निर्धनता काअभिशाप, आयुष्मान कार्ड भी इस बच्चे की बीमारी के सामने बौना पड़ गया
मुरादाबाद बिलारी निर्धनता एक बहुत बड़ा अभिशाप है। तीसरी पीढ़ी भी पैसे के अभाव में इलाज नहीं कराने के कारण एकमात्र संतान की मौत को टालने के लिए भगवान से रात-दिन प्रार्थना कर रहे हैं। गांव के लोगों को भी नहीं पता के किशोर किस तरह मौत और जिंदगी से जूझ रहा है। निर्धनता के कारण रिश्तेदार भी संपर्क काट चुके हैं ।मौत तो किसी का इंतजार नहीं करती लेकिन इस परिवार के सामने मौत खड़ी है और इंतजार कर रही है।कब इनके जिगर के टुकड़े को वह अपने साथ ले जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। यह अलग बात है कि मानव में से ही कोई ऐसा दयालु मिल जाए जो इसका इलाज करा सके। तभी बच्चे की जान बच सकती है। सरकार का आयुष्मान कार्ड भी इस बच्चे की बीमारी के सामने बौना पड़ गया है। पृथ्वी का भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर भी इस निर्धन परिवार के बच्चे की जान बचाने में अहसाय व लाचार नजर आ रहे हैं। यह हृदय विदारक मामला तहसील क्षेत्र के ग्राम देवरी का है। इस गांव में सुरेश यादव जो इस बीमार बच्चे के दादा थे वह भी धनाभाव में इलाज न कराने के कारण मौत का शिकार हुए थे। सुरेश यादव की दो संताने हुई।बड़े उमेश यादव और दूसरे मुकेश यादव हैं।गांव में निवास करने के बावजूद इनके पास खेती की 1 इंच भी जगह नहीं है।बताते हैं कि यादव बिरादरी में यह परंपरा है की जिसके पास खेती की जमीन नहीं होती है उससे कोई अपनी बेटी का ब्याह नहीं करता। यह मामला उमेश यादव पर चरितार्थ हो गया और उसकी शादी नहीं हो सकी। मुकेश की शादी हुई और उससे दो बच्चे भी हुए। एक लड़का रमन जो इस समय लगभग 10 वर्ष का है और एक लड़की हुई थी। जो 2 वर्ष की उम्र के बाद ही परलोक सिधार गई। बताते हैं कि उसको भी टाइफाइड हुआ था और धन अभाव में वह उसका सही इलाज नहीं करा सका।बेटा रमन गंभीर रोग से पीड़ित है। डॉक्टरों ने बताया है कि उसके दिल में छेद है। अभी 1 माह पहले बच्चों के साथ खेलते खेलते रमन गिर गया था। तो बताते हैं कि इसके दिल का छेद और भी बड़ा हो गया। आयुष्मान कार्ड इस परिवार के पास है। इन्होंने कई दिल्ली के बड़े बड़े सरकारी अस्पतालों में दिखाया है। मुकेश यादव के अनुसार वह कई महीने तक चक्कर दिल्ली के अस्पतालों के काट चुका है।अब उसके पास इतना पैसा नहीं है कि वह बच्चे को बार बार लेकर दिल्ली के अस्पतालों में जा सके। इस मंदी के दौर में मजदूरी भी उसे प्रतिदिन नहीं मिल पा रही है। दिन में दो वक्त रोटी मिल जाती हो इसे इत्तेफाक ही बताते हैं। मुकेश यादव के अनुसार प्राइवेट डॉक्टर ने इस बीमारी के इलाज का खर्च 10 से 12 लाख रुपए तक बताया ह। इसके खर्चे के सामने आयुष्मान कार्ड बौना पड़ रहा है। बच्चे के बीमार होने से परिवार की आर्थिक हालत और भी खराब हो गई। नतीजा यह हुआ कि रमन को उसकी मां उसके हाल पर छोड़कर मायके चली गई। मुकेश यादव ने एक और महिला से शादी कर ली है।जो इस बच्चे की परवरिश कर रही है। लेकिन परिवार को दो जून रोटी के भी लाले पड़े हैं।गंभीर आर्थिक तंगी होने के कारण यह लोग गांव में अपने घर की चारदीवारी में ही सिमटी रहते हैं। समाज में इनका उठना बैठना इसलिए नहीं हो पाता कि कोई इन्हें अपना समझता ही नहीं है।अब इस बच्चे का इलाज कहां और कैसे होगा यह सोंचते समझते तो परिवार थक चुका है।बच्चा स्कूल चला जाता है। बाप 2 जून की रोटी की व्यवस्था करने मजदूरी करने चला जाता है. मां खेतों पर मेहनत मजदूरी करने चली जाती है। इस तरह जिंदगी का सफर चल रहा है। इससे पहले इस बच्चे के दादा सुरेश यादव को भी कैंसर हो गया था गरीबी और निर्धनता के कारण उनके दोनों बेटे इनका इलाज नहीं करा पाए थे और वह परलोक सिधार गए थे। यह बात करीब 15 वर्ष पहले की है। बच्चे की दादी शांति देवी को इसकी बीमारी का पता चलने पर अपने पति की बीमारी की पूरी फिल्म दिमाग में घूमने लगती है और वह मानसिक तनाव में जीवन व्यतीत कर रही हैं।जब कभी मुकेश उमेश उसकी पत्नी रजनी यादव मुकेश की मां फुर्सत के लम्हों में घर में होते हैं तू मासूम बच्चे की दशा देखकर सब को रोना आ जाता है और एक एक दूसरे को चुपाते चुपाते रात भी गुजर जाती है।
रिपोर्ट वारिस पाशा जनता की आवाज से बिलारी मुरादाबाद