते हैं कि हम क्या चीज हैं.."
किशोरीलाल उनके गुस्से से थरथर थरथर कांपते हुए तार ब्रश लेकर आये और दो मिनट में हिजड़े वाले टिप्पणी को दीवार से सफाचट किये..उधर पांच हज़ार वाला जुर्माना वैसे ही फन उठाकर बैठा था... पूरे एक घंटे पंचायत के बाद साढ़े तीन हजार और माफ़ी पर मामला रफादफा हुआ..
हिजड़ों के जाने के बाद किशोरीलाल घर में जाकर पांच बार उठी-बैठी कर चीखकर बोले. जाओ मूतो जितना दम हो.. हम ताकने नहीं जायेंगे.
रिवेश प्रताप सिंह