लखनऊ : सियासी तन्हाई से राज्यसभा में प्रवेश और फिर समाजवादी पार्टी के महासचिव पद पर अमर सिंह की ताजपोशी से पार्टी के क्षत्रिय क्षत्रपों में असुरक्षा का भाव पैठ कर रहा है। इन लोगों को डर है कि विधानसभा चुनावों में अगर ठाकुरों को लामबंद करने का जिम्मा अमर सिंह को सौंपा गया तो उनका सियासी तिलिस्म दरक सकता है।
सपा के एक क्षत्रिय एमएलसी के जन्मदिन पर गत दिनों लखनऊ में सपा के कद्दावर ठाकुर नेताओं का जमावड़ा हुआ। जन्मदिन की बधाई बहाना थी, मकसद सपा की बदली परिस्थितियों में खुद का अस्तित्व बचाये रखने पर मंथन था। सूरतेहाल की डोर वर्ष 2010 से पहले से जुड़ी है। उस समय सपा में मुलायम सिंह यादव के बाद अमर सिंह को सबसे मजबूत नेता समझा जाता था। समय प्रतिकूल हुआ और अमर फर्श पर आ गए। तब अमर को भरोसा था कि पार्टी के ठाकुर नेतादुर्दिन में सपा छोड़कर उनके साथ हो जाएंगे, मगर उम्मीद के विपरीत अरविंद सिंह गोप, रघुराज प्रताप सिंह, ओमप्रकाश सिंह, यशवंत सिंह, योगेश प्रताप सिंह समाजवादी पार्टी के साथ खड़े रहे। लंबे इंतजार के बाद अमर सिंह अब फिर चढ़ान पर हैं। समाजवादी परिवार के संग्राम के बाद दल की परिस्थितियां और पुराने घावों के मद्देनजर क्षत्रिय नेताओं में भय है कि कहीं अमर सपा के अंदरूनी झगड़े की राह न मोड़ दें। जिस एमएलसी के यहां सपा के क्षत्रिय नेताओं की जुटान हुई, उन्होंने खुद को ठाकुर क्षत्रप साबित करने के लिए बिरादरी के लोगों को टटोलने का प्रयास किया तो संकेत निकला कि अधिकांश ठाकुर मंत्री और विधायक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव केसमर्थन में हैं। नए प्रदेश अध्यक्ष शिवपाल यादव ज्यों-ज्यों संगठन में बदलाव का प्रयास तेज करेंगे, क्षत्रिय क्षत्रपों में असुरक्षा बढ़ेगी क्योंकि आने वाले दिनों में क्षत्रिय टोली के कुछ नेताओं को प्रभावशाली जिम्मेदारी मिल सकती है। ऐसे में उनके बीच फूट की आशंका भी बढ़ेगी। एक वरिष्ठ क्षत्रिय नेता का कहना है कि प्रदेश व समाजवादी पार्टी की सियासत में अभी कई और मोड़ आने बाकी हैं, ऐसे में अपने राजनीतिक जीवन पर मंथन तो जरूरी है।