गोपाष्टमी : आज के दिन भगवान श्री कृष्ण का नाम गोविन्द और गोपाल हुआ

Update: 2019-11-04 02:32 GMT

संवत् २०७६ कार्तिक शुक्ल अष्टमी सोमवार 4 नवम्बर 2019

गोपाष्टमी ब्रज मंडल का एक में प्रमुख पर्व है। गायो की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का एक अतिप्रिय नाम 'गोविन्द' पड़ा। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से सप्तमी तक श्री कृष्ण ने  गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गिरिराज गोवर्धन को धारण किया था। 8 वें दिन इंद्र का अहंकार नष्ट हुआ और वह अहंकार रहित होकर भगवान श्री कृष्ण  की शरण में आये। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया और उसी दिन से इनका नाम गोविन्द पड़ा। श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण जी को आज ही गाय चराने की अनुमति मिली थी इसी समय से कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपोष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है।

गौ महिमा:-

हमारे प्राचीन ग्रन्थ गौ महिमा से भरे पड़े हैं। मुक्त कंठ से गौ का गायन किया गया है, जिसका कुछ संकेत भर निम्न श्लोकों में किया जा रहा है:-

गौ माता हमारी सर्वोपरि शृद्धा है और भारतीय संस्कृति की आधारशिला है। वस्तुतः गौमाता सर्वदेवमयी है। अथर्ववेद में उसे रुद्रों की माता, बसुओं की दुहिता, आदित्यों की स्वसा और अमृत की नाभि संज्ञा से विभूषित किया गया है।

माता रुद्राणां दुहिता बसूनां।

स्वसाSSदित्यानाममृतस्ये नाभिः।।

भारतीय शास्त्रों के अनुसार गौ में तैंतीस कोटि देवताओं का वास है। उसकी पीठ में ब्रह्मा,गले मे विष्णु और मुख में रूद्र आदि देवताओं का निवास है। यथा :-

सर्व देवाः स्थिता देहे सर्वदेवमयी ही गौ:।

पृष्ठे ब्रह्मा गले विष्णु मुखे रुद्रः प्रतिष्ठितः।।

यही कारण है कि यदि सम्पूर्ण तैंतीस कोटि देवी-देवताओं का षोडशोपचार अथवा पञ्चोपचार करना हो तो केवल एक गौ माता की पूजा और सेवा करने से एक साथ सम्पूर्ण देवी-देवताओं की पूजा संपन्न हो जाती है। अतः प्रेय और श्रेय अथवा समृद्धि और कल्याण,दोनों की प्राप्ति के लिए "गौ सेवा" से बढ़कर कोई दूसरा परम साधन नहीं है।

महाभारतकार ने गौ स्तुति करते हुए लिखा है -

गावः श्रेष्ठा पवित्रश्च पावना जगदुत्तमाः।

ऋते दधि घृताभ्यां च नेह यज्ञः प्रवर्तते।।

गावो लक्ष्म्याः सदा मूले गोषु पाप्मा न विद्यते।

मातरः सर्वभूतानां गावः सर्व सुख प्रदाः।।

अर्थात गौएँ सर्वश्रेष्ठ, पवित्र, पूजनीय और संसार भर में उत्तम है। इनके घी, दूध, दही और गव्य के बिना संसार में यज्ञ सम्पन्न नहीं होते। "गौ" में सदैव लक्ष्मी रहती है। गौ जहां रहती है वहां पाप निवास नहीं करते, ये प्राणिमात्र को सुख-सम्पदा से विभूषित करती रहती है। गाय को सम्पूर्ण प्राणियों की माता तथा " धनं च गोधनं धान्यं स्वर्णादयो वृघैव हि" बताकर गौ वंश को अर्थशास्त्र का मूल कहा गया है।

श्री माँ कामधेनु गौ स्तुति:-

त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।

त्वं तीर्थ सर्व तीर्थानां नमस्तेदस्तु सदानघे।।

हे पाप रहिते! तुम समस्त देवों की जननी हो। तुम यज्ञ की कारण रूपा हो, तुम समस्त तीर्थों की महातीर्थ हो, तुम्हें सदैव नमस्कार है।

 इस दिन गौओ की पूजन का विधान है ।प्रात: काल गौओं को स्नान कराएँ तथा गंध-धूप-पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें, गायों को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ में जाएँ तो सभी प्रकार की अभीष्ट सिद्धि होती हैं। गोपाष्टमी को सांयकाल गायें चरकर जब वापस आयें तो उस समय भी उनका अभिवादन और पंचोपचार पूजन करके कुछ भोजन कराएँ और उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें। उससे सौभाग्य की वृद्धि होती है।

 यह पर्व गौशालाओ में बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन गौशालाओ में कुछ दान देना चाहिए।

 इस पर्व का वास्तविक महत्व गौ संरक्षण है। लोगो का गौ संरक्षण और संवर्धन के प्रति लोगो को जागरूक होना चाहिए। आज गौमाता की जो दुर्दशा समाज में हो रही है उस तरफ सभी को ध्यानाकृष्ट करना इसका मूल उद्देश्य है।

 जय गौ माता जय गोपाल

  पण्डित अनन्त पाठक

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